प्रेम प्रकाश
धरती पर इंसानी बसावट ने प्राकृतिक बदलाव के कई दौर देखे हैं। पर इसके उलट इंसानी दखलंदाजी के कारण जिस तरह का प्रकृति का कोप अब सामने आ रहा है, वह एक बड़ा सबक है। आलम यह है कि जलवायु संकट की चिंता अब मौसम के स्वभाव पर साफ दिखनी शुरू हो गई है। कहीं इतनी बारिश हो रही है कि कुछ ही घंटों में सब कुछ जलमग्न, तो कहीं चढ़ा पारा इंसानी सब्र की परीक्षा ले रहा है। यहां तक कि भूस्खलन जैसी घटनाएं भी अब आपवादिक नहीं रहीं।
जलवायु खतरनाक तरीके से बदल रहा है। दुनियाभर की सरकारों को अब संभल जाना चाहिए। अगर हालात पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो वो वक्त दूर नहीं जब धरती पर इंसानी जीवन अपने सबसे मुश्किल दौर में होगा। दरअसल, इस तरह की हिदायतों और आशंकाओं का समय अब बीत चुका है। अब हम नए बदले हालात से दूर नहीं बल्कि उसके सामने खड़े हैं। कम से कम इस साल पूरी दुनिया में मौसम का कैलेंडर जिस तरह आपदा के लाल निशान में तब्दील हुआ है, उसे देखकर तो यह लगता है। आलम यह है कि पृथ्वी पर एक तरफ जल प्रलय की स्थिति है तो वहीं दूसरी तरफ तपिश इतनी ज्यादा कि उन देशों और इलाकों में भी लोग झुलस रहे हैं, जिनके लिए गर्मी कोई मौसम नहीं बल्कि एक जानकारी भर थी। बात करें भारत की तो मौसम विज्ञानियों ने सिर पकड़ लिया है। वे ये कहने को लाचार हैं कि हवा और ताप में अप्रत्याशित बदलाव के बीच उनके लिए मानसून तक की भविष्यवाणी करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
उलट-फेर का मौसम
यह धरती बहुत विशाल है। इतनी विशाल कि एक घड़ी से पूरी दुनिया का समय आप नहीं बता सकते। ऐसे में प्रकृति से लेकर सामान्य जनजीवन में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। पर यह अंतर अब एक बड़ा परिवर्तन या यों कहें कि विरोधाभास बन चुका है। इस साल एक तरफ जहां दुनिया के कई देशों में तापमान में रिकॉर्ड स्तर पर वृद्धि दर्ज की गई, तो वहीं दूसरी तरफ बाढ़ और सर्दी के नए सूरतेहाल देखकर लोग हतप्रभ हैं। चढ़े पारे के कारण कनाडा और अमेरिका में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है तो न्यूजीलैंड में सरकार को भीषण सर्दी के कारण लोगों को घरों में रहने की सख्त हिदायत जारी करनी पड़ी।
यहां तक कि वहां कुछ इलाकों में आपातकाल की घोषणा की गई। इसके उलट कनाडा में पहली बार 49.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। अंटार्कटिका, खाड़ी देश, यूरोप और भारत सहित कई एशियाई मुल्कों में भी मौसम में इस साल भारी बदलाव देखने को मिला है। औसतन 16 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले कनाडा का पारा 49.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया तो जितनी बारिश सालभर में होनी चाहिए, उतनी बारिश चीन के झेंगझाऊ शहर में एक दिन में हुई। 19 जुलाई को एक ही दिन में वहां 624 मिलीमीटर बारिश हुई। इसकी वजह से दो लाख लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाना पड़ा और कम से कम 33 लोगों की मौत कुछ ही घंटों के भीतर हो गई।
तापमान का कीर्तिमान
मौसम विशेषज्ञ और मौसम के इतिहासकार मैक्सिमिलियानो हेरेरा का दावा है कि 2021 में अब तक, 26 देशों में 260 से अधिक इलाके उच्च तापमान का रिकॉर्ड बना चुके हैं। कनाडा में इससे पहले 1937 में कई इलाकों का तापमान 45 डिग्री तक पहुंचा था। लेकिन इस बार तो हालात इतने असहनीय हो गए कि स्कूल और कॉलेज से लेकर टीका केंद्र तक बंद करने पड़े। इस झुलस के बीच मृतकों की संख्या 400 से अधिक हो गई है। वैंकूवर जैसे स्थानों में सड़कों पर पानी का फव्वारा छोड़ने वाली मशीनें लगानी पड़ीं और कूलिंग स्टेशनों की व्यवस्था करनी पड़ी। वहीं, पड़ोसी देश अमेरिका में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही।
सिएटल में पारा 44 डिग्री दर्ज किया गया। मौसम विज्ञानियों ने आंकड़ों की पुरानी फाइल उलटकर देखा तो पता चला कि ऐसा वहां बीते सौ सालों में तो कम से कम देखने को नहीं ही मिला है। जर्मनी में बाढ़ की तस्वीरों की भयावहता देखकर तो पूरी दुनिया में लोग हतप्रभ रह गए। वहां बाढ़ ने अपना अप्रत्याशित रूप दिखाया, जिससे आधिकारिक तौर पर 177 लोगों की मौत हुई।
भविष्यवाणी मुश्किल
कोरोना संकट के दूसरे वर्ष को मौसम के रिकॉर्ड टूटने वाले साल के तौर पर भी याद किया जाएगा। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इनमें से कई घटनाओं का संबंध मनुष्य द्वारा किए गए ‘जलवायु परिवर्तन’ से है और चिंता इस बात की है कि आने वाले समय में इस बाबत कोई भविष्यवाणी कर पाना और भी मुश्किल हो गया है।
जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने वाले दुनिया के अग्रणी संस्थानों में से एक रॉयल नीदरलैंड मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु शोधकर्ता जॉन वैन ओल्डनबर्ग हैरानी जताते हुए कहते हैं, ‘नए रिकॉर्ड की संख्या चौंकाने वाली है। हमने इतनी उम्मीद बिल्कुल नहीं की थी।’ उनके अनुसार सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमने इसे इतनी तीव्रता से आते इससे पहले कभी नहीं देखा है। जाहिर है कि ऐसे में वैज्ञानिकों की यह भी स्वाभाविक चिंता है कि मौजूदा तकनीक इतने शक्तिशाली नहीं हैं कि वे खराब मौसम की घटनाओं की गंभीरता का अनुमान लगा सकें।
खतरे के दो दशक
प्रसिद्ध जलवायु विज्ञानी और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रो वीरभद्रन रामनाथन इस पूरे बदलाव पर हतप्रभ से ज्यादा चिंतित हैं। वे कहते हैं, ‘जर्मनी जैसे अत्यधिक उन्नत देश में बाढ़ से इतने लोगों की मौत को देखकर मुझे चिंता होती है कि ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ से निपटने के लिए समाज आखिर कितना तैयार है।’ रामनाथन का आकलन है कि अगले 20 सालों में मौसम से संबंधित घटनाएं उत्तरोत्तर खराब होती जाएंगी। वे कहते हैं कि खराब मौसम से जुड़ी ये घटनाएं अब इतनी तीव्र और लगातार हो रही हैं कि ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ को इनके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराना मुश्किल नहीं है।
जंगल में आग एक नई आफत
इस साल तर-बतर गर्मी ने तो कनाडा, अमेरिका और साइप्रस जैसे देशों को अप्रत्याशित रूप से परेशान किया ही, वहां मौसम के बड़े बदलाव के बीच जंगल में आग लगने की घटना ने नई मुसीबत पैदा कर दी। यह एक ऐसी आफत है जिससे खसतौर पर वे देश गुजर रहे हैं जो तकनीक, विकास और समृद्धि के लिहाज से काफी ऊपर आंके जाते हैं। साइप्रस के जंगलों में लगी आग तो इतनी भयानक है कि इसे बुझाने के लिए कई देशों को मदद मुहैया कराने के लिए आगे आना पड़ा। इसे देश के इतिहास की सबसे भीषण आग बताया जा रहा है। आग पर काबू पाने के लिए कई देशों ने विमान भेजे तो कई देशों ने जानमाल की हिफाजत के लिए और दूसरी तरह की मदद की।
उधर, कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में ‘हीट वेव’ के कारण जंगल के बड़े इलाके में आग लग गई। वहां की सरकार हालात पर काबू पाने के लिए सेना तक की मदद लेने को बाध्य हुई है। अमेरिका में ओरेगन प्रांत के जंगल में भी आग लगी हुई है और इसे देश के इतिहास में सबसे भयावह आग बताया जा रहा है। इस आग की चपेट में जंगल की तीन लाख एकड़ जमीन आ चुकी है। इन सभी घटनाओं के पीछे बड़ी वजह कार्बन उत्सर्जन का अनियंत्रित होना है।