कृषि कानूनों के खिलाफ कुंडली बॉर्डर पर आंदोलनरत दो किसानों की मौत हो गई। हरियाणा प्रशासन ने पोस्टमार्टम कराने के बाद एक किसान को कोरोना पॉजिटिव बताया है, जबकि किसान नेताओं ने मृतक के कोरोना पीड़ित होने से इन्कार किया है।
मृत किसान का नाम बलबीर सिंह है। वे पटियाला के रहने वाले थे। उनकी मौत बुधवार को हुई। उनका पोस्टमार्टम सोनीपत में किया गया। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि उसने पुलिस के कहने पर पोस्ट मार्टम किया। डाक्टरों ने बताया कि रैपिड एंटीजन टेस्ट में कोरोना वाइरस की मौजूदगी की पुष्टि हुई।
दूसरी ओर किसान नेताओं का कहना है कि बलबीर को कोविड जैसी कोई बीमारी नहीं थी। लेकिन इन लोगों ने उनको डायबिटीज़ का रोगी जरूर बताया है और कहा है कि मौत का कारण शुगर है न कि कोरोना।
पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक ने बताया कि हरियाणा की पुलिस ने हमसे कहा था कि शवों का रैपिड एंटीजन टेस्ट किया जाए। इस टेस्ट में पटियाला के बलबीर सिंह का नतीजा पॉजिटिव निकला। मरने वाले दूसरे किसान का नाम महेंद्र सिंह था। उनका निधन हृदयगति के रुकने से हुआ। वे लुधियाना के रहने वाले थे।
केवल व्यापारिक पक्ष के लिए बनाये कानून समाज को गुलाम बना देंगे,यह कृषी कानून केवल और केवल कृषी व्यापार के पक्ष मे हैं,ये बड़े बड़े उद्योगपती तो 500% गुना तक मुनाफा कमाएंगे और किसान को कुछ नहीं.!#ModiDestroyingFarmers
— Rakesh Tikait (@RakeshTikaitBKU) May 20, 2021
किसान नेताओं ने कहा है कि बलबीर की मौत कोरोना से साबित कराने के पीछे सरकार की साजिश है। वह चाहती है कि किसान और उनका आंदोलन बदनाम होकर बिखर जाए। वह दहशत का माहौल पैदा करना चाहती है यह कह कर कि आंदोलन में डटे किसानों के बीच कोरोना फैल गया है। किसान नेता जगजीत सिंह ने कहा कि आंदोलन के दौरान हमारे चार सौ साथी शहादत दे चुके हैं लेकिन इनमें से किसी की भी मौत कोरोना संक्रमण से नहीं हुई।
पुलिस किसानों के शवों को लेकर जब अस्पताल पहुंची तो वहां अफरातफरी का माहौल हो गया। शवों के साथ कई किसान नेता और साथी किसान भी वहां तक पहुंचे थे। समझा जाता है कि इस घटना के बाद आंदोलनकारी किसान और केंद्र सरकार के बीच पुनःतनाव बढ़ेगा। यह चर्चा और आशंका तो हमेशा से थी कि आंदोलन के बीच कोरोना फैल गया तो क्या होगा। लोग कहते आए हैं कि संक्रमण की स्थिति में सरकार को आंदोलन खत्म कराने में बड़ी सहूलियत होगी।
उधर, किसान नेता राकेश टिकैत क कहना है कि यह आंदोलन अगले नस्ल और फसल बचाने का आंदोलन है। केवल व्यापारिक पक्ष के लिए बनाए कानून समाज को गुलाम बना देंगे,यह कृषी कानून केवल और केवल कृषी व्यापार के पक्ष मे हैं,ये बड़े बड़े उद्योगपती तो 500% गुना तक मुनाफा कमाएंगे और किसान को कुछ नहीं.!