भारत के आजाद होने के बाद जवाहर लाल नेहरू ने PM पद की कमान संभाली तो एक ऐसा काम किया जो राजनीतिक हलकों में हैरत भरा माना गया। उन्होंने पार्टी लाइन से इतर जाकर डॉ. भीमराव अंबेडकर और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कैबिनेट में शामिल किया। मुखर्जी को उद्योग जैसा भारी भरकम मंत्रालय दिया गया। वो तकरीबन तीन साल तक नेहरू कैबिनेट में रहे। लेकिन फिर उन्होंने सरकार को अलविदा कह दिया।

नेहरू- लियाकत समझौते से नाराज थे मुखर्जी

दरअसल जब देश का बंटवारा हुआ तो बड़े पैमाने पर दंगे हुए। हजारों लाखों लोगों की जान इनमें गई। खुद महात्मा गांधी इन दंगों से इतने आहत हुए कि उन्होंने आमरण अनशन तक किया। हालांकि धीरे धीरे ये दंगे खत्म हो गए और जो जहां था वहीं बस गया। भारत में बहुत से मुस्लिम थे तो पाकिस्तान में भी हिंदू रह रहे थे। नेहरू को इन हिंदुओं की चिंता सालती थी। लिहाजा उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ एक समझौता किया। ये नेहरू लियाकत पैक्ट या फिर दिल्ली पैक्ट के नाम से भी जाना गया।

इस समझौते के मुताबिक दोनों देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों को वहां के बहुसंख्यक समुदाय की तरह से बराबरी का दर्जा मिलेगा। उन्हें राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर वोही अधिकार मिलेंगे जो बहुसंख्यक समुदाय के पास हैं। उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। नेहरू ने पाकिस्तान से कहा था कि भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों को वो तमाम अधिकार दिए गए हैं जो दूसरों को मिले हैं। लियाकत अली खान ने भी पाकिस्तान की संसद का जिक्र कर कहा कि हमारे यहां भी भारत की तरह से ही अल्पसंख्यकों के लिए प्रावधान किए गए हैं।

आईए जानते हैं समझौते से क्यों नाराज हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी

आजादी से पहले डॉ. श्यामा प्रसाद अखंड भारत के कट्टर समर्थक थे। लेकिन जब बंटवारा जरूरी हो गया तो उन्होंने अपनी लाइन बदल ली। वो चाहते थे कि बंगाल का बंटवारा हो और पश्चिम बंगाल केवल हिंदू बंगालियों के लिए हो। उनका मानना था कि लियाकत के साथ समझौता करके नेहरू ने गलत किया। जब बंटवारा हो गया तो हिंदुओं के लिए भारत और मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान बनना चाहिए था।

1950 में मुखर्जी ने हिंदू महासभा से किनारा करके राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मदद से भारतीय जनसंघ का गठन किया। ये 1951 में हुआ। 1952 के चुनाव में जनसंघ ने केवल तीन सीटों पर ही चुनाव लड़ा था। बाद में इसने ही भारतीय जनता पार्टी की शक्ल अख्तियार की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनीफार्म सिविल कोड के समर्थक थे। गो हत्या के साथ आर्टिकल 370 को खत्म करने के हिमायती थे जिसने जम्मू कश्मीर को स्पेशल दर्जा दिया था।