एक अगस्त को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एलान किया कि अमेरिकी सुरक्षा बलों ने अफगानिस्तान में एक ड्रोन हमले में अल कायदा के मुखिया अयमान अल-जवाहिरी को मार गिराया है। जवाहिरी 1990 के दशक से ओसामा बिन लादेन का करीबी हमराज था। उसने लादेन के साथ मिलकर 9/11 आतंकी हमलों की साजिश रची थी। वह काबुल के एक संपन्न मोहल्ले में हक्कानी नेटवर्क के मालिकाना हक वाले मकान में रह रहा था। अमेरिकी ड्रोन हमले का निशाना बनी इमारत भारतीय दूतावास से दो किलोमीटर से भी कम की दूरी पर स्थित है। फिलहाल इस दूतावास में एक ‘तकनीकी टीम’ तैनात है।
खबरों के मुताबिक, जवाहिरी को 31 जुलाई को काबुल स्थित उसके घर पर ड्रोन हमले में मारा गया। अमेरिका ने इसका खुलासा 48 घंटे बाद किया।जवाहिरी काबुल में जिस जगह पर रह रहा था, वहां तालिबान का सबसे मजबूत और खूंखार हक्कानी गुट सक्रिय है। हक्कानी परिवार के कई सदस्य इसी क्षेत्र में रहते हैं। ऐसे में यह मानना काफी मुश्किल है कि जवाहिरी जैसे आतंकी के काबुल में छिपे होने की जानकारी तालिबान के पास न हो। शक जताया जा रहा है कि जवाहिरी की जानकारी अमेरिका को तालिबान ने ही दी।
दरअसल, बीते कुछ महीने में आर्थिक तौर पर अफगानिस्तान की हालत काफी बिगड़ी है। तालिबान के शासन को भी अभी तक कई देशों ने मान्यता नहीं दी है। अमेरिका ने भी अफगानिस्तान के केंद्रीयबैंक की राशि को फ्रीज कर दिया है। ऐसे में लगातार बिगड़ते आर्थिक हालात को सुधारने के लिए यह काफी हद तक संभव है कि तालिबान ने ही अलकायदा सरगना को बोझ माना हो और अमेरिका को जवाहिरी के बारे में जानकारी दे दी।
एक शक यह भी है कि इस अभियान में पाकिस्तान की खुफिया एजंसी आइएसआइ ने अमेरिका की मदद की। जवाहिरी की मौत से एक दिन पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अमेरिका की उप विदेश मंत्री वेंडी शरमन से बातचीत की थी। पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने कई सवाल उठाए थे। अंदाजा लगाया जा रहा है कि बाजवा का यह फोन जवाहिरी की जानकारी देने के लिए ही था।
अमेरिका ने जवाहिरी का सफाया करने के लिए अपने ‘रीपर-एमक्यू ड्रोन’ का इस्तेमाल किया। अफगानिस्तान की सीमाएं पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान से लगती हैं। मौजूदा समय में इनमें से किसी भी देश में अमेरिकी सेना का आधार शिविर नहीं है। अफगानिस्तान के सबसे करीब अमेरिका का बेस कतर में है।
ऐसे में अमेरिकी रीपर ड्रोन के लिए अफगानिस्तान के काबुल पहुंचने का एक रास्ता ईरान के हवाई क्षेत्र से है। चूंकि, अमेरिका और ईरान के रिश्ते पहले ही काफी खराब हैं, इसलिए ईरान के ऊपर से अमेरिकी ड्रोन के उड़ान भरने की संभावनाएं काफी कम हैं। अमेरिकी ड्रोन के लिए दूसरा रास्ता है इराक, अजरबैजान के रास्ते तुर्कमेनिस्तान या ताजिकिस्तान से अफगानिस्तान तक जाने का। अफगानिस्तान तक जाने का तीसरा रास्ता पाकिस्तान से होकर गुजरता है। अमेरिका ने पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान से सेना हटा ली।
अमेरिकी अधिकारियों को साल की शुरूआत में जानकारी मिली कि जवाहिरी के पत्नी और बच्चे काबुल में रहते हैं। अगले कुछ महीनों तक सीआइए के एजंट और उपग्रहों की मदद से उसके घर के आसपास निगरानी की। आखिरकार जून में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को आगे के मिशन को लेकर जानकारी दी गई। 25 जुलाई को इस मिशन को अंजाम देने के लिए अंतिम बैठक हुई। इसमें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सटीक ड्रोन हमले की अनुमति दी।
जवाहिरी के खात्मे के लिए जिस तरह से अभियान चलाया गया, उसे अमेरिकी ओटीएच यानी ह्यक्षितिज के ऊपरह्ण आतंक-निरोधी अभियानों से जुड़ी नीति का दमदार आगाज माना जा रहा है। अमेरिका अब इसी नीति को ह्यआतंक के खिलाफ युद्धह्ण के पुराने तौर-तरीकों के स्थान पर इस्तेमाल में लाना चाहता है। ओटीएच क्षमता के तहत महीनों तक डेटा और खुफिया जानकारियां इकट्ठा करने के साथ-साथ हमले के लिए क्षमताओं की तैनाती तक के छोटे बड़े हर सवाल पर गौर किया जाता है।
क्या है भारत का नजरिया
भारतीय नजरिए से अफगानिस्तान में अमेरिकी ओटीएच क्षमता का जमीन पर उतरना नीतिगत तौर पर एक अनुकूल घटनाक्रम है। ताजा ड्रोन हमले से जाहिर होता है कि कम से कम आतंकनिरोधी मोर्चे पर अमेरिका के इरादे ढीले नहीं पड़े हैं। ओटीएच नीति के जरिए अमेरिका ने संकेत दिया है कि और जंगी तौर-तरीकों के बिना भी खुफिया दांव-पेचों, तकनीकों और भागीदारियों से आतंकनिरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जा सकता है। भारत के लिए भी भविष्य में भागीदारी की संभावना के हिसाब से ये एक उपयुक्त ढांचा बन सकता है।
