दुनिया भर में इस साल फरवरी का महीना सबसे गर्म दर्ज किया गया, जिसमें औसत तापमान 1850-1900 के बीच फरवरी महीने के औसत तापमान से 1.77 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह अवधि पूर्व-औद्योगिक काल का समय था। यूरोपीय संघ की जलवायु परिवर्तन एजंसी ने गुरुवार को यह जानकारी दी।
यूरोपीय संघ की जलवायु परिवर्तन एजंसी ‘कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस’ (सी3एस) ने यह भी कहा कि दस्तावेजों के मुताबिक पिछले साल जुलाई से हर महीना सबसे गर्म ऐसा महीना रहा है। वैज्ञानिकों ने इस असमान्य गर्मी को अल नीनो (मध्य प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रुप से गर्म होने की अवधि) और मानव जनित जलवायु परिवर्तन का मिश्रित प्रभाव बताया है।
सी3एस ने पिछले महीने कहा था कि जनवरी में पहली बार पूरे साल का वैश्विक औसत तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस की परिसीमा को पार कर गया। पेरिस संधि में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की जो सीमा तय की गई है उसका स्थायी उल्लंघन सालों के दौरान वायुमंडल के गर्म होते जाने की स्थिति को दर्शाता है।
जलवायु विज्ञानियों के मुताबिक देशों को जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को औद्योगिक पूर्व काल के औसत तापमान के ऊपर डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की जरूरत है। धरती का वैश्विक सतह तापमान 1850-1900 के औसत तापमान की तुलना में पहले ही करीब 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इस बढ़ते तापमान को दुनियाभर में रिकार्ड सूखा, वनों में आग एवं बाढ़ की वजह माना जा रहा है।
उत्तर पश्चिम भारत में 15 मार्च तक तापमान सामान्य से कम रहने की संभावना : आइएमडी
जनसत्ता: देश में तापमान सामान्य से नीचे बना हुआ है और मार्च मध्य तक यह सामान्य से कम रहने की संभावना है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) ने गुरुवार को कहा कि पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र को प्रभावित करने वाले मौजूदा पश्चिमी विक्षोभ (डब्लूडी) के कारण उत्तरी मैदानी इलाकों में 15 मार्च तक तापमान कम रहने की संभावना है।
आइएमडी के महानिदेशक एम महापात्र के अनुसार, तीन पश्चिमी विक्षोभ एक मार्च से तीन मार्च के बीच क्षेत्र को प्रभावित करने वाले तीन पश्चिमी विक्षोभों की तीव्रता उतनी तीव्र नहीं होगी, जिससे पहाड़ों में व्यापक बारिश और बर्फबारी हुई थी। पश्चिमी तट पर नमी-भरी हवाएं चलती हैं जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र से उत्पन्न होती हैं और हिमालय पर्वतमाला से टकराने से पहले पश्चिम से आती हैं, जहां यह बर्फ और बारिश में बदल जाती है, जिससे मैदानी इलाकों में ठंड की स्थिति बन जाती है। आइएमडी ने कहा कि दक्षिण-पश्चिम राजस्थान और इससे सटे पाकिस्तान में क्षोभमंडल के निचले स्तरों में एक प्रेरित चक्रवाती परिसंचरण देखा गया है।
इसके परिणामस्वरूप, जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख, हिमाचल प्रदेश में गरज के साथ छिटपुट हल्की/मध्यम वर्षा/बर्फबारी और उत्तराखंड में एक-दो स्थानों पर वर्षा/बर्फबारी होने की संभावना है। 9-10 मार्च को दक्षिण राजस्थान को छोड़कर उत्तर-पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में तेज सतही हवाएं (25-35 किमी प्रति घंटे) चलने की संभावना है।