केरल के वायनाड में आपदा में भारी नुकसान के बाद अब लोगों के सामने बड़ा सवाल यह है कि आगे क्या होगा। सब कुछ भूस्खलन में बह गया। धन-संपत्ति के साथ कई लोगों के अपने भी इस विपत्ति में जान गंवा बैठे। जो बचे हैं, वह असहाय, बेबस और लाचार है। उन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है। कई ऐसे लोग हैं, जो जिंदा रहकर भी खुद को दुनिया से खुद को खत्म समझ रहे हैं।

पांच साल पहले आई विपत्ति से ज्यादा इस बार क्षति हुई है

पांच साल पहले अगस्त 2019 में केरल के वायनाड जिले के एक गांव पुथुमाला में भूस्खलन से 17 लोगों की मौत हो गई थी। घर, पूजा स्थल, दुकानें और बाकी सब कुछ नष्ट हो गए थे। इससे पुथुमाला एक वीरान घाटी में बदल गया। इन ढांचों से ही पुथुमाला की पहचान मिलती थी, लेकिन अब यह गांव घास-फूस के कालीन में तब्दील हो गया है। इस साल 30 जुलाई को कुछ पहाड़ियों की दूरी पर चूरलमाला और मुंडक्कई और अट्टामाला के आस-पास के गांवों में फिर से त्रासदी हुई। हालांकि, इस बार बर्बादी कई गुना अधिक थी।

भूस्खलन से बेघर हुए लोगों का पुनर्वास बड़ी चुनौती है

2 अगस्त तक मृतकों की संख्या 210 थी और 218 अभी भी लापता हैं। जीवित बचे लोगों के मिलने की लगभग जीरो उम्मीदों के साथ, मेप्पाडी पंचायत के अंतर्गत आने वाले ये गांव मृतकों की घाटी में बदल गए हैं। जबकि बचे हुए लोग अभी मेप्पाडी पंचायत के राहत शिविरों में रह रहे हैं, सरकार को एहसास है कि उसकी अगली बड़ी चुनौती भूस्खलन से बेघर हुए लोगों का पुनर्वास करना होगा।

आपदा के एक दिन बाद लोगों से मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष (CMDRF) में उदारतापूर्वक योगदान देने का आग्रह करते हुए मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा, “उस क्षेत्र के पुनर्निर्माण के लिए और अधिक संसाधनों की जरूरत है। कई लोगों ने सहायता का वादा किया है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। उदारता से योगदान की जरूरत है।”

इस मामले पर कैबिनेट उप-समिति के सदस्य केरल के लोक निर्माण विभाग के मंत्री मोहम्मद रियास ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “बचे हुए कई लोगों के लिए पुनर्वास योजनाओं पर विस्तृत चर्चा के बाद ही फैसला लिया जाएगा… , हमें उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए काउंसलिंग करनी होगी। उनके बच्चों की शिक्षा भी जल्द से जल्द फिर से शुरू करनी होगी।”

पुथुमाला वह गांव है, जो 2019 के भूस्खलन में नष्ट हो गया था और अब वह काफी हद तक वीरान हो गया है। उसकी हालत देखने पर हाल के भूस्खलन में नष्ट हुए मेप्पाडी पंचायत के तीन गांव चूरलमाला, अट्टामाला और मुंडक्कई पुनर्वास के लिए बड़ी चुनौती लग रहे हैं।

2019 की त्रासदी के बाद ज्यादातर परिवार पुथुमाला छोड़कर चले गए और कभी वापस नहीं लौटे। भूस्खलन से नष्ट हुए इलाके में पंचायत ने कोई इमारत बनाने की अनुमति नहीं दी। पुथुमाला में चाय की दुकान के इकलौते मालिक अबूबकर कहते हैं कि 2019 की त्रासदी से पहले यहां करीब 90 परिवार रहते थे।

उन्होंने कहा, “अब यहां एक दर्जन से भी कम परिवार रहते हैं। कई लोगों के पास बहुत अच्छे घर थे, जिन्हें भूस्खलन के बाद छोड़ दिया गया। लोग अपनी कृषि भूमि की देखभाल करने के लिए वापस नहीं आए। यहां तक कि उन जमीनों पर भी जहां भूस्खलन के कारण मलबा नहीं गिरा है।”

हाल के भयानक त्रासदी में बचे लोग अभी अस्थायी कैंपों में रह रहे हैं। वे इस बात को मानते हैं कि उन्हें सब कुछ फिर से शुरू करना होगा। भूस्खलन का भयानक दृश्य उनके दिमाग में अब भी घूम रहा है। अब बर्बाद हो चुके उनके गांवों में वे अब लौटने के इच्छुक नहीं हैं। वहां सैकड़ों मकान या तो पूरी तरह से या आंशिक रूप से नष्ट हो चुके हैं।