पूर्व केंद्रीय मंत्री और राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती ने बड़ा बयान दिया है। पिछले कुछ समय से वह राजनीतिक गतिविधियों से दूर हैं। 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी, तब उमा भारती अयोध्या में मौजूद थी। वह इस मामले में 32 आरोपियों में से एक थी। इन सभी को 2020 में एक विशेष सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया था। पिछले साल इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी किए जाने के खिलाफ अपील को रद्द कर दिया था।

22 जनवरी को रामलला की मूर्ति के प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने के लिए अयोध्या जाने से कुछ दिन पहले उमा भारती ने द इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार विकास पाठक के साथ राम मंदिर आंदोलन पर चर्चा की।

राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ने के सवाल पर उमा भारती ने कहा, “जब मैं 12 साल की थी तो धार्मिक प्रवचन देने के लिए अयोध्या गई थी। मैं बचपन में रामायण और महाभारत पर प्रवचन दिया करती थी। जब मैं बच्ची थी तो महंत राम चंद्र दास मुझे प्रवचन के लिए वहां ले गए। मैंने वहां ताला लगा देखा और प्रार्थना भी होते देखी। मैंने उनसे पूछा कि वहां ताला क्यों लगा है? उन्होंने मुझे बताया कि मंदिर बहुत पहले टूट गया था। अब अदालत के आदेश के बाद वहां ताला लगा हुआ है लेकिन बाहर प्रार्थना करने की भी अनुमति है। मुझे बहुत बुरा लगा। वह स्मृति मेरे साथ रही।”

1984 में विहिप से जुड़ा एक आंदोलन ‘ज़ोर से बोलो, राम जन्मभूमि का ताला खोलो’ वहां शुरू हुआ। उस समय तक उमा भारती राजनीति में आ चुकी थीं। यहां से उन्हें आंदोलन में भाग लेने के लिए कहा गया और उन्होंने भाग लिया।

6 दिसंबर को क्या हुआ था?

6 दिसंबर से जुड़ी यादों को लेकर उमा भारती ने कहा, “5 दिसंबर को इतनी भारी भीड़ जुटी कि मैंने अपने एक सीनियर से आशंका व्यक्त की कि ये सभी हमारे सहकर्मी नहीं हैं। बहुत से रामभक्त हैं, हो सकता है वो हमारे वश में न हों। उन्होंने मुझसे कहा कि चिंता मत करो। 6 दिसंबर की सुबह आचार्य धर्मेंद्र ने ऋतंभरा जी और मुझे मंच पर जाने के लिए कहा क्योंकि भीड़ बढ़ रही थी। राम जन्मभूमि से करीब आधा किलोमीटर दूर एक इमारत थी, लेकिन वहां से वह स्थान दिखाई देता था। मंच उस इमारत के ऊपर था। मुरली मनोहर जोशी जी, लालकृष्ण आडवाणी जी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया वहां थीं। हमें एक के बाद एक बोलने को कहा गया। संयोगवश, जब मैं बोल रही थी तो मैंने देखा कि कारसेवक ढांचे पर चढ़ रहे हैं। मैं रुक गई। मैं खड़ी थी और उन्हें देख रही थी। अन्य लोग बैठे थे। मैंने बाकी लोगों को बताया कि कारसेवक ढांचे पर चढ़ गए हैं। आडवाणी जी ने माइक्रोफोन पर उनसे नीचे आने की अपील की लेकिन ‘जय श्री राम’ के नारे ऐसे थे कि किसी ने नहीं सुनी।”

उमा भारती ने आगे बताया, “आडवाणी जी ने मुझे इमारत के पीछे से शुरू होने वाले रास्ते से वहां जाने को कहा और कहा कि लोग मेरी बात सुनते हैं। उन्होंने वहां तैनात एडिशनल एसपी अंजू गुप्ता, अपने सहयोगी दीपक चोपड़ा और प्रमोद महाजन को भी मेरे साथ चलने को कहा। हम कार में गए और भीड़ ने हमें घेर लिया। वे मुझ पर चिल्लाए, मुझसे पूछा कि मैं राम जन्मभूमि क्यों जा रही हूं। कोठारी बंधुओं की मां (जिनकी दो साल पहले पुलिस ने गोली मारकर हत्या कर दी थी) ने भी मेरा सामना करते हुए कहा कि इस ढांचे ने उनके बेटों को मार डाला और उन्हें इसे छोड़ देना चाहिए। मैंने अनुरोध किया कि अनुशासन की आवश्यकता है। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि बाबरी ढांचे को ध्वस्त करना ही होगा। कारसेवकों ने मुझे शारीरिक रूप से उठाया और मंच पर ले जाकर छोड़ दिया। हमने जल्द ही सुना कि कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गई है और अर्धसैनिक बल बड़ी संख्या में इक्कठे हो गए हैं। मैं वहां ठहरी थी। बाबरी मस्जिद ढह गई थी। राजमाता ने मुझसे कहा कि उन्हें वहां ले जाओ। वहां सिर्फ मलबे के ढेर थे। मैंने देखा कि सीआरपीएफ के जवान अपने जूते उतारकर रामलला को प्रणाम कर रहे थे। मुझे आश्चर्य हुआ। राजमाता और मैंने अपना सिर ज़मीन पर लगाया।”

आंदोलन में सबसे अधिक सक्रिय कौन था?

आंदोलन में सबसे अधिक सक्रिय कौन था? इस सवाल पर उमा भारती ने कहा, “इसका पहला श्रेय उन कारसेवकों को जाता है जिन्होंने उस दिन ढांचा ढहा दिया था। इसीलिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इस स्थान की खुदाई कर सका। उन्हें नीचे पुरानी संरचनाओं के अवशेष मिले। सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्षों पर विचार किया। ढांचा गिराने के जिम्मेदार कारसेवक थे। लेकिन हम (आडवाणी जी, मैं और अन्य) पर 2017 में चार्जशीट दायर की गई। हमें आरोपी के रूप में नामित किया गया और अपराधियों में बदल दिया गया। लेकिन मुझे बिल्कुल भी चिंता नहीं हुई। अगर कारसेवकों को बचाने के लिए उन पर फायरिंग होती तो मैं उसी दिन मरना चाहती थी। आख़िरकार जब मोदी जी प्रधानमंत्री के रूप में अयोध्या में हुए शिलान्यास में शामिल हुए, तो जिस तरह उन्होंने बिना किसी हिंदू-मुस्लिम विद्वेष के ऐसा किया, उससे हमारा सिर दुनिया में ऊंचा हो गया। दुनिया ने भारत को जाति और धार्मिक विवादों के नजरिये से देखा था। जिस तरह से पीएम के रूप में मोदी जी, गृह मंत्री के रूप में अमित शाह जी और सीएम के रूप में योगी (आदित्यनाथ) जी ने काम किया, उससे हमें गर्व हुआ। मैं उन्हें इसका श्रेय देती हूं। राष्ट्रीय एकता की उस भावना ने आज तक राम जन्मभूमि पर कोई तनाव उत्पन्न नहीं होने दिया।”

दंगों के लिए कांग्रेस को ठहराया जिम्मेदार

1990-92 के दौरान दंगे हुए और लोग मारे गए। क्या खून खराबे से बचना नहीं चाहिए था? इस सवाल के जवाब में उमा भारती ने कहा, “2010 में इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद कोई दंगा नहीं हुआ। 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कोई दंगा नहीं हुआ। उसके बाद जब प्रधानमंत्री शिलान्यास में शामिल हुए तो कोई दंगा नहीं हुआ। अब जब उद्घाटन होने वाला है तो कोई तनाव या डर नहीं है। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस ने पूरी प्लानिंग के साथ 1990-92 में डर पैदा करने के लिए विभाजन की स्थिति पैदा की थी। इसके अलावा कम्युनिस्ट हिंदुओं से नफरत करते हैं और चाहते हैं कि हिंदू और मुसलमान आपस में लड़ें। दंगे होते नहीं, करवाए जाते हैं। हिंदू और मुसलमान शांति से रह सकते हैं।”

प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण पर उमा भारती ने क्या कहा?

प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए विपक्षी नेताओं, उद्योगपतियों, मशहूर हस्तियों को निमंत्रण पर उमा भारती ने कहा, “निमंत्रण (राम मंदिर) ट्रस्ट का निर्णय है, कोई राजनीतिक आह्वान नहीं। राम भक्ति पर हमारा कोई कॉपीराइट नहीं है। भगवान राम और हनुमान जी बीजेपी नेता नहीं हैं। वे हमारे राष्ट्रीय सम्मान हैं। उनके मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में कोई भी भाग ले सकता है और किसी को भी आमंत्रित किया जा सकता है। मैं सभी राजनेताओं से भी कहूंगी, इसे राजनीतिक दृष्टि से न देखें। आपके घरों में भी राम की तस्वीरें हैं। आपके नाम में राम हो सकता है। इसमें भाग लें, डरो मत कि तुम्हें वोट मिलेंगे। मैं बीजेपी वालों से भी कहूंगी- इस अहंकार से छुटकारा पाएं कि केवल आप ही राम की भक्ति कर सकते हैं। मैं विपक्ष से कहूंगी- अपने आप को इस डर से मुक्त कर लें कि आपको वहां नहीं जाना है। अहंकार या भय से मुक्त होकर हम सभी को खुशी-खुशी भाग लेना चाहिए।”