फूलपुर के पूर्व सांसद माफिया अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद को 15 अप्रैल की रात पुलिस की मौजूदगी में तीन हमलावरों ने गोलियां दाग कर मौत के घाट उतार दिया। इस हादसे के बाद से उत्तर प्रदेश पुलिस की लापरवाही पर कई सवालिया निशान उठ रहे हैं। इस रिपोर्ट में हम यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि इस दौरान आखिर ऐसा क्या-क्या हुआ जिसके आधार पर उत्तर प्रदेश का पुलिसिया तंत्र सवालों के घेरे में आ रहा है?

15 अप्रैल की रात-प्रयागराज का कॉल्विन अस्पताल

अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद की पुलिस हिरासत सोमवार (17 अप्रैल) को खत्म हो रही थी। पुलिस सूत्रों और चश्मदीदों के मुताबिक उन्हें नियमित चिकित्सा जांच के लिए कॉल्विन अस्पताल ले जाने के लिए रात करीब 10 बजे धूमलगंज थाने से बाहर निकाला गया। इस दौरान 20 पुलिसकर्मियों और दो गाड़ियों मौजूद थी। पुलिस थाने से अस्पताल के बीच की 7 किमी की दूरी करीब 20 मिनट में पूरी की गई।

मोती लाल नेहरू मंडलीय अस्पताल जिसे कॉल्विन अस्पताल भी कहा जाता है के परिसर में इतनी जगह है कि वहां कई वाहन खड़े किए जा सकते हैं लेकिन 15 अप्रैल की रात अतीक और अशरफ को अस्पताल के गेट के बाहर ही उतार लिया गया, उन्हें अस्पताल के भीतर ले जाने के लिए पैदल चलाया गया, इस दौरान कई मीडियाकर्मी जिनमें से कुछ पुलिस की गाड़ियों का पीछा करके वहां पहुंचे थे और पहले से वहां मौजूद थे, अतीक का बयान लेने की कोशिश करने लगे।

अतीक और अशरफ पुलिस के धक्कों के बीच दो कदम आगे बढ़े ही थे कि एक शूटर, जिसकी पहचान बांदा के रहने वाले लवलेश तिवारी के रूप में हुई है, ने उनके सिर और शरीर पर कई राउंड फायर किए। इससे पहले अशरफ अहमद कुछ समझ पाते वह नीचे गिरे और तीनों हमलावरों ने दोनों भाइयों पर कई राउंड फायर किए।

यह पूरा एपिसोड एक मिनट से भी कम समय में खत्म हो गया था। शूटरों को पुलिस ने तुरंत पकड़ लिया और अतीक और अशरफ को मिनटों बाद मृत घोषित कर दिया गया।

आखिर क्यों अस्पताल लाए गए थे अतीक और अशरफ?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एक पुलिस अधिकारी ने मेडिकल चेकअप के लिए देर रात अस्पताल लाए जाने के सवाल पर कहा कि अतीक अहमद अत्यधिक मधुमेह (Diabetes) और हाइपर टेंशन के मरीज थे। सूत्रों के मुताबिक अतीक और अशरफ को शुक्रवार शाम को भी मेडिकल जांच के लिए कॉल्विन अस्पताल ले जाया गया था। अधिकारी ने कहा, “शनिवार की सुबह, जब अतीक अहमद ने कुछ बेचैनी की शिकायत की तो हमने लॉक-अप में एक डॉक्टर से मिलने को बुलाया था’

  • अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि आरोपियों का मेडिकल चेकअप लिखित आदेश मिलने के बाद ही किया जाता है, जैसा कि अदालत ने आदेश दिया है।
  • यूपी पुलिस के सूत्रों ने कहा कि आरोपी को अस्पताल ले जाना हमेशा जरूरी नहीं होता है, गंभीर और संवेदनशील मामलों में डॉक्टर को लॉक-अप में ही बुलाया जाता है। इस मामले में ऐसा क्यों नहीं किया गया?

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अस्पताल ले जाया जाना एक ‘Secret Plan’ क्यों नहीं था?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एक अधिकारी ने कहा कि कई मामलों में आरोपी को चुपके से अस्पताल ले जाया जाता है ताकि किसी को आरोपी के मूवमेंट के बारे में पता न चले। कुछ अधिकारियों ने 26/11 के आरोपी अजमल कसाब के मामले का हवाला देते हुए बताया जिसकी मुंबई अपराध शाखा से जेजे अस्पताल में गतिविधियों के बारे में मीडिया को कभी पता नहीं चला था।

क्या यह संभव नहीं है कि हमलावर अतीक अहमद के अस्पताल लाए जाने को लेकर जानकारी रखते थे? यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह जिन्हें कानून और व्यवस्था प्रबंधन का दिग्गज माना जाता है। इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में कहते हैं कि धूमलगंज पुलिस स्टेशन में सुरक्षा पुख्ता थी लेकिन जब अतीक को अस्पताल ले जाया गया कई खामियां थीं। जैसे…

  • मीडिया को क्यों अतीक और अशरफ के करीब आने दिया गया? फर्जी आईडी और माइक के साथ आए पत्रकारों की पहचान करना पुलिस का काम था। ऐसा क्यों नहीं किया गया?
  • इतना फ्री माहौल क्यों दिया गया कि हमलावर अतीक अहमद के इतना करीब पहुंच गए, जब किसी आरोपी की हत्या पुलिस कस्टडी में होती है तो यह शासन पर सवालिया निशान है।
  • जिस तरह हमलावरों ने सरेंडर किया उसे देखकर लगता है कि बात उससे बहुत ज़्यादा आगे की है जितना हम समझ पा रहे हैं।
  • हमलावर गरीब पृष्ठभूमि के हैं, लेकिन वे तुर्की की बंदूकों का इस्तेमाल कर रहे थे, जिनमें से प्रत्येक की कीमत 7 लाख रुपये थी, प्रत्येक राउंड की कीमत 250 रुपये थी। उनकी फायरिंग से पता चलता है कि वह शार्प शूटर थे।