आनन्द भारद्वाज
देश के 1.3 फीसद वन हिमालय में हैं। हिमालय घना व असीमित जैव विविधता वाला क्षेत्र है। यह स्थान हजारों प्रकार के दुर्लभ प्रजातियां के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का बसेरा हैं जो इसके लगभग 5.7 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है। हिमालय पर्वत, वहां का पारिस्थितिकी तंत्र, वन्य जीवन, अनमोल वनस्पतियां हमारे देश की अमूल्य प्राकृतिक संपदा है। हिमालय की वजह से ही हमारे देश का पर्यावरण संतुलित हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलाजी रुड़की के एक शोध से यह पता चला है कि हिमालय का पर्यावरण तेजी से बदल रहा है। आज हिमालय की पर्यावरणीय स्थिति अत्यंत संवेदनशील है।
एनआइएच के वैज्ञानिकों के मुताबिक 20 वर्षों में हिमालय में बारिश और बर्फबारी का समय बदल गया है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से झीलें के बनने का सिलसिला भी शुरू हो गया है।मानव ने अपनी गतिविधियों व प्रदूषण से हिमालय के पर्यावरणीय सेहत पर खासा असर डाला है। विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों व भूमि की कटाई-छंटाई, लगातार वनों से अमूल्य प्राकृतिक संपत्ति का दोहन हिमालयी पर्यावरण के लिए खतरा बन गए हैं। आज हिमालयी क्षेत्र की समूची जैव विविधता भी खतरे में हैं। इसके कई कारण हैं। हिमालय के वनों से लगातार होता दोहन, वहां बार-बार लगने वाली अनियंत्रित आग, तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों का पिघलना, जैव विविधता का बड़े पैमाने पर कम या लुप्त होना, कई बड़ी नदियों का सूखना आदि प्रमुख कारण हैं।
इसके अलावा खत्म होते भूजल स्रोत, विकास नाम पर पहाड़ों का खोखला किया जाना, ऊपर से मानव द्वारा फैलाया गया कचरा व प्रदूषण हिमालय के पर्यावरणीय सेहत के लिए खतरनाक हैं। खराब वन प्रबंधन और लोगों में जागरूकता की कमी भी हिमालयी पर्यावरण के खतरे का कारण हैं। विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण और सड़कों का चौड़ीकरण। विस्फोटकों के जरिए अंधाधुंध कटाई-छंटाई से पहाड़ इतने कमजोर हो गए हैं कि थोड़ी सी बारिश होने पर वे धंसने या गिरने लगते हैं।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से 50 से भी अधिक ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। ग्लेशियरों के सिकुड़ने का सीधा प्रभाव हिमालयी वनस्पतियों व वहां रहने वाले जीव जंतुओं, वनों के साथ-साथ निचले हिमालयी क्षेत्रों में फसली पौधों तथा हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर पड़ेगा। इसके अलावा पूरा देश भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा। इसलिए ग्लेशियरों को सिकुड़ने से बचाने के उपाय समय रहते ढूढ़ने होंगे। ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता खतरे में हैं। हिमालय का बदलता पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए वायु, जल एवं अन्न की कमी का कारण हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियरों का पिघलना, वर्षा एवं बर्फबारी के समय चक्र में हो रहे परिवर्तन, समुद्र के तल की ऊंचाई बढ़ने से पूरी दुनिया के सामने एक नया संकट पैदा होने वाला हैं । ऐसी परिस्थिति से निपटना इंसान के लिए वाकई चुनौती भरा होगा। हम यह भूल गए हैं कि अगर हिमालय सुरक्षित नहीं रहेगा तो, हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां भी सुरक्षित नहीं रह सकती हैं।
इसलिए हिमालय को सुरक्षित व संभाल कर रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। हिमालय की नैसर्गिक खूबसूरती और जैव विविधता जितनी हिमालयीे पर्यावरण के लिए अच्छा है, उससे कहीं ज्यादा हमारे लिए जरूरी है। हिमालय का संरक्षण तभी हो पाएगा, जब हम सभी लोग हिमालय के महत्व और हिमालय के उपकारों को समझें। स्थानीय लोगों के साथ-साथ हमारी भावी पीढ़ी खास कर नवयुवाओं को भी हिमालय के संरक्षण के लिए जागरूक होना पड़ेगा और आगे बढ़कर इसके हित के लिए कार्य करना पड़ेगा।