कतिपय विदेशी मैन्युफैक्चरर्स की कोविड वैक्सीनों को भारत में इमरजेंसी उपयोग की अनुमति दी जा सकती है। यह घोषणा सरकार ने मंगलवार देर शाम की थी। घोषणा का मकसद है कि वैक्सीनों के ये निर्माता अपने माल की भारत में शीघ्र बिक्री कर सकें। सरकार ने कहा है कि संभावित अनुमति उन वैक्सीनों के लिए होगी जिन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन सूचीबद्ध कर चुका है, और जिन्हें अमेरिका, ब्रिटेन और जापान के चिकित्सकीय नियंत्रक इमरजेंसी उपयोग के लिए अनुमोदित कर चुके हैं।
सरकार की घोषणा ऐसे वक्त में आई है, जब देश के कई हिस्सों में वैक्सीन की किल्लत की खबरें आ रही हैं। सरकार का कहना है कि उसके कदम से लोगों को विदेशी वैक्सीन शीघ्रता से उपलब्ध हो सकेंगी। भारत में अभी टीकाकरण का सारा दारोमदार दो वैक्सीनों के ऊपर है। इनमें एक है कोवीशील्ड (सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया)। दूसरी है भारत बायोटेक की कोवैक्सीन। अब इसमें रूस की स्पुतनिक-वी वैक्सीन भी जुड़ जाएगी। स्पुतनिक को एक दिन पहले ही आपात्कालीन उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया है।
क्या हैं विदेशी कोविड वैक्सीन के अनुमोदन के नियम
न्यू ड्रग्स एण्ड क्लीनिकल ट्रायल रूल्स-2019 के अनुसार अनुमति मांग रहे निर्माता को वैक्सीन के स्थानीय क्लीनिकल परीक्षण यानी लोकल ट्रायल नतीजे सौंपने होंगे। स्थानीय परीक्षण का आशय भारत में किए गए ट्रायल से है। इन ट्रायल को ब्रिजिंग ट्रायल कहते हैं। इसके तहत वैक्सीन निर्माता को फेज़ दो और तीन के परीक्षण स्थानीय स्तर पर करने होते हैं। इनसे तय होता है कि स्थानीय स्तर पर वैक्सीन कितनी सुरक्षित है और यह कि वह कितना प्रतिरक्षण यानी इम्यूनिटी दे पा रही है। चूंकि विदेशी धरती पर वैक्सीन का परीक्षण हो चुका है, सो स्थानीय परीक्षण में लगभग एक हजार मरीजों पर आज़माइश से काम चला लिया जाता है। इसी के साथ एक क्लीनिकल ट्रायल यह पता करने के लिए किया जाता है कि वैक्सीन भारतीयों के लिए कितना सुरक्षित है।
इन्हीं नियमों के आधार पर पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट में कोवीशील्ड को परखा था। उल्लेखनीय है कि कोवीशील्ड मूलतः विदेशी वैक्सीन है। यह ऑक्सफोर्ड एवं एस्ट्राज़ेन्का द्वारा निर्मित वैक्सीन का ही एक रूप है। रूसी वैक्सीन स्पुतनिक का ब्रिजिंग, यानी भारतीय ट्रायल डॉ रेड्डीज़ की कम्पनी ने किया है।
नियमों में थोड़ी छूट का भी प्रावधान है। लेकिन, यह छूट तभी जब विदेशी वैक्सीन को अपने देश में किसी सरकारी नियंत्रक ने अनुमोदित किया हो।
छूट के लिए निम्न बातें जरूरी हैःं प्रथम, वैक्सीन के ट्रायल में कोई गंभीर, अप्रत्याशित हादसा न हुआ हो। दूसरे, वैक्सीन को गंभीर, जान को खतरे वाली हालत में इस्तेमाल के लिए इंगित किया गया। तीसरे, वैक्सीन को भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए विशेष महत्व का बताया गया हो। और, चौथे वैक्सीन भारत में पूरी न हो पा रही हो।
साफ है कि इतनी छूटों के बाद यह माना जा सकता है कि भारत में स्थानीय स्तर पर दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण अनिवार्य नहीं हैं।
विदेशी निर्माताओं के लिए क्या है इन छूटों का सबब
मतलब यही है कि वैक्सीनों को अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन और जापान के सरकारी नियंत्रकों ने नियंत्रित उपयोग की अनुमति दे रखी है या वे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सूचीबद्ध हो चुकी हैं, उनके निर्माता भारत आकर इमरजेंसी उपयोग की अनुमति मांग सकते हैं।
तो सुरक्षा की गारंटी कैसे होगी
वैक्सीन लगवाने वालों की सुरक्षा के लिए एक खास उपाय किया गया है। इसके तहत पहले सौ लोगों को वैक्सीन दी जाएगी। इसके बाद सात दिन तक परिणामों को जांचा जाएगा। अगर कोई शिकायत न आई तो अनुमोदन दे दिया जाएगा और वैक्सीन सबके लिए खोल दी जाएगी। वैसे, अमुमोदन के बाद भी एक समानान्तर ब्रिजिंग क्लीनिकल ट्रायल जारी रहेगा और वैक्सीन निर्माता को भारतीय अथारिटी के पास सेफ्टी डाटा जमा करना पड़ेगा।
बदलावों का क्या है अर्थ
सरकारी निर्णय से भारतीयों को विदेशी वैक्सीन की सुविधा मिल जाएगी। भारत पहली बार कोविड वैक्सीन आयात करेगा। अब तक उपलब्ध दोनों वैक्सीनें भारत में ही बनती हैं। रूस की स्पुतनिक वैक्सीन भी भारत में ही बनेगी। यह भी संभव है कि भारतीय निर्माता इन वैक्सीनों को थोक में आयात करें।
किन कम्पनियों को होगा फ़ायदा
सिंगल डोज़ वाली वैक्सीन बनाने वाली अमेरिका की महाकाय फार्मा कंपनी जॉन्सन एण्ड जॉन्सन ने भारतीय अधिकारियों से कहा है कि वे भारत में शीघ्र ही ब्रिजिंग क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर देंगे। मंगलवार के निर्णयं के बाद यह कंपनी अपनी वैक्सीन सीधे भी उतार सकती है। यह बताना यहां जरूरी है कि जॉन्सन एण्ड जॉन्सन की वैक्सीन अमेरिका में पचड़े में फंस गई है। क्लॉटिंग के कुछ मामलों के बाद उस पर अस्थायी रोक लग गई है। लेकिन, भारत में उसकी अरजी पर अमेरिकी लफड़े का असर न होगा क्योंकि जॉन्सन एण्ड जॉन्सन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से 12 मार्च को अनुमोदन हासिल कर लिया था।
इसी के साथ अब फाइज़र भी अपनी वैक्सीन एमआरएनए कोविड-19 के लिए पुनः अरजी लगा सकती है। उसने पहले भी अरजी लगाई थी लेकिन तब भारत ने वैक्सीन के असर और सेफ्टी को लेकर और आंकड़े मांग लिए थे, जिसके बाद उसने अप्लीकेशन वापस ले ली थी। उम्मीद है कि सरकार के फैसले के बाद अमेरिकन कंपनी मॉडर्ना को भारतीय मार्केट में प्रवेश की अनुमति मिल सकती है।
नए नियमों का फायदा सीरम इंस्टीट्यूट को भी मिल सकता है। वह कोवोवैक्स नामक वैक्सीन के भारतीय संस्करण शीघ्र अनुमोदन का प्रयास कर सकती है। यह वैक्सीन अमेरिकी कंपनी नोवोवैक्स की है।
क्या होगी कीमत इम्पोर्टेड वैक्सीन की
दामों पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि अभी तक वैक्सीनें इस प्रकार अनुमोदित नहीं की गईं। कोवीशील्ड और कोवैक्सीन प्राइवेट अस्पतालों में ढाई सौ में उपलब्ध है। वैसे, जनवरी स्वास्थ्य मंत्रालय ने दामों का उल्लेख किया था। उसके मुताबिक फाइजर वैक्सीन 1431 रु, माडर्ना वैक्सीन सिंगिल डोज़ 2348 से 2715 के बीच, चीन की साइनोवैक 1927, चीन की साइनोफार्म 5650 और स्पुतनिक 734 रुपए की पड़ सकती है।