Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में एनसीपी नेता अजित पवार ने अपनी ही पार्टी से बगावत कर शिंदे–फडणवीस सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए हैं। उनके साथ एनसीपी के 8 अन्य विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली। पूरे घटनाक्रम के बाद ‘आया राम गया राम’ कहावत फिर से चर्चा में आ गई है। अजित पवार ने 40 विधायकों के समर्थन का दावा तो किया लेकिन उनकी बैठक में संख्याबल दिखाई नहीं दिया। ऐसे में एक बार फिर दलबदल कानून से बचने के लिए दोनों ही गुटों में आंकड़ों को अपने पक्ष में करने की खींचतान जारी है।

जब एक ही दिन में तीन बार बदली पार्टी

आखिर दलबदल कानून क्यों लाया गया इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। बात 1967 की है। हरियाणा की हसनपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी गया लाल ने जीत दर्ज की। उन्होंने एक ही दिन में 3 बार पार्टी बदली। पहले उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा फिर कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए। 9 घंटे में ही उन्होंने फिर से पार्टी बदली और दोबारा कांग्रेस का दामन थाम लिया। इस घटना के साथ ही दल बदलुओं के लिए ‘आया राम गया राम’ की कहावत प्रसिद्ध हो गई।

क्या है दल बदल विरोधी कानून?

बार बार होने वाली सियासी उठापटक और हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने के लिए साल 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने 92वां संवैधानिक संशोधन कर दल बदल विरोधी कानून पारित किया। इस कानून का मकसद राजनैतिक लाभ के लिए नेताओं के पार्टी बदलने को रोकना था। इस कानून को दसवीं अनुसूची में रखा गया है।

दसवीं अनुसूची के तहत, किसी व्यक्ति को इसका सदस्य होने से अयोग्य ठहराया जा सकता है–

लोकसभा
राज्य सभा
राज्य विधान सभा
राज्य की विधान परिषद

अयोग्यता का अर्थ है कि अयोग्य व्यक्ति इन में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं हो सकता है। इस अधिनियम के बाद दल बदलने की प्रक्रिया में बहुत हद तक कमी आई थी।

अयोग्यता का सामना किए बिना दल बदलना

अयोग्यता का सामना किए बिना किसी का राजनीतिक दल बदलना ऐसी कुछ परिस्थितियां हैं जिनमें विधायक या सांसद अयोग्यता का सामना किए बिना अपनी पार्टी बदल सकते हैं। दल बदल कानून किसी राजनीतिक दल को किसी अन्य दल के साथ विलय की अनुमति देता है यदि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायी सदस्य विलय के लिए सहमत हों। विलय की स्थिति में, पार्टी के विधायी सदस्यों को अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा, भले ही वे विलय के लिए सहमत हुए हों, या विलय के बिना एक अलग समूह के रूप में कार्य करने का विकल्प चुना हो।

विधायकों को कौन ठहरा सकता है अयोग्य?

किसी विधायक (संसद में किसी सांसद) को अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए या नहीं इसका निर्णय विधानमंडल के सभापति या अध्यक्ष यानी पीठासीन अधिकारी द्वारा लिया जाता है। एक विधायक को पीठासीन अधिकारी के फैसले के खिलाफ अदालत में अपील करने की अनुमति है।

अब भी जारी है दल बदलने का सिलसिला

2016 – अरुणाचल प्रदेश के पीपल्स पार्टी के 43 विधायक में से 33 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए।
2018 – गोवा में कांग्रेस पार्टी के 2 विधायक पार्टी बदलकर बीजेपी में शामिल हो गए।
2020 – मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी के 22 विधायकों ने पार्टी से बगावत करते हुए अपना इस्तीफा दे दिया और 21 मार्च को बीजेपी का दामन थाम लिया।
2022 – शिवसेना के विधायकों ने विरोध कर दिया और शिवसेना पार्टी को तोड़ कर बीजेपी के साथ सरकार बना ली।

महाराष्ट्र में दल बदल का खेल

पिछले कुछ साल में महाराष्ट्र में दल बदलने के मामलों में तेजी आई है। साल 2022 में शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने अपनी ही पार्टी के दो तिहाई विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी। वह बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार में शामिल हो गए। इससे शिवसेना दो गुटों में बंट गई। इनमें एक गुट एकनाथ शिंदे और दूसरा उद्धव ठाकरे के साथ हो गया। एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। 2 जुलाई 2023 को एनसीपी के अजित पवार अपनी पार्टी के विधायकों के साथ शिंदे–फडणवीस सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए। एनसीपी के पास कुल 53 विधायक है अगर अजित पवार को अयोग्यता से बचना है तो उनके पास कम से कम 37 विधायकों का समर्थन होना चाहिए। अजित पवार ने 40 से ज्यादा विधायक उनके समर्थन में होने का दावा किया है।