बिहार की राजनीति में इस समय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी वीर कुंवर को लेकर राजनीति सरगर्म है। उनके जन्म दिन यानि 23 अप्रैल पर बीजेपी गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड को ध्वस्त करने की तैयारी कर रही है। वहीं लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल का कहना है कि वीर कुंवर बिहार नहीं बल्कि सारे भारत के हैं। बीजेपी जो कुछ कर रही है वो राष्ट्रवाद की ओवरडोज है।

एक दिन में 57 हजार राष्ट्रीय ध्वज फहराकर पाकिस्तान ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराया था। अब बीजेपी इसे वीर कुंवर के नाम करना चाहती है। हालांकि उनकी जन्म दिवस पर होने वाले कार्यक्रम को पहले बिहार सरकार आयोजित करती थी। लेकिन इस साल अमित शाह की मौजूदगी में केंद्र ने इसे अपने हाथ में ले लिया। बीजेपी आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर अमृत महोत्सव प्रोग्राम करने जा रही है।

वीर कुंवर का जन्मस्थान जगदीश पुर आरा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। यहां से अब बीजेपी के आरके सिंह सांसद हैं। बीजेपी का कहना है कि आजादी की लड़ाई के उन हीरोज को याद किया जाता रहा है जो कांग्रेस से जुड़े रहे थे। वीर कुंवर व रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान को बिसराया गया है। उधर, नीतीश की जदयू को भी बीजेपी का झंडा फहराने का प्रोग्राम अटपटा लग रहा है। पार्टी का कहना है कि वीर कुंवर को याद करना अच्छा है पर 75 हजार झंडे फहराने की कवायद समझ से बाहर है।

वीर कुंवर ने 80 की उम्र में लिया था अंग्रेजों से लोहा

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा कुंवर सिंह ने जगदीशपुर को अंग्रेजों के कब्जे से आजाद कराया था। और वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। कुंवर सिंह 1857 की क्रांति के ऐसे नायक थे। जिन्होंने अपनी छोटी-सी रियासत की सेना के दम पर आरा से लेकर आजमगढ़ तक में ब्रिटिश सेना से लड़ाई लड़कर कई जगह जीत हासिल की थी। 80 साल की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जिस साहस का उन्होंने परिचय दिया, वो अतुलनीय था। उनका प्रभाव झारखंड, यूपी और एमपी तक था।

बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में वीर कुंवर का जन्म 1777 में हुआ। माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद भारत में वह दूसरे योद्धा थे जिन्हें गोरिल्ला युद्ध नीति की जानकारी थी। इसका उपयोग उन्होंने बार-बार अंग्रेजों को हराने के लिए किया था। 1857 में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तब वीर कुंवर ने अपनी शक्ति को एकजुट किया और अंग्रेजी सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला। उन्होंने अपने सैनिकों और कुछ साथियों के साथ मिलकर सबसे पहले आरा नगर से अंग्रेजी आधिपत्य को समाप्त किया।

उन्होंने जगदीशपुर व आजमगढ़ को भी आजाद कराया। उनके कारण अंग्रेजी हुकूमत के बीच आजमगढ़ 81 दिनों तक आजाद रहा था। 1958 में गंगा नदी पार करते उनके बाएं हाथ में अंग्रेजों की गोली लगी तो उन्होंने अपनी तलवार से वो बाजू काट दी। वो नहीं चाहते थे कि उनका शरीर भी अंग्रेजों के हाथ लगे। अंग्रेजों को हराकर वो अपने महल में वापस लौटे लेकिन उनका घाव इतना गहरा हो चुका था कि बच ना सके। 26 अप्रैल 1858 को इस बूढ़े शेर ने दुनिया को अलविदा कह दिया।