Agnipath Scheme: केंद्र की मोदी सरकार जब अग्निपथ योजना लाई थी, उस वक्त इस योजना को लेकर काफी विरोध-प्रदर्शन हुआ था। यहां तक की सभी विपक्षी दलों ने भी इस योजना पर सवाल खड़े किए थे। हालांकि, इसके बावजूद इस योजना को लेकर सरकार ने अपने तर्क दिए। जिसके बाद से यह योजना लागू है, लेकिन अब देश में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। छह चरणों के तहत मतदान हो चुका है, जबकि 1 जून को 7वें चरण के तहत वोटिंग होगी, लेकिन इससे पहले इंडियन एक्सप्रेस ने पंजाब की जनता और वहां के युवाओं के दिल की बात जानने की कोशिश की है। जिसके बाद यह बात सामने आई की पंजाब के युवाओं में अग्निपथ योजना आने के बाद सेना में जाने का उत्साह कम हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी वो वादा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आएगी तो वो अग्निपथ योजना को खत्म कर देंगे। इस वादे को सही से लोगों के बीच पहुंचाने में सफल नहीं हुई है।

ऐसे में हम बात हवलदार करमजीत सिंह को लेकर करते हैं। हवलदार करमजीत सिंह जब 2019 में सेना से सेवानिवृत्त हुए और पंजाब के बठिंडा जिले के अपने पैतृक गांव फुल्लोखारी लौटे, तो उन्होंने अपने गांव के युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रशिक्षित करने का फैसला किया था।
ग्राम पंचायत की सहायता से गुरु गोबिंद सिंह ऑयल रिफाइनरी ने सेवानिवृत्त हवलदार को उपकरण और प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध करानी शुरू कर दी है। पिछले चार वर्षों में करमजीत सिंह ने 11 गांवों के 100 से अधिक युवाओं को सफलतापूर्वक प्रशिक्षित किया है और उनमें से कई सेना और पुलिस में भर्ती होने के लिए चुने गए हैं।

हालांकि, उन्होंने अग्निपथ योजना की शुरुआत के बाद सेना भर्ती रैली की तैयारी में रुचि रखने वाले लोगों की संख्या में गिरावट देखी है। जून 2022 में शुरू की गई अग्निपथ योजना अग्निवीरों – सैनिकों, वायुसैनिकों और नाविकों – को चार साल के लिए सशस्त्र बलों में भर्ती करती है। चार साल के कार्यकाल के अंत में उनमें से 25 प्रतिशत तक योग्यता और संगठनात्मक आवश्यकताओं के अधीन, नियमित रूप से सेवाओं में शामिल होने के लिए स्वेच्छा से आवेदन कर सकते हैं।

करमजीत सिंह ने कहा, “अग्निपथ योजना शुरू होने से पहले आस-पास के गांवों से करीब 100 से 150 युवा सेना भर्ती रैली के लिए प्रशिक्षण लेते थे। अब सेना भर्ती में रुचि रखने वाले व्यक्तियों की संख्या घटकर 50 रह गई है। पहले मध्यम वर्गीय परिवारों के युवा भी सेना भर्ती में रुचि रखते थे। अब, ज़्यादातर उम्मीदवार कमज़ोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं।”

रविंदर सिंह, जो शुरू में सेना में भर्ती होना चाहते थे और उन्होंने प्रशिक्षण भी लिया था। उनके अनुसार अब सवाल यह है कि क्या सेना में चार साल बिताना ज़रूरी है, अगर कोई उस समय का उपयोग अपना खुद का व्यवसाय स्थापित करने या सुरक्षा में काम करने के लिए कर सकता है। नतीजतन, उन्होंने सेना में शामिल होने की अपनी योजना छोड़ दी है।

उन्होंने कहा, “सेना की नौकरी उन युवाओं को नौकरी की सुरक्षा प्रदान करती है, जो प्रतियोगी परीक्षाओं में संघर्ष करते हैं, लेकिन उनका शारीरिक स्वास्थ्य और सहनशक्ति अच्छी होती है। हालांकि, अग्निपथ के लॉन्च के साथ, यह नौकरी की सुरक्षा प्रभावित हुई है।” हालांकि, युवाओं को न केवल नौकरी की सुरक्षा की चिंता है, बल्कि अग्निवीर सैनिक की प्रतिष्ठा में कमी भी चिंता का विषय है।

करमजीत सिंह से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे रिफाइनरी के पास रामा गांव के एक दर्जी के बेटे प्रभजोत सिंह (21) ने कहा, “जब कोई सैनिक रिटायरमेंट के बाद गांव वापस आता है तो उसे सम्मान मिलता है, ठीक हमारे कोच करमजीत सिंह की तरह। उन्होंने 16 साल सेवा में दिए। वह एक पूर्ण सैनिक हैं। लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि चार साल बाद लौटने वाले किसी व्यक्ति के लिए भी वही सम्मान होगा। क्योंकि वह उस टैग से भी लड़ेगा कि सेना ने उसे हटा दिया है।”

करमजीत सिंह ने कहा कि अग्निपथ का पंजाब में अन्य राज्यों की तुलना में सैनिक बनने की इच्छा रखने वालों पर अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव पड़ा है। वो कहतेहैं कि हमारे युवा विदेश जाने या निजी क्षेत्र में समान वेतन वाली अन्य नौकरियों के अवसर प्राप्त करने या अपना खुद का छोटा व्यवसाय शुरू करने का जोखिम उठा सकते हैं। हालांकि, यह अन्य राज्यों के लिए सही नहीं हो सकता है, जहां युवा अग्निपथ योजना के बावजूद सेना में शामिल होंगे।”

तरनतारन जिले के राजोके गांव के गुरविंदर सिंह ने कहा, “मैं सेना में भर्ती को लेकर बहुत उत्साहित था। मैंने लिखित परीक्षा और मेडिकल टेस्ट पास कर लिया था। केवल फिजिकल टेस्ट ही नहीं हुआ और बाद में अग्निपथ लॉन्च हो गया। सेना में नियमित नौकरी का सपना देखने वाला कोई व्यक्ति अग्निपथ को कैसे चुन सकता है? इसने सेना में शामिल होने के बारे में मेरी सारी कल्पनाओं को चकनाचूर कर दिया।” गुरविंदर अब विदेश जाने के अवसरों की तलाश कर रहे हैं।

सीमावर्ती जिले गुरदासपुर में सरकारी भर्ती पूर्व सैनिक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र (एसवीटीसी) के प्रशिक्षक परमजीत सिंह ने कहा, “अग्निपथ के बाद सेना में शामिल होने के इच्छुक युवाओं की संख्या पर असर पड़ा है। पहले, हम आगामी रैलियों के लिए तैयार किए गए बैच में 50 से 60 उम्मीदवार रखते थे। अग्निपथ के बाद, बैच में उम्मीदवारों की संख्या घटकर 25 से 30 रह गई है।” ऐसे केंद्र सभी जिलों में खोले गए हैं।

कांग्रेस का अग्निपथ को ख़त्म करने का वादा

अप्रैल में, कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपना पार्टी घोषणापत्र ‘न्याय पत्र’ जारी करते हुए कहा था कि वह अग्निपथ को समाप्त करेगी और सशस्त्र बलों को पूर्ण स्वीकृत संख्या हासिल करने के लिए सामान्य भर्ती फिर से शुरू करने का निर्देश देगी।

हालांकि, कांग्रेस अग्निपथ योजना को खत्म करने के अपने वादे के साथ युवा आबादी तक पहुंचने में विफल रही है। इंडियन एक्सप्रेस ने कई उम्मीदवारों से बात की, जो इस योजना पर कांग्रेस की घोषणा से अनजान थे। अमृतसर के गुरनाम सिंह ने कहा, “मुझे नहीं पता कि किसी पार्टी ने अग्निवीर को खत्म करने का वादा किया है या नहीं। मुझे नहीं लगता कि राजनेताओं को ऐसे मुद्दों में कोई दिलचस्पी है। वे पार्टी बदलने और कीचड़ उछालने में व्यस्त हैं। उन्हें युवाओं की समस्याओं की कोई परवाह नहीं है।”

गुरदासपुर से कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी यही बात स्वीकार की। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हमारे सीमावर्ती क्षेत्र में आर्थिक रूप से स्थिर परिवारों में भी सेना की नौकरियों को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। यह मुख्य व्यवसायों में से एक था। लेकिन अग्निवीर के बाद अब संख्या में कमी आ रही है। अब यह नौकरी नहीं रह गई है। यह सेना में कुछ अनुभव प्राप्त करने, कुछ पैसे कमाने और फिर सेना में अनुभव के बिना खुले बाजार में फिर से दौड़ में शामिल होने का एक अवसर है। पहले से ही सीमावर्ती क्षेत्र में हमारे पास रोजगार के अवसरों की कमी है। अब नई पीढ़ी के लिए एक पूरा पेशा खत्म हो गया है। लेकिन, वास्तव में, अग्निपथ पर हमारा वादा पंजाब में चर्चा का विषय नहीं बन पाया है।’ बता दें, पंजाब की सभी 13 सीटों पर लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें और अंतिम चरण में 1 जून को मतदान होगा।