बिहार की एक अदालत के एक एडिशनल सेशन जज ने अपने कार्यकाल के दौरान दो फैसले ऐसे दिए जो गलत थे। पटना हाईकोर्ट की स्टैंडिंग कमेटी ने जांच कारई तो आरोप सही साबित हुए। लिहाजा रिटायर हो चुके जज की सारी पेंशन रोक दी गई। रिटायर जज ने फैसले को फिर से हाईकोर्ट की डबल बेंच के सामने चुनौती दी तो जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस हरीश कुमार ने अपनी स्टैंडिंग कमेटी के आदेश को खारिज करते हुए रिटायर जज को राहत दे दी। डबल बेंच ने ये तो माना कि फैसले गलत थे। लेकिन केवल इन गलतियों के लिए उसे सजा नहीं दी जा सकती है।
जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस हरीश कुमार ने सिलसिलेवार उन दोनों फैसलों का विश्लेषण किया जो एडिशनल सेशन जज ने अपने कार्यकाल के दौरान दिए थे। बेंच ने कहा कि जांच का जिम्मा मुजफ्फरपुर के सेशन जज को दिया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में ये तो माना है कि दोनों फैसले गलत थे। लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि फैसले देने के पीछे क्या मंतव्य था। यानि एडिशनल जज को इनसे क्या फायदा पहुंचा या पहुंचने वाला था।
डबल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों रमेश चंदर बनाम इलाहाबाद हाईकोर्ट का हवाला देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि किसी जज को केवल इस बात के लिए सजा नहीं दी जा सकती क्योंकि उसने कोई फैसला गलत दिया था। लिहाजा रिटायर जज को राहत दी जाती है।
आईए समझते हैं कौन से थे दो गलत फैसले
बिहार के मोतिहारी जिले में एडिशनल सेशन जज ने अपने कार्यकाल के दौरान एक ऐसे आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था जो नकली करेंसी के साथ पकड़ा गया था। दूसरे मामले में उन्होंने एक ऐसे आरोपी को डिस्चार्ज कर दिया था, जिसे काफी भागदौड़ के बाद पुलिस ने काबू किया था। दोनों ही मामलों में उनका फैसला शक पैदा करने वाला था। लिहाजा ये मामला हाईकोर्ट की स्टैंडिंग कमेटी के सामने भेजा गया।
याचिकाकर्ता रिटायर हुआ तो बिहार पेंशन रूल्ज 1950 के सेक्शन 43(B) के तहत डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी कराई गई। फिर हाईकोर्ट की स्टैंडिंग कमेटी ने उसकी सारी पेंशन रोक दी। कमेटी का कहना था कि एडिशनल जज रहते आरोपी ने दोनों ही मामलों में गलत और असंगत फैसले दिए। उसने कानून का ध्यान भी नहीं रखा। कमेटी का मानना था कि आरोपी ने जो फैसले दिए उन्हें देखकर लगता नहीं कि वो न्यायिक अधिकारी बनने के लायक भी है।
बचाव में बोला पूर्व जज- दोनों ही मामलों में साक्ष्य रिकार्ड पर नहीं थे
रिटायर एडिशनल जज ने अपने बचाव में डबल बेंच से कहा कि पहले केस में उसने आरोपी को जमानत इस वजह से दी क्योंकि रिकार्ड पर कही भी ये बात नहीं थी कि जो करेंसी उसके पास से पकड़ी गई थी वो जाली थी। दूसरे केस में आरोपी को इस वजह से बरी किया था क्योंकि जिसके पास से नशीले पदार्थ पकड़े गए थे उसकी मौत हो गई थी। दूसरे मामले में रिकार्ड पर कोई भी FSL (फारेंसिक) रिपोर्ट भी नहीं थी।