बंगाल की राजनीति में सिंगूर कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि यह कहानी स्कूल की किताबों में दर्ज है। ममता बनर्जी सिंगूर के मुद्दे पर सवार होकर ही सूबे के सीएम की कुर्सी तक जा पहुंचीं। हालांकि, 2001 से सिंगूर में ममता की पार्टी जीत हासिल करती आ रही है, लेकिन अब माहौल थोड़ा बदला-बदला है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी तृणमूल पर भारी पड़ी थी। इन चुनावों में बीजेपी को 46.45% वोट मिले जबकि तृणमूल को 41.25% वोटों से ही संतोष करना पड़ा।
सिंगूर का मुद्दा उस समय सरगर्म हुआ जब मई 2006 में टाटा मोटर्स ने नेनो प्लांट लगाने की घोषणा की। इसी साल जुलाई में ममता ने विरोध स्वरूप साइट के नजदीक धान की पौध रोप दीं। जनवरी 2007 में टाटा मोटर्स ने निर्माण शुरू कराया तो ममता ने कोलकाता में भूख हड़ताल शुरू कर दी। अगस्त से प्रोजेक्ट साइट के नजदीक धरना दिया जा रहा था। अक्टूबर 2008 में टाटा ने सिंगूर से जाने का फैसला किया। 2011 में ममता बंगाल की सीएम बन गईं। इसके बाद जून में सिंगूर लैंड री-हेबिलेशन बिल पास कर दिया गया। हालांकि कोलकाता हाईकोर्ट इस बिल को असंवैधानिक करार देकर इस पर रोक लगा देता है। अलबत्ता ममता सरकार सुप्रीम कोर्ट चली जाती है और वहां से फैसला उनके फेवर में होता है। सुप्रीम कोर्ट आदेश देता है कि जो जमीन प्रोजेक्ट के लिए अधिगृहित की गई वो किसानों को लौटाई जाए।
फिलहाल साइट की 997.11 एकड़ जगह लगभग उजाड़ है। नेशनल हाइवे-2 के पास मौजूद एक जर्जर दीवार जरूर बताती है कि कभी यहां नेनो का प्लांट लगाया जाना था। ममता सरकार उन तीन हजार से ज्यादा किसानों को दो हजार रुपए महीने के साथ 16 किलो चावल देती है, जो भूमि अधिगृहण से प्रभावित हुए थे। यहां के लोगों की तस्वीर और तकदीर ज्यादा नहीं बदली लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर हालात जुदा हैं। सिंगूर में 10 अप्रैल को वोट डाले जाने हैं। तृणमूल के 89 वर्षीय सिटिंग एमएलए रबिंदनाथ भट्टाचार्य बीजेपी के खेमे में जा चुके हैं। उम्र को पैमाना बनाकर उनका टिकट ममता ने काट दिया था। तृणमूल ने यहां से 52 वर्षीय बेचाराम मन्ना को उतारा है। उनकी पत्नी को पास की हरिपाल सीट से टिकट दिया गया है। मन्ना और भट्टाचार्य दोनों ही सिंगूर में हुए आंदोलन के दौरान ममता के साथ शिद्दत से जुड़े रहे थे।
बेराबेरी, खसेरभेरी, जॉय मोल्लाह और दूसरे गांवों के लोगों के बीच चर्चा का विषय सिंगूर का मसला है। तृणमूल फिर से किसानों और जमीन को लेकर बात कर रही है तो बीजेपी का वादा है कि वो एहतियात बरतते हुए सिंगूर में उद्योग लाने का प्रयास करेगी। हालांकि लोग इस मसले पर बंटे हुए हैं और अपने-अपने तरीके से बात को रख रहे हैं। बिकास दास उन चंद लोगों में शुमार हैं जिनकी जमीन वापस मिली और वह फिलहाल आलू की खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि आंदोलन में शामिल रहे लोग जिस तरह से एमएलए के टिकट के लिए गुत्थम गुत्था हैं वो गलत है।
2001 से यह सीट तृणमूल के पास है। भट्टाचार्य लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। सिंगूर में अब एक कॉलेज खुल चुका है। ट्रामा सेंटर भी यहां बनाया गया है। किसान मंडी, कंक्रीट की सड़कों के साथ एग्रो पार्क यहां की शोभा बढ़ाने वाला है। इसका निर्माण शुरू हो गया है। इन सबके बीच बीजेपी यहां अपनी जड़ों को लगातार मजबूत करती जा रही है। 2019 में हुगली से सांसद बनीं लॉकेट चटर्जी ने सिंगूर से 10 हजार की बढ़त हासिल की थी। तृणमूल के सिंगूर से उम्मीदवार मन्ना कहते हैं कि यह इलाका ममता का है। उनका कहना है कि नेनो प्लांट एरिया में खेती फिर से शुरू कराई जानी चाहिए। अपनी पत्नी के टिकट देने के मुद्दे पर वह कहते हैं कि वह लंबे अर्से से तृणमूल के लिए काम कर रही थीं।
उधर, भट्टाचार्य इस बात पर हैरत जताते हैं कि 80 पार लोगों को ममता ने इस बार टिकट न देने का फैसला किस आधार पर लिया। इस पैमाने को वह नौ साल पहले पार कर चुके हैं। पिछली बार इसे टिकट का आधार क्यों नहीं बनाया गया। उन्हें हैरत इस बात पर भी है कि मन्ना परिवार को ममता इतनी तरजीह क्यों दे रही हैं। उनके मुताबिक कोई और सिंगूर के लिए मुफीद नहीं हो सकता। भारतीय जनता मजदूर ट्रेड यूनियन भी सिंगूर में अपना उम्मीदवार उतारने जा रही है। पार्टी बीजेपी की लाइन पर चलकतर सिंगूर में फिर से उद्योग लाने की वकालत कर रही है।