इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में बनी मस्जिद अब वहां नहीं रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करके कहा है कि मस्जिद को तुरंत हटाया जाए। याचिकाकर्ता को ये अनुमति दी गई कि वो राज्य सरकार के पास जाकर अपना पक्ष रख सकता है। इस मामले में वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें मस्जिद को परिसर से हटाने के लिए कहा गया था।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सीटी रवि कुमार और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2017 के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद को हटाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को तीन महीने का वक्त देते हुए स्पेशल लीव पटीशन को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है वो वक्फ बोर्ड की नहीं बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रापर्टी है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जजों की तादाद बढ़ने से 12 जजों के पास बैठने के लिए अपने चेंबर तक नहीं हैं। उन्हें छह जजों के साथ दफ्तर शेयर करना पड़ रहा है। कोर्ट का ये भी कहना था कि मस्जिद के उसके परिसर में होने से दमकल की गाड़ियों को भी भीतर आने का रास्ता नहीं मिल पाता है।

सिब्बल बोले- योगी सरकार बनने के बाद दायर हुई याचिका

हालांकि वक्फ बोर्ड की तरफ से कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि केवल मस्जिद ही दमकल की गाड़ियों का रास्ता नहीं रोक रही हैं। हाईकोर्ट के परिसर में दूसरे भी कई निर्माण हैं जो दमकल के रास्ते में बाधा पैदा करते हैं। सिब्बल का कहना था कि इस मामले में अभिषेक शुक्ला नाम के शख्स ने जो याचिका दायर की थी वो योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद की गई थी। उनका याचिकाकर्ता की मंशा को लेकर सवाल था। सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से दरखास्त की कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक जमीन मुहैया कराई जाए।

वक्फ बोर्ड की तरफ से पेश एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने भी वैकल्पिक जमीन मुहैया कराए जाने की डिमांड की थी। जबकि यूपी सरकार की तरफ से पेश वकील एश्वर्या भाटी ने कहा कि हाईकोर्ट के बगल में ही दूसरी मस्जिद भी मौजूद है। उनका कहना था कि वक्फ बोर्ड का ये कहना ठीक है कि मस्जिद पर उनका मालिकाना हक नहीं है।