Delhi News: दिल्ली के मजनू के टीले में एक कैंप में करीब 800 हिंदू शरणार्थी रह रहे हैं। इसके अंदर एक मेज पर डीडीए की तरफ से जारी किया गया नोटिस रखा हुआ है। यह कैंप यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में मौजूद और दिल्ली के मास्टर प्लान के अनुसार, जोन O में आता है। यहां पर पर्यावरण संबंधी चिंताओं की वजह से निर्माण और आवास पूरी तरह से बैन है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कैंप में रह रहे एक शख्स ने बताया, ‘भाई नोटिस आ गया है। अब हम कहां जाएंगे। हमें कोई रहने की जगह दिए बिना वे हमें कैसे बेदखल कर सकते हैं। विदेशियों ने भारत और पाकिस्तान को विभाजित करने के लिए कुछ लाइन खींची थीं। उन्हें इस बात की परवाह नहीं थी कि इससे हम पर क्या असर पड़ेगा। हमें उम्मीद थी कि कम से कम भारत सरकार हमारी परवाह करेगी।’

डीडीए ने अपने नोटिस में क्या कहा?

डीडीए ने 14 जुलाई को एक नोटिस जारी किया। इसमें कहा गया, ‘माननीय हाई कोर्ट ने डीडीए के पक्ष में फैसला दिया है। इसके अनुपालन में 15 और 16 जुलाई को मजनू का टीला स्थित गुरुद्वारे के दक्षिण में यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र की डीडीए जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ तोड़फोड़ अभियान चलाने का प्रस्ताव है।’ डीडीए ने लोगों से आग्रह करते हुए कहा, ‘अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो वे लोग 15, 16 जुलाई और उसके बाद अतिक्रमण के खिलाफ तोड़फोड़ अभियान के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार होंगे।’

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700 के पास नहीं है भारतीय नागरिकता

2013 से शिविर में रह रहे धर्मवीर सोलंकी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘इस कैंप में लगभग 1000 लोग रहते हैं। उनमें से 700 के पास भारतीय नागरिकता नहीं है। उनमें से किसी के पास राशन कार्ड नहीं है। कुछ लोग दिसंबर 2014 की सीएए की लास्ट डेट के बाद आए हैं। ऐसी लास्ट डेट क्यों रखी गई।’ पिछले 12 सालों से कैंप में रह रही मैना ने कहा, ‘यह न तो भारत का दोष है, न ही पाकिस्तान का। हमारा दोष यह है कि हम पैदा हुए।’ हाल ही में इस कैंप में आई हुई श्रुति ने कहा कि वहां हमें हिदुस्तानी कहा जाता था और यहां पर हमें पाकिस्तानी कहा जाता है।’

मैं रोजाना सिर्फ 100 रुपये कमाती हूं – मैना

मैना ने कहा, ‘जब मेरा बच्चा फिंगर चिप्स के लिए पैसा मांगता है तो मेरा दिल टूट जाता है। मैं रोजाना सिर्फ 100 रुपये कमाती हूं। मैं अपनी कमाई से ज्यादा खर्च करती हूं। पहले हम मोबाइल फोन के कवर बेचते थे। लेकिन कैंप में एक भी बाढ़ हमें 10 साल पीछे ले जाती है। हमारी जमा-पूंजी, हमारा सामान। सब कुछ बर्बाद हो जाता है।’ यहां पर रहने वाली एक महिला मोहिनी ने कहा, ‘पिछले 10 सालों से हमारे पास बिजली भी नहीं है। यह एक कब्रिस्तान हुआ करता था। एक दशक पहले जमीन में लाशें मिलना आम बात थी। उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे अपने बच्चों की चिंता सता रही है।’  जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना सबसे बड़ी चुनौती