उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने लंबे मौखिक तर्क-वितर्कों के कारण न्यायिक फैसलों में होने वाली देर पर चिंता जताते हुए गुरुवार को कहा कि न्यायाधीश और अधिवक्ता समुदाय चाहे तो इन दिक्कतों को दूर किया जा सकता है। अंसारी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 150वें स्थापना वर्ष के सिलसिले में नवनिर्मित न्यायालय भवन में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि कुछ वक्त पहले एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने न्याय में देरी के बारे में किए गए एक सवाल पर कहा था कि लंबे निर्णय, बार-बार होने वाले स्थगन और लम्बे समय तक होने वाले मौखिक तर्क-वितर्क की वजह से न्याय मिलने में देर होती है।
उन्होंने कहा ‘मैं इस संबंध में कहना चाहता हूं कि इनमें से हर कारण दूर किया जा सकता है और अगर न्यायाधीश और अधिवक्ता समुदाय चाहे और प्रतिबद्ध हो तो इन सभी वजहों को दूर किया जा सकता है। पिछली पीढ़ियों में न्यायिक निर्णय संक्षिप्त और गूढ़ होते थे और कोई बड़ी वजह होने पर ही स्थगन की अनुमति दी जाती थी।’
उपराष्ट्रपति ने कहा ‘जहां तक लंबे-लंबे मौखिक तर्क-वितर्कों का संबंध है तो यह भारतीय बीमारी है। अमेरिका के उच्चतम न्यायालय में हर पक्ष को मौखिक रूप से अपनी बात प्रस्तुत करने के लिए केवल 30 मिनट का समय दिया जाता है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि लफ्फाजी से निजात ना पाई जा सके।’
अंसारी ने कहा ‘कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार न्यायाधीशों को अपने दायित्वों का निर्वहन तटस्थता और निष्पक्षता के साथ करना चाहिए। जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह न्यायपालिका में भी पहली अपेक्षा यही होती है कि ईमानदारी का पालन हर समय और हर स्तर पर किया जाना चाहिए।’
अंसारी ने कहा कि परिवर्तनशील दुनिया ने भूमंडलीकरण को एक अपरिहार्य आवश्यकता बना दिया है। मौलिक विश्लेषण के रूप में देखें तो इसे सिर्फ आर्थिक और उद्योग नीति तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि वैश्विक मानकों तक इसके विस्तारण के लिए सभी क्षेत्रों में, जिसमें न्यायिक व्यवस्था के क्षेत्र भी शामिल हैं, तक यह फैल गया है। हम जितनी जल्दी इसके साथ सामंजस्य कर लेते हैं, जनता को अंतत: इससे लाभ मिलेगा।
उपराष्ट्रपति ने फली नरीमन को उद्धत करते हुए कहा ‘न्यायाधीश किसी सामाजिक कार्यक्रम के बिना सुधारक न होकर केवल समस्या सुलझाने वाले होते हैं लेकिन उनका भी अपना महत्व है। मैं एक विकासवादी उन्नत न्यायपालिका के लिए आदर्श तालमेल में विश्वास रखता हूं, जिसमें उच्च न्यायालयों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट शामिल हैं। इनमें तीन चौथाई समस्या को सुलझाने वाले और एक चौथाई सुधारक न्यायाधीश हैं।’
उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट देश के सबसे प्राचीन उच्च न्यायालयों में से एक है। वर्तमान में यह कार्यभार, न्यायाधीशों की संख्या और खेदजनक ढंग से पीठ में रिक्तियों की दृष्टि से भी सबसे बड़ा न्यायालय है। कार्यक्रम को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक, इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के प्रतिनिधि के तौर पर बेसिक शिक्षा मंत्री अहमद हसन ने भी संबोधित किया।