दो साल पहले दिल्ली के एक वकील और कांग्रेस नेता ने अपनी पार्टी के आला नेताओं तक खबर पहुंचाईथी कि भगोड़ा माफिया सरगना दाऊद इब्राहीम भारत ‘लौटने’ को तैयार है।
इस बात की पुष्टि करते हुए पूर्व यूपीए सरकार के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि ‘वापसी की पेशकश’ की चर्चा पार्टी और सरकार में ‘उच्चतम स्तर’ पर हुई थी। 1993 में दिल दहलाने वाले मुंबई धमाकों के बीस साल बाद दाऊद ने पहली बार भारत आकर मुकदमा का सामना करने की ‘इच्छा’ जाहिर की थी।
सूत्रों का कहना है कि इस‘पेशकश’ के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के बीच भी चर्चा हुई थी। बताया जाता है कि इस वकील ने दाऊद के प्रस्ताव के बारे में कम से कम दो आला कांग्रेस नेताओं से बात की थी। वकील को बताया गया कि ऐसा करना बहुत जल्दबाजी होगी और भारत में दाऊद की शर्तें और उस पर मुकदमा चलाना बेहद जोखिम भरा होगा।
इस बारे में मेनन की टिप्पणी तो नहीं मिल सकी, लेकिन मनमोहन सिंह की ओर से मिले ई-मेल उत्तर में कहा गया कि ‘दाऊद इब्राहीम की वापसी के बारे में किसी व्यक्ति के साथ हुई, किसी चर्चा की मुझे याद नहीं है। ’
लेकिन पूर्व अधिकारियों ने कहा कि इस पेशकश के बारे में सबसे पहले कांग्रेस नेतृत्व को अवगत कराया गया। बाद में प्रधानमंत्री दफ्तर में इस बाबत चर्चा हुई थी। कांगे्रस नेताओं से इस पेशकश की चर्चा करने वाले वकील ने दाऊद और उसकी बदमाश टोली के कई मुकदमे लड़े हैं। कहा जाता है कि यह वकील दाऊद और उसके निकटतर परिजनों के लगातार संपर्क में रहा है।
सूत्रों का कहना है कि 2013 में दाऊद के भारत ‘लौटने’ की पेशकश के पीछे की कहानी यह है कि माफिया सरगना गुर्दे की गंभीर बीमारी की चपेट में था और बाकी जिंदगी घरवालों के बीच बिताने के लिए चिंतित था। 1993 में जब वह दुबई में था, उसकी कानूनयाफ्ता मंडली वकालतनामे पर उसके दस्तखत लेने के करीब पहुंच गई थी। यह बात एक नवंबर 1993 की है। वकीलों ने एक याचिका भी तैयार कर ली थी, जिसमें मुंबई धमाके का मामला दिल्ली तब्दील करने की मांग थी। लेकिन कानूनी मशविरे के लंबे सिलसिले के बाद भी यह याचिका दायर नहीं की जा सकी।
इस याचिका के मशविदे में दाऊद इब्राहीम ने मुंबई पुलिस की आलोचना की और कहा कि वह अपनी ‘बेगुनाही’ साबित करना चाहता है। दाऊद ने कुछ दलों के रवैए की आलोचना करते हुए कहा कि ये पार्टियां मुंबई बम धमाकों में उसे घसीटना चाहती हैं।
मुंबई में ‘सांप्रदायिकता भरे माहौल’ की ओर इशारा करते हुए मशविदा याचिका में कहा गया कि मुकदमे को ऐसे न्यायाधिकार क्षेत्र में ले जाया जाए, जहां इंसाफ सही तरीके से मिल सके और बिना किसी पक्षपात के फैसला हो सके।