उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान 403 सीटों में 1 सीट पर सिमटने वाली पार्टी बसपा फिलहाल लोकसभा चुनाव 2024 के सियासी समीकरण में गायब दिख रही है। मायावती के नेतृत्व में पार्टी लड़खड़ाती हुई दिख रही है। इसके नेता ही बसपा के गठबंधन न करने के रुख को लेकर हैरान हैं। दूसरे राजनीतिक दल गठबंधन कर रहे हैं लेकिन बसपा अपने ही दलित वोटों पर निर्भर दिख रही हैं।

आम चुनावों को लेकर बीएसपी का रुख काफी नेगेटिव लग रहा है, जबकि पिछले लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान बीएसपी 80 में से 10 सीटें जीत चुकी थीं। बसपा और सपा के बीच ऐतिहासिक गठबंधन बसपा की बड़ी वजह थी। बीएसपी के वोट प्रतिशत की बात करें तो 2019 में यह लगभग 22 प्रतिशत रहा था।

बीएसपी ने सपा के साथ 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था। वहीं 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 12.8 प्रतिशत वोट ही मिला था। बीएसपी 1993 में अपने गठन के बाद अपने पहले चुनाव में जितना वोट लाई थी लेकिन 2022 में बस उससे ही ज्यादा था।

ऐतिहासिक गिरावट के दौर से गुजर रही बीएसपी

अहम बात यह है कि 90 का दशक का दौर उसके उत्थान का संकेत दे रहा था लेकिन इस बार यह उसकी गिरावट को दर्शा रहा है। 1993 से 2022 के बीच बीएसपी को यूपी में कभी भी 19 प्रतिशत से कम वोट नहीं मिला था, लेकिन 2022 में वो भी हो गया। 2007 के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें 30 प्रतिशत वोट मिला था और पार्टी सत्ता में आ गई थी। उस दौरान मायावती मुख्यमंत्री तक बन गई थी।

2014 के लोकसभा चुनाव में जब बसपा को यूपी में एक भी सीट नहीं मिली थी, तब भी उसका वोट शेयर 19.77% था। 2017 के विधानसभा चुनावों में उसने 19 सीटें जीतीं, तो उसका वोट शेयर 22.23% था। बसपा का 2022 का वोट शेयर सबसे निचले स्तर पर हैं। माना जा रहा है कि मायावती की पार्टी ने पिछले चुनाव के दौरान तो मुस्लिम वोट तक खो दिया है। इसके चलते बीएसपी के ही नेताओं को डर है कि अब इसका झुकाव भाजपा की ओर होता दिख रहा है, जिुसके चलते बीएसपी का वोट प्रतिशत मुस्लिम वोटों के लिहाज से और गिर सकता है।

कांग्रेस कर रही थी गठबंधन के प्रयास

इसका संकेत यह भी माना जा रहा है कि चुनाव से पहले लगातार कांग्रेस बसपा से गठबंधन करने और उसे इंडिया अलायंस में शामिल करने की कोशिश कर रही है लेकिन खुद पूर्व सीएम मायावती ने इस कोशिश को झटका देते हुए किसी भी गठबंधन से इनकार कर दिया। सपा कांग्रेस के बीच पीडीए के तहत गठबंधन हो गया है। सपा ने अपने प्रत्याशियों की लिस्ट भी जारी की है। बीजेपी ने भी अपने 52 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी हैं लेकिन मायवती गायब हैं। पार्टी के नेता इंतजार में हैं कि मायावती टिकट वितरण का प्रोसेस कब शुरू करेंगी।

मायावती के ही समर्थकों और नेताओं को नहीं पता है कि आखिर मायावती करना क्या चाहती हैं। इसके चलते ही यह सवाल उठ रहा है कि क्या वे बीजेपी के खिलाफ हैं या पक्ष में? इसकी वजह यह है कि राज्यसभा चुनाव के दौरान बीएसपी लीडर्स भी आश्चर्य में थे क्योंकि पार्टी ने बीजेपी प्रत्याशी को वोट देने का ऐलान किया था। बसपा के एक नेता ने पूछा कि इससे अधिक सबूत की क्या जरूरत है कि पार्टी बीजेपी का समर्थन कर रही है। हमारे एकमात्र विधायक के पास मतदान से अनुपस्थित रहने का विकल्प था, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि पार्टी बीजेपी के खिलाफ है लेकिन उमाशंकर सिंह बीजेपी को वोट दिया और मायावती जी ने इस बारे में कुछ नहीं कहा। इससे स्पष्ट हो गया कि पार्टी बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में है ही नहीं।

राम मंदिर गए थे बसपा विधायक

हाल ही में विधानसभा से सभी विधायक की अयोध्या राम मंदिर में रामलला के दर्शन करने गए थे। खास बात यह थी कि इस लिस्ट में भी बीएसपी विधायक उमाशंकर सिंह है। इससे पहले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के लिए चुनाव में भी बीएसपी ने बीजेपी प्रत्याशियों का ही समर्थन किया।। इसके अलावा और महिला आरक्षण विधेयक बसपा केंद्र में मोदी सरकार के साथ रही थी।

बीएसपी से सपा में जाने के लिए तैयार एक नेता ने कहा कि पार्टी के मुस्लिम नेता आशंकित हैं कि अगर पार्टी उन्हें फिर से मैदान में उतारती है, तो भी उनकी जीत की संभावना कम है। नेताओं का कहना है कि दलितों के अलावा, हमें कौन वोट देगा? अगर हम मुसलमानों के पास भी जाएंगे और उनसे वोट मांगेंगे तो वे बसपा के भाजपा के साथ होने का मुद्दा उठाएंगे। इसलिए, हमारे पास अन्य पार्टियों में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

राज्यसभा चुनाव में BSP विधायक द्वारा BJP उम्मीदवार को वोट देने के बारे में पूछे जाने पर बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा कि हमारे नेता (मायावती) ने विधायक (उमाशंकर) से कहा कि वह किसी भी उम्मीदवार को वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं। संजय सेठ ने समर्थन मांगा था। UP में बीएसपी के 10 मौजूदा सांसदों में से दो मुस्लिम प्रतिनिधि पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं। पार्टी अभी भी देश में “राष्ट्रीय” दर्जा प्राप्त छह पार्टियों में गिनी जाती है, क्योंकि यूपी के अलावा अन्य राज्यों में भी उसे वोट मिलते हैं।

बसपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में किया था बेहतरीन प्रदर्शन

हाल के विधानसभा चुनावों में बसपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश ने बेहतरीन किया था। बीएसपी ने राजस्थान में 1.82% वोट शेयर के साथ 2 सीटें हासिल की थी। मध्य प्रदेश में पार्टी ने 3.38% वोट हासिल किए थे। पार्टी 110 सीटों पर तीसरे स्थान पर रही थी। खास बात यह है कि दोनों ही राज्यों में पार्टी के लिए मायावती ने चुनाव प्रचार नहीं किया था।

कांग्रेस भी यह मान रही है कि बसपा का अलग होकर चुनाव लड़ना विपक्षी दलों का नुकसान पहुंचाएगा और बीजेपी के लिए राह आसान करेगा। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बसपा आगामी चुनावों में निश्चित रूप से इंडिया गठबंधन को कुछ नुकसान पहुंचाने वाली है। बसपा के पास अभी भी दलित समुदाय का 12-13% वोट शेयर है।

इस मामले में सपा के सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता फ़राज़ुद्दीन किदवई ने कहा कि बसपा बीजेपी के सामने लगभग हथियार डाल ही चुकी है। बसपा का गठन बहुज समाज के लिए हक की आवाज उठाने के मकसद से हुआ था लेकिन अब पार्टी भटक गई है।