लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) को लेकर सियासी पारा उफान पर है। कांग्रेस-बीजेपी सभी अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं और लगभग सभी ओपिनियन पोल्स दावा कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पूर्ण बहुमत हासिल कर तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। मोदी को लेकर तो दुनियाभर की बातें होती ही रहतीं हैं लेकिन आज बात उनके मार्गदर्शक और गुरु अटल बिहारी वाजपयी (Atal Vihari Vajpayee) और लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) की करते हैं।
अटल बिहारी वाजपयी देश के प्रधानमंत्री रहे। पहली बार 13 दिन, दूसरी बार 13 महीने और तीसरी बार पूरे पांच साल तक के लिए। उनके तीसरे कार्यकाल के दौरान ही बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रहे लाल कृष्ण आडवाणी डिप्टी पीएम भी बने थे। आजादी के इतिहास में पहली बार डिप्टी पीएम का पद केवल लाल कृष्ण आडवाणी के लिए इजाद हुआ था। अटल पीएम बन गए, रिटायर हुए और फिर 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर अटल बिहारी वाजपयी प्रधानमंत्री बन गए तो आडवाणी क्यों नहीं बन पाए। इसको लेकर कई तरह की कहानियां भी चलती हैं कि अटल के पॉलिटिकल डाउन फॉल के दौरान आडवाणी के एक ऐलान ने सारा खेल कैसे पलट दिया और इसी में आडवाणी के प्रधानमंत्री न बन पाने की कहानी छिपी है।
बीजेपी का ऐतिहासिक राष्ट्रीय अधिवेशन
90 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन से बीजेपी ने काफी सफलता हासिल की थी, जिसके मुख्य हीरो लाल कृष्ण आडवाणी ही थे। उनकी वजह से पहली बार त्रिशंकु जनादेश के बावजूद देश में बीजेपी और उसके साथी घटक दलों की सरकार बनी थी। सभी ने पीएम के तौर पर बीजेपी के कैंडिडेट अटल बिहारी वाजपयी का समर्थन किया था लेकिन इसकी इबारत साल 1993 में मुंबई के दादर मैदान पर बीजेपी का 3 दिन का राष्ट्रीय अधिवेशन में लिख दी गई थी।
12 नवंबर 1993 को बीजेपी के अधिवेशन के दूसरे दिन अचानक लालकृष्ण आडवाणी ने ऐलान किया था कि बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के कैंडिडेट अटल बिहारी वाजपयी होंगे। बकौल वाजपयी वे भी इस ऐलान से अचंभे में थे क्योंकि उन्हें इसके बारें में कुछ बताया ही नहीं गया था और आडवाणी ने उनसे सलाह लिए बिना ही उनके नाम का ऐलान कर दिया था।
आडवाणी ने अटल के लिए दिया था नारा
लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष बन गए थे और जब आडवाणी के ऐलान पर अटल ने मना किया तो आडवाणी ने कहा था कि वे अब पार्टी के अध्यक्ष हैं और इसी हक से उन्होंने यह नारा दिया है कि ‘अबकी बारी अटल बिहारी’। अब एक खास पहलू यह भी है कि पहली बार बीजेपी के पीएम कैंडिडेट के तौर पर अटल का नाम, किसी बीजेपी नेता नहीं बल्कि कांग्रेसी और गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले नेता ने बीजेपी के ही एक सांसद को सुझाया था।
कांग्रेसी नेता ने खुद इस बात का दावा किया था, ये नेता कोई और नहीं बल्कि माखनलाल फोतेदार थे। उनका दावा था कि अटल को पीएम कैंडिडेट बनाने का सुझाव उन्होंने ही बीजेपी सांसद केएल शर्मा को दिया था। माखनलाल फोतेदार ने अपनी किताब में भी इस बात का जिक्र किया था।
इसके पीछे यह कहानी बताई जाती है कि उस वक्त बीजेपी के पास नॉर्थ इंडिया के अलावा साउथ के राज्यों में कोई खास जनाधार नहीं था और अगर बीजेपी को सत्ता पर काबिज होना था तो उसे कई विपक्षी दलों के साथ भी गठबंधन करना पड़ता।
आडवाणी से कैसे आगे निकले थे अटल?
उस दौरान यह तर्क दिया जाता था कि अटल थोड़े सौम्य हैं जबकि आडवाणी काफी आक्रामक हैं। ऐसे में अगर आडवाणी पीएम कैंडिडेट रहेंगे तो बीजेपी के लिए सत्ता का स्वाद चखना मुश्किल होगा। इसीलिए खुद आडवाणी ने अटल का नाम पीएम उम्मीदवार के लिए आगे कर दिया था।
इसके चलते 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद त्रिशंकु जनादेश के बावजूद बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता मिला था और 16 मई को अटल बिहारी वाजपयी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। हालांकि यह सरकार 13 ही दिन चल सकी थी।
बाद में फिर एलायंस हुआ तो अटल 13 महीने तक सरकार चलाने में सफल रहे थे, और फिर उन्होंने मार्च 199 से मई 2004 तक गठबंधन की सरकार पूरे पांच साल के लिए चलाई थी।