Varun Gandhi Politics: भाजपा नेता वरुण गांधी हाल ही में गलत वजहों से चर्चा में रहे हैं, लेकिन आंदोलनकारी किसानों, विरोध करने वाले युवाओं और मध्यम वर्ग के मुद्दों को लेकर भाजपा के साथ उनके टकराव को वे “सही” मानते हैं। 42 वर्षीय नेता इस बार बिना किसी वजह के फिर से खबरों में हैं। इस हफ्ते की शुरुआत में अपनी भारत जोड़ो यात्रा के मौके पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी से पूछा गया था कि अगर चचेरे भाई वरुण मार्च में शामिल होना चाहें तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी।
राहुल गांधी ने कहा- वरुण और कांग्रेस का मेल नहीं
इस पर खुद को किसी भी तरह से प्रतिबद्ध नहीं करते हुए, राहुल ने कहा कि वरुण और कांग्रेस की विचारधाराएं मेल नहीं खाती हैं, उनके लिए आरएसएस की विचारधारा को स्वीकार करना “असंभव” है, जिसे वरुण ने अपनाया है, और अगर वरुण ने ऐसा फैसला लिया तो उनके सामने भी मुश्किलें आएंगी।
वरुण ने कभी भी कांग्रेस में जाने की इच्छा नहीं जताई
तीन बार के भाजपा सांसद और पार्टी के पूर्व महासचिव वरुण के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल के बयान का कुछ अलग अर्थ नहीं निकालना चाहिए। यूपी से भाजपा के एक नेता ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि वरुण ने अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त किए हैं और वे विचार भाजपा के विचारों से थोड़ा अलग है, आप यह नहीं कह सकते कि वह कांग्रेस में शामिल होने के इच्छुक हैं। वह अपनी अलग राय रखते हैं और जो सही लगता है उसे व्यक्त करते हैं। जहां तक मुझे याद है उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है और न ही इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है।’
भाजपा के अंदर वरुण का रवैया अनुशासनहीनता के दायरे में माना जा रहा है
नेता कहते हैं कि वरुण की भाजपा नेताओं की आलोचना नीतिगत मुद्दों पर आधारित है, और उन्होंने कोई व्यक्तिगत या वैचारिक हमला नहीं किया है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि वरुण के लगातार बयानबाजी करने के मामले में भाजपा नरमी नहीं बरत रही है। ‘बीजेपी जैसी पार्टी में होने के नाते, जो अनुशासन को बहुत महत्व देती है, वरुण गांधी एक स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं।’ बीजेपी के एक पदाधिकारी कहते हैं, “कोई भी पार्टी बार-बार ऐसे बयानों को बर्दाश्त नहीं कर सकती है जो उसकी सरकारों द्वारा लिए गए फैसलों की आलोचना करते हों। यदि वरुण को कोई आशंका या आपत्ति है तो उसे संबंधित प्राधिकारी को इसकी सूचना देनी चाहिए। आप प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखकर उनके देखने से पहले उन्हें ट्विटर पर जारी नहीं कर सकते। यह अनुशासनहीनता है।”
2021 में वरुण और मां मेनका गांधी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया गया था
अक्टूबर 2021 में, वरुण और आठ बार की सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री उनकी मां मेनका गांधी, जिनको लगता है कि मोदी सरकार का भरोसा उन पर नहीं रह गया है, दोनों पुनर्गठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी से भी बाहर हो गये थे। वरुण पहली बार 2009 में अपनी मां के निर्वाचन क्षेत्र पीलीभीत से सांसद के रूप में बड़े अंतर से जीते। उन्होंने सुल्तानपुर (2014, 2019) से अगले दो चुनाव फिर से अच्छे अंतर से लड़े और जीते। वह दो पुस्तकों के लेखक भी हैं – द रूरल मेनिफेस्टो: रियलाइज़िंग इंडियाज फ्यूचर थ्रू हर विलेजेज, ऑन इंडियन रूरल इकोनॉमी; और द इंडियन मेट्रोपोलिस: डिकंस्ट्रक्टिंग इंडियाज़ अर्बन स्पेसेस, जो अगले महीने रिलीज होने जा रही है।
जिन मुद्दों पर वह पार्टी लाइन से भटक गए हैं, उनमें रोहिंग्या मुसलमानों, विवादास्पद कृषि विधेयकों और सरकार की महत्वाकांक्षी अग्निपथ योजना से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। जबकि रोहिंग्या जो अक्सर “घुसपैठियों” के खिलाफ भाजपा के अभियान का टारगेट बनते हैं, वरुण उनके लिए शरण देने की वकालत करते हैं, क्योंकि वे म्यांमार में धार्मिक उत्पीड़न से भागकर आए हैं। अग्निपथ पर, उन्होंने कहा है कि वह सशस्त्र बलों द्वारा लोगों को अनुबंध पर लेने का विरोध करते हैं क्योंकि रक्षा नौकरी “राष्ट्र के लिए एक पवित्र प्रतिबद्धता” है।
2011 में, केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने से पहले, वह उन कुछ सांसदों में से एक थे, जिन्होंने जन लोकपाल की मांग को लेकर अन्ना हजारे के विरोध का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया था। उन्होंने इस पर एक प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश किया। 2015 में, वरुण एकमात्र भाजपा सांसद थे जिन्होंने समलैंगिकता को अपराध से बाहर करने के लिए शशि थरूर के निजी विधेयक के पक्ष में मतदान किया था। 2017 में, जब उन्होंने लोकसभा में बोलते हुए सांसदों द्वारा अपने स्वयं के वेतन का निर्णय लेने पर आपत्ति जताई थी।
केंद्र के विवादास्पद कृषि बिलों के खिलाफ आंदोलन के दौरान – जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया – वरुण ने पार्टी की अवहेलना करते हुए किसानों का समर्थन किया। विधेयकों को वापस लेने के बाद, उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर विरोध करने वालों के परिवारों के लिए मुआवजे के रूप में 1 करोड़ रुपये की मांग की, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ “राजनीतिक रूप से प्रेरित झूठी एफआईआर” वापस लेने और कानूनी रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बाध्यकारी बनाने की मांग की थी।