भारत ने 9 माह के भीतर 100 करोड़ और 18 माह की मियाद में 200 करोड़ वैक्सीन लगाकर सारी दुनिया को दिखा दिया कि भागीदारी से चलाए गए अभियान की अहमियत क्या है। हालांकि कोविड संक्रमण के दौरान बहुत सारी चुनौतियां सामने आई। लेकिन लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए मोमेंटम रूटीन इम्युनाइजेशन ट्रांसफारमेशन एंड इक्विटी (M-RITE) प्रोजेक्ट को भारत में जॉन स्नो इंडिया प्रा. लि. ने लागू किया। USAID का इसे सपोर्ट है। भारत सरकार के दिशानिर्देश में चलाए जा रहे प्रोजेक्ट प्रोजेक्ट का उद्देश्य उन लोगों तक पहुंचना है जो वैक्सीन लेने से हिचकते हैं। हाशिए पर मौजूद इन लोगों को देश के 18 सूबों में वैक्सीन दी जा रही है। सितंबर 2021 तक 26 विकसित संस्थाओं और सब अवार्डीज का चयन किया गया, जो 298 जिलों में धरातल पर सक्रिय हैं। एक साक्षात्कार में SAATHII (सॉलिडेरिटी एंड एक्शन अगेंस्ट द एचआईवी इंफेक्शन इन इंडिया) और MFM (मिशन फाउंडेशन मूवमेंट) ने अपने उन अनुभवों को साझा किया जो उनके सामने आए।
SAATHII से मनीष का कहना है कि मोमेंटम रूटीन इम्युनाइजेशन ट्रांसफारमेशन एंड इक्विटी प्रोजेक्ट का काम समाज के कमजोर वर्गों तक पहुंचना है। क्या आपके दिमाग में कोई टारगेट ग्रुप था, जिनके पास पहुंचना जरूरी था?
जब हमने अपना काम शुरू किया, तब हम ऐसे लोगों की तलाश में थे जो एचआईवी पेशेंट हैं, या फिर ट्रांसजेंडर समुदाय, दिव्यांग, गर्भवती और कुपोषित महिलाएं हैं। लेकिन जब फील्ड में गए तो पता चला कि बहुत से दूसरे समुदाय भी हैं जिन्हें सहायता की जरूरत है। इनमें ऐसे लोग भी थे जो पहाड़ी इलाकों में रहते थे। ये लोग मदुरई और कल्लाकुरुचि जिले के पहाड़ों में रहते हैं। कल्लाकुरुचि में काम की रफ्तार काफी धीमी थी। यहां दूसरे घुमंतू समुदाय भी थे। तमिलनाडु में नरीकुरावा समुदाय है। ये लोग एक जगह पर नहीं ठहरते। इन लोगों में धारणा है कि इनकी इम्युनिटी काफी अच्छी है। इस वजह से इन्हें वैक्सीन की जरूरत नहीं है।
चुनौतियों से पार पाने के लिए क्या रणनीति अपनाई?
कुड्डालोर के मछुआरों को वैक्सीन के लिए तैयार करना काफी मुश्किल भरा था। ये लोग समुद्र में मछली पकड़ने जाते थे। जब ये मछलियों को निकालकर बाजार में भेजते थे, तब बेहतरीन समय था उनके लीडर से बात करने का। कलवरयान जिले में आदिवासी समुदाय छोटे-छोटे ग्रुप में रहते थे। हमारी टीम ने उनसे तब संपर्क किया जब उनका त्यौहार चल रहा था। कुछ इलाकों में चर्च के पादरियों ने रविवार को घोषणा करके लोगों को समझाया।
इन लोगों में वैक्सीन को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां थीं। यहां तक कि पढ़े लिखे लोग भी वैक्सीन को लेकर भ्रमित थे। ये लोग वाट्सऐप ग्रुप पर चल रही सूचनाओं पर यकीन करते थे, बजाए सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन पर विश्वास करने के। हमने प्रोजेक्ट के जरिये इन लोगों को मनाया और वैक्सीन के लिए तैयार किया। ऐसे मौकों को जरिया बनाया गया जब ये लोग एकत्र होते थे।

लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए गए।
गर्भवती और कुपोषित महिलाओं को लेकर हमने खास रणनीति तैयार की। पुड्डूकोटाई, मदुरई, अरियालुर में डॉक्टरों के जरिये इन महिलाओं तक पहुंचने का काम किया गया। मेडिकल पर्सनल के माध्यम से ये सुनिश्चित किया गया कि वैक्सीन लगाते समय इस तरह की महिलाओं को कोई परेशानी न हो। इन लोगों से बात करते समय ध्यान रखा गया कि इनके मन से भय पूरी तरह निकल जाए।
हमें खुशी है कि प्रोजेक्ट से जुड़ने का मौका मिला। प्रोजेक्ट की नेशनल टीम के साथ स्टेट टीम से हमें तकनीकी सहयोग मिला। हमें फायदा हुआ कि तत्काल प्रभाव से हम स्टेट के नोडल अफसरों के साथ नोडल महकमे से अपना संपर्क स्थापित कर सकते थे। हमने अपना काम दिसंबर 2021 में शुरू किया। लेकिन फील्ड वर्क फरवरी और मार्च 2022 में शुरू हो सका। हमने लाखों लोगों से संपर्क करके तीनों डोज उन तक पहुंचाईं। ये लोग 12 साल से ऊपर की उम्र के थे। इस दौरान हमने 51 फीसदी महिलाओं के साथ 49 फीसदी पुरुषों तक संपर्क बनाया।

कई बार टीम को 12 से 13 किमी तक पैदल चलना पड़ता था।
MFM की प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर (कम्युनिटी हेल्थ एंड वुमन इंपावरमेंट) लियानडिवंग का कहना है कि हमने मिजोरम के लुंगेई, मामित और कोलासिब जिले में वैक्सीन को लेकर काम किया। इन इलाकों में वैक्सीन को लेकर हिचक काफी ज्यादा थी। ब्रु और चकमा समुदाय में वैक्सीन को लेकर काफी भ्रांतियां थीं। हमने इन लोगों को समझाने का काम किया। ये लोग दूर दराज के इलाकों में रहते हैं। इनका विश्वास जीतने के लिए कई फ्रंट पर काम किया गया। मिजोरम पहाड़ी इलाका है। ये बात भी एक चुनौती बनी।
मिजोरम में बारिश भी बहुत ज्यादा होती है। कई इलाके ऐसे हैं जहां सड़कें भी नहीं हैं। हमने इस चुनौती से पार पाने के लिए वैक्सीन एक्सप्रेस चलाई। लेकिन ऐसे कई इलाके थे, जहां वैक्सीन एक्सप्रेस भी नहीं जा सकती थी। खासकर जहां ब्रु और चकमा समुदाय के लोग रहते हैं। हमारी टीम ने 5-10 किमी तक पैदल चलकर इन लोगों तक अपनी पहुंच बनाई। कई बार इन लोगों तक पहुंचने के लिए 12 से 13 घंटे तक लगातार चलना पड़ता था।
वैक्सीन एक्सप्रेस के जरिये अपने टारगेट को पूरा करने में काफी आसानी हुई। ये एक ऐसा वाहन है जो ऐसी जगहों पर भी पहुंच जाता है जहां सामान्य वाहन नहीं पहुंच सकते। वैन दिव्यांगों तक पहुंचने का भी बड़ा जरिया बनी। हमने पहले अपनी प्राथमिकताएं तय की और फिर उनको पूरा करने के लिए खास रणनीति तैयार की। जो लोग वैक्सीन को लेकर हिचक रहे थे। उनके लिए काम हुआ। पोस्टरों, चलचित्रों जैसे साधनों से इन लोगों को जागरूक किया।
हमने पहली डोज के तौर पर 7059 खुराक दीं। दूसरी डोज में 11 458 खुराकें दी गईं। 1726 ब्रु और 2443 चकमाओं को वैक्सीन दी जा चुकी है। स्पेशल वैक्सीन केंपेन के जरिये भी काम हुआ। हर घर दस्तक कैंपेन में 4689 लोगों को टीका लगाया गया। ये सारा काम एक साल से कम समय में पूरा कर लिया गया। हमने जो काम फील्ड में किया वो हम अकेले दम पर पूरा नहीं कर सकते थे। हमें हेल्थ डिपार्टमेंट के साथ यंग मिजो एसोसिएशन, विलेज काउंसिल मेंबर्स के माध्यम से अपना काम पूरा किया। धार्मिक नेताओं के साथ ऐसे लोगों की सहायता भी ली गई जिनमें लोगों का विश्वास था।
Disclaimer: मोमेंटम रूटीन इम्युनाइजेशन ट्रांसफारमेशन एंड इक्विटी प्रोजेक्ट को भारत में जॉन स्नो इंडिया प्रा. लि. ने लागू किया है। USAID का इसे सपोर्ट है। भारत सरकार ने भी प्रोजेक्ट को अपनी मंजूरी दी है। प्रोजेक्ट का ध्येय सरकार की उन लोगों तक पहुंचने में सहायता करना है जो वैक्सीन लेने से हिचकते हैं। हाशिए पर मौजूद इन लोगों को देश के 18 सूबों में वैक्सीन दी जानी है। इसके लिए स्वयं सेवी संगठनों से तालमेल कर प्रोग्राम को आगे बढ़ाया जा रहा है। (विजिट करें: https://usaidmomentum.org/)