आखिर वह कौन सी वजह रही जिसके चलते रविवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह समेत केंद्र के एक दर्जन मंत्रियों को उत्तर प्रदेश में मोदी सरकार का गुणगान करना पड़ा? क्या उत्तर प्रदेश का भाजपा कार्यकर्ता केंद्र सरकार की तमाम नसीहतों के बावजूद जनता के बीच जाकर अपनी सरकार की योजनाओं का प्रचार करने से गुरेज कर रहा है? ये ऐसे सवाल हैं जिनकी हकीकत समझ आने के बाद भाजपा शीर्ष नेतृत्व को ग्रामोदय से भारत उदय अभियान के समापन के दिन अपने एक दर्जन मंत्रियों को उत्तर प्रदेश में झोंकना पड़ा।

भाजपा के सूत्रों का कहना है कि एक साल पूर्व पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के आदेश पर केंद्र सरकार की उपलब्धियों से जुड़ा साहित्य कार्यकर्ताओं को दिया गया था। उत्तर प्रदेश में एक करोड़ से अधिक नए सदस्य बना लेने के पार्टी के दावों के बाद इस अभियान की शुरुआत की गई थी। इसके तहत केंद्र सरकार की उपलब्धियों का साहित्य लेकर पार्टी के नेताओं को इन नए सदस्यों के घरों तक पहुंचना था। ऐसा कर भाजपा प्रदेश के 16 करोड़ मतदाताओं में से एक तिहाई तक पहुंचने के सपने को आकार देना चाहती थी।

नए बने सदस्यों के सत्यापन के नाम पर एक पंथ दो काज की सोच से शुरू की गई केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रचार की रणनीति उत्तर प्रदेश में औंधे मुंह गिर पड़ी। इस रणनीति के पूरी तरह फ्लाप होने के बाद भाजपा आलाकमान ने उत्तर प्रदेश में मोदी प्रचार रथ चलवाए। करीब दो सौ की संख्या में उत्तर प्रदेश के गावों तक पहुंचकर इन रथों को केंद्र की योजनाओं की जानकारी प्रदेश की जनता को देनी थी। ये रथ प्रदेश में कहां-कहां घूमे? और इनसे भाजपा को कितना लाभ पहुंचा? इस बात का अंदाजा लगा पाना मुश्किल काम है।

भाजपा के मंत्रियों के उत्तर प्रदेश प्रवास पर वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं कि केंद्र सरकार के एक वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया था कि उनकी सरकार के किए कामों की जानकारी जनता तक नहीं पहुंच पा रही है।
प्रधानमंत्री ने ऐसा कह कर यह संकेत पहले ही दे दिए थे कि केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रचार कर पाने में भाजपा नाकाम रही है। इस सच को एक साल पूर्व जान लेने के बाद भी भाजपा आलाकमान लगातार इस मुगालते को बनाए रहा कि शायद उनके कार्यकर्ता सरकार की फिजा बनाने में जी-जान से जुट जाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

कार्यकर्ताओं की सक्रियता में आर्ई कमी के बारे में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि केंद्र सरकार बनने और दो वर्ष का समय गुजर जाने के बावजूद केंद्र के अधीन आने वाले ऐसे विभागों में, जहां राजनीतिक लोगों को पद दिये जा सकते हैं, कुछ नहीं किया गया। अभी भी ऐसे दर्जनों विभाग हैं जहां कांग्रेस की सरकार में तैनात लोग ही कुर्सियों की शोभा बढ़ा रहे हैं। इससे कार्यकर्ताओं के उत्साह में खासी कमी आई है। यही वजह है कि अब बिना मंत्रियों और सांसदों के आगे आए, कार्यकर्ता घरों से निकलने से कतरा रहा है।

कार्यकर्ताओं की सुस्ती पर राजनीतिक विश्लेषक राजीव भारद्वाज कहते हैं, ‘16वीं लोकसभा के चुनाव में स्थितियां अलग थीं। तब कार्यकर्ता अपनी सरकार बनाने के लिए घरों से बाहर था। लेकिन सरकार बनने के दो वर्ष पूरे होने को हैं और प्रदेश के ज्यादातर कार्यकर्ताओं तक केंद्रीय योजनाओं का लाभ नहीं पहुंचा है।’ वहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि 24 अप्रैल को पंचायत दिवस पर यह कार्यक्रम रखा गया था ताकि पंचायतों की बात सुनी जा सके और केंद्र सरकार का काम उन्हें बताया जा सके।

उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा की छटपटाहट इस बात का संकेत है कि प्रदेश में जमीन पर पांव जमाए रखने में उसे दिक्कतें पेश आ रही हैं। इन दिक्कतों से समय रहते वह कैसे पार पाती है? पार्टी का सियासी भविष्य बहुत हद तक इस पर निर्भर करेगा।