हरिद्वार संसदीय क्षेत्र के भगवानपुर विधानसभा उपचुनाव में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर को रोकने में सफल रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार ममता राकेश ने भाजपा उम्मीदवार राजपाल को हराकर भाजपा की उत्तराखंड में हवा निकाल दी है।

इस जीत से मुख्यमंत्री हरीश रावत का राजनीतिक कद बढ़ गया है। ममता राकेश की जीत के साथ ही उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार तीन साल बाद पूर्ण बहुमत में आ गई है। कांग्रेस को बहुमत का 36 सीटों का जादुई आंकड़ा हासिल हो गया है। अब रावत को निर्दलीय विधायकों, बसपा और उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के विधायकों का समर्थन लेने की जरूरत नहीं रह गई है। मुख्यमंत्री पर कांग्रेस विधायकों का दबाव पड़ना भी शुरू हो गया है कि निर्दलीय व उक्रांद के कोटे से बने मंत्रियों को हटाकर कांग्रेस विधायकों में से मंत्री बनाया जाए।

कांग्रेस उम्मीदवार ममता राकेश को 59,205 और भाजपा के राजपाल सिंह 22,296 मत मिले हैं। ममता राकेश 36,909 मतों से जीती हैं। हरिद्वार संसदीय सीट से अब तक किसी उम्मीदवार ने इतने ज्यादा मतों से जीत हासिल नहीं की है। हरिद्वार जनपद और संसदीय क्षेत्र में ममता राकेश पहली महिला विधायक भी निर्वाचित हुई हैं।

भगवानपुर विधानसभा सीट उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री और बसपा विधायक सुरेंद्र राकेश के निधन के बाद खाली हुई थी। कांग्रेस ने सुरेंद्र राकेश की पत्नी ममता को चुनाव मैदान में उतारा। ममता राकेश के प्रति क्षेत्र की जनता में जबरदस्त सहानुभूति थी।

इसी कारण उन्हें भारी मतों से जीत हासिल हुई। मुसलमानों और हरिजनों के मतों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में हुआ। बसपा और सपा ने यहां उम्मीदवार नहीं उतारे थे। इससे कांग्रेस के पक्ष में गैर-भाजपाई मतों का ध्रुवीकरण हो गया। पिछले नौ महीने में उत्तराखंड में विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की लगातार यह चौथी हार और कांग्रेस की चौथी है। इससे राज्य के कांग्रेसियों का मनोबल बढ़ा है।

हरिद्वार से सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भगवानपुर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत पर कहा कि भगवानपुर विधानसभा सीट पर हारने के बावजूद भाजपा का 2012 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले मत फीसद बढ़ा है। उन्होंने कहा कि रावत ने यहां पूरी सरकारी मशीनरी झोंक रखी थी।

मुख्यमंत्री को भगवानपुर विधानसभा क्षेत्र के गली-कूचों की खाक छाननी पड़ी। पहली बार किसी मुख्यमंत्री को विधानसभा उपचुनाव में दर्जनभर से ज्यादा जनसभाएं और नुक्कड़ सभाएं करनी पड़ीं। उन्होंने कहा कि इस बार बसपा चुनाव मैदान में नहीं थी। बसपा चुनाव मैदान में होती तो इस सीट पर लड़ाई बसपा बनाम भाजपा होती और नतीजे कुछ और होते।

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