उत्तराखंड हाई कोर्ट ने मंगलवार को नौ बागी कांग्रेस विधायकों की सदस्यता खत्म किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल को जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया। नैनीताल स्थित हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी के एकलपीठ ने अध्यक्ष कुंजवाल को 18 अप्रैल को प्रति शपथपत्र दाखिल करने को कहा है, जबकि याचिकाकर्ताओं को 22 अप्रैल तक उसका जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी।

बागी विधायकों का मुकदमा लड़ रहे वकीलों में से एक साकेत बहुगुणा ने संवाददाताओं को बताया कि याचिकाकर्ताओं (अयोग्य घोषित हो चुके विधायकों) की ओर से याचिका के लंबित होने की अवधि में चुनाव आयोग द्वारा उनके प्रतिनिधित्व वाले विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव कराए जाने संबंधी व्यक्त की गई आशंकाओं के जवाब में न्यायमूर्ति ध्यानी ने कहा कि अगर ऐसा कुछ होता है तो वे अदालत में आकर संरक्षण की मांग कर सकते हैं।

न्यायमूर्ति ध्यानी ने हालांकि याचिका पर यह कहते हुए अंतरिम आदेश पारित करने से मना कर दिया कि एक ऐसी ही मिलती-जुलती याचिका हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट के खंडपीठ के सामने लंबित है।

विधानसभा अध्यक्ष कुंजवाल के बागी कांग्रेस विधायकों की सदस्यता खत्म करने के फैसले को उचित ठहराते हुए उनके वकील और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की भाजपा की मांग के समर्थन में उनका खुल कर आना उनकी सदस्यता समाप्त होने का पर्याप्त आधार है।

बागी विधायकों के इस तर्क को काटते हुए कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बगावत जैसा कुछ भी नहीं किया है, सिब्बल ने कहा कि वे भाजपा विधायकों के साथ बस में बैठ कर राजभवन गए और फिर उनके साथ ही एक चार्टर्ड विमान से दिल्ली चले गए। उन्होंने कहा कि यह सब उस पार्टी के साथ बगावत ही है, जिसके चिह्न पर चुनाव लड़ कर उन्होंने अपनी विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की।

हाई कोर्ट ने सोमवार को याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुना था। अध्यक्ष कुंजवाल के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं की तरफ से उनके वकीलों दिनेश द्विवेदी और नागेश्वर राव ने दलील दी थी कि राज्य सरकार के खिलाफ जाने को पार्टी के खिलाफ होना नहीं माना जा सकता और इसलिए दल-बदल कानून के तहत उनका विधायकों की सदस्यता समाप्त करने का फैसला सही नहीं है। इस पर राव ने दलील दी थी कि अयोग्य घोषित किए गए विधायकों ने न तो अपनी पार्टी छोड़ी है और न ही किसी और दल की सदस्यता ली है। तो ऐसे में उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म किए जाने का आधार क्या है।

मालूम हो कि 18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पर मतविभाजन की भाजपा विधायकों की मांग के समर्थन में खड़े होने वाले नौ कांग्रेस विधायकों की सदस्यता अध्यक्ष ने 27 मार्च को समाप्त कर दी थी। कांग्रेस विधायकों के हरीश रावत सरकार से बगावत करने के बाद प्रदेश में सियासी संकट पैदा हो गया। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। नौ बागी विधायकों में से छह ने अध्यक्ष के फैसले को अदालत में चुनौती दी है।