अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर टैरिफ (आयात शुल्क) दोगुना कर 50 फीसदी तक बढ़ा दिया है, लेकिन नई दिल्ली इससे न तो घबराई है और न ही बेचैन है। उल्टे ऐसा लग रहा है कि सरकार आने वाले कुछ हफ्तों या उससे भी ज्यादा समय तक संयम बरतते हुए ट्रंप की बढ़ती बेचैनी को ठंडे दिमाग से देखने को तैयार है। सरकार ने यह साफ कर दिया है कि ट्रंप भारत को रूस से व्यापार रोकने या ब्रिक्स से दूरी बनाने के लिए नहीं कह सकते। इस पूरे मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, “ये हमारे देश की संप्रभुता से जुड़े फैसले हैं। हम अपनी स्वतंत्रता से कभी समझौता नहीं करेंगे।”
उन्होंने आगे कहा, “हम अमेरिका के साथ टैरिफ और व्यापार को लेकर बातचीत करने के लिए तैयार हैं, लेकिन ट्रंप अकसर अपनी मांगें बदलते रहते हैं। भारत का भरोसेमंद और स्थायी साथी रहा रूस से रक्षा उपकरण या तेल खरीदना हो या ब्रिक्स जैसे मंच का हिस्सा होना, ये ऐसे मुद्दे हैं जिनका अमेरिका के साथ व्यापार से कोई लेना-देना नहीं है। इन पर कोई समझौता नहीं हो सकता।”
भारत उन देशों में से है जिन्होंने अमेरिका से व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू की
भारत उन गिने-चुने देशों में से है जिन्होंने अमेरिका से व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू की है और 1 अगस्त से पहले एक अंतरिम समझौता होने की उम्मीद जताई गई है। एक अन्य सूत्र ने बताया, “हम बहुत अच्छी प्रगति कर रहे थे और समझौते के काफी करीब पहुंच गए थे।” उन्होंने कहा, “हां, हमारी अर्थव्यवस्था की प्रकृति को देखते हुए कुछ सीमाएं हैं। कृषि और डेयरी क्षेत्र करोड़ों गरीब किसानों की रोजी-रोटी से जुड़े हैं, इसलिए इन क्षेत्रों को खोलने को लेकर हमारे पास ज्यादा लचीलापन नहीं है।”
सूत्र ने आगे बताया, “फिर भी, हमारे वार्ताकार अमेरिका से बातचीत में पूरी नीयत और आत्मविश्वास के साथ हिस्सा ले रहे हैं। जब हम किसी बात पर सहमत होते हैं, तो उस पर टिके रहते हैं। लेकिन अमेरिका की ओर से ऐसा नहीं होता। कई बार ऐसा हुआ है कि अमेरिकी अधिकारी किसी मुद्दे पर सहमत हुए, लेकिन बाद में राजनीतिक मंजूरी नहीं मिलने पर पीछे हट गए। कई बार तो उन्होंने इसके लिए माफी भी मांगी है… यह सब कहने के बाद भी, बातचीत काफी रचनात्मक रही है और हम समझौते के बहुत करीब थे। लेकिन अब कुछ कूटनीतिक और गैर-व्यापारिक मुद्दे सामने आ गए हैं।”
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नई दिल्ली इस बात को लेकर हैरान है कि भारत-अमेरिका के रिश्तों में दो दशकों में आए सुधार और आपसी रणनीतिक सहयोग के बावजूद ट्रंप इतने दबाव क्यों बना रहे हैं। इस बातचीत से जुड़े एक वरिष्ठ राजनीतिक अधिकारी ने कहा, “एक वजह यह है कि ट्रंप इस बात से खफा हैं कि भारत झुक नहीं रहा, जबकि कई दूसरे देश झुक चुके हैं।” सूत्रों में से एक ने यह भी जोड़ा कि ट्रंप की चिढ़ की एक वजह यह भी हो सकती है।
उन्होंने कहा, “ट्रंप कई बार यह दावा कर चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने में मदद की है, यहां तक कि युद्ध भी रोका। लेकिन भारत ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया, क्योंकि यह सच नहीं है। सरकार ने भी इसका साफ तौर पर खंडन किया है।”
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नई दिल्ली के नजरिए से ट्रंप के साथ बातचीत करने वाले देशों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है। एक तरफ पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश हैं जो अमेरिकी दबाव को झेल नहीं पाए और बड़ी रियायतें दे दीं। इन रियायतों में संभवतः राजनीतिक शर्तें भी शामिल थीं। दूसरी तरफ चीन और कनाडा जैसे देश हैं जो खुलकर विरोध करते हैं और जवाब भी देते हैं।
सूत्रों ने भारत के रुख को “शांत लेकिन मजबूत विरोध” कहा। उनके मुताबिक, “भारत ने अपना एक अलग रास्ता अपनाया है। हम न तो जोर से विरोध करते हैं, न ही चुपचाप झुक जाते हैं। हम दबाव में नहीं आते, लेकिन बिना शोर मचाए अपने रुख पर टिके रहते हैं।”
बेशक अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ से भारत के निर्यात को नुकसान होगा, लेकिन अगर अर्थव्यवस्था को व्यापक नजरिए से देखें, तो फिलहाल देश के लिए आयात निर्यात से ज्यादा अहम माना जा रहा है। एक सूत्र ने कहा, “निर्यात आने वाले वर्षों में हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा, और हमें इसी दिशा में आगे बढ़ना होगा। हम इस चुनौती से बहुत सोच-समझकर निपटेंगे।”
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