Allahabad High Court Stamp Duty Judgement: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा स्टाम्प ड्यूटी रिफंड रोकने के आदेश को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि तकनीकी कारणों से किसी व्यक्ति के वैध वित्तीय अधिकार को खत्म नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकार संशोधित नियमों का इस्तेमाल कर नागरिकों के हक को नहीं छीन सकती।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का दिया था हवाला

यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने सीमा पडालिया व अन्य की याचिका पर दिया। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की थी। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार को पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।

मामले के अनुसार, याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2015 में 4.37 लाख रुपये के स्टाम्प पेपर खरीदे थे। ये स्टाम्प पेपर नोएडा के सेक्टर 121 में मेसर्स एजीसी रियल्टी प्राइवेट लिमिटेड के साथ 121 आवासीय इकाइयों की बिक्री और उप-पट्टा समझौते के लिए खरीदे गए थे। लेकिन नोएडा प्राधिकरण ने प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी, जिससे यह समझौता पंजीकृत नहीं हो सका।

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इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने नवंबर 2023 में अपनी बुकिंग रद्द कर दी और अप्रैल 2024 में स्टाम्प ड्यूटी रिफंड के लिए आवेदन किया। लेकिन सरकार ने यूपी स्टाम्प (5वां संशोधन) नियम, 2021 के तहत यह कहते हुए उनकी मांग नामंजूर कर दी कि वे आठ साल की सीमा अवधि पार कर चुके हैं।

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राज्य सरकार का तर्क था कि संशोधित नियमों के अनुसार, रिफंड आवेदन की सीमा आठ साल है, और याचिकाकर्ताओं का मामला इस दायरे से बाहर हो गया। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर सुप्रीम कोर्ट के “हर्षित हरीश जैन बनाम महाराष्ट्र राज्य” केस का हवाला दिया।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने 2015 में स्टाम्प खरीदे थे, जब यह संशोधन लागू नहीं हुआ था। इसलिए उनका रिफंड अधिकार पुराने नियमों के तहत बरकरार है। कोर्ट ने सरकार के आदेश को रद्द करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं के रिफंड आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर पुनर्विचार कर तीन महीने में निर्णय लिया जाए।