भारत की सेना से जुड़े मसलों को हाईकोर्ट्स रिव्यू कर सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही उस फैसले को पलट दिया जिसमें आर्म्स फोर्सेज ट्रिब्यूनल के फैसलों में दखल देने से हाईकोर्ट्स को रोक दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वो फैसला सही नहीं था, लिहाजा खारिज होता है।
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि 2015 का फैसला पहले की संवैधानिक बेंचों के मुताबिक नहीं था। हाईकोर्ट्स को अधिकार है कि वो आर्टिकल 226 के तहत आर्म्स फोर्सेज ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ दायर रिट पर सुनवाई करे। इनमें सेना में होने वाली अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ कोर्ट मार्शल जैसे फैसलों का रिव्यू भी शामिल है।
तीन जजों की बेंच बोली- हमें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का 2015 का फैसला सही नहीं था
तीन जजों की बेंच ने केंद्र बनाम मेजर जनरल श्रीकांत शर्मा के केस का हवाला देते हुए कहा कि आर्म्स फोर्सेज ट्रिब्यूनल के फैसलों को समीक्षा करने के हाईकोर्ट के अधिकार को अपील न समझा जाए। बेंच का कहना था कि सेना से जुड़े मसलों पर पहली न्यायिक समीक्षा आर्म्स फोर्सेज ट्रिब्यूनल की सुनवाई को माना जाए। किसी भी मामले में कम से कम दो बार तो न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए। लिहाजा हाईकोर्ट की सुनवाई को दूसरी समीक्षा माना जाए। तीनों जजों का कहना था कि हाईकोर्ट्स के जजों के पास व्यापक अनुभव होता है। वो इसके आधार पर किसी भी मामले को देखकर सटीक फैसला दे सकते हैं। इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। हमें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का 2015 का फैसला सही नहीं था।
2015 के फैसले में जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय और जस्टिस एनवी रमना ने कहा था कि जब आर्म्स फोर्सेज ट्रिब्यूनल के फैसलों को सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट जैसी व्यवस्था मौजूद है तो फिर दूसरी किसी संस्था को सेना के मसलों के खिलाफ रिट स्वीकार नहीं करनी चाहिए।
सेना के मसलों में केंद्र ने हाईकोर्ट के दखल को सही नहीं माना
केंद्र ने अपने जवाब में कहा कि अगर सेना के मसलों पर विचार के लिए हाईकोर्ट्स के पास कोई शक्ति है भी तो उसे खत्म किए जाने की जरूरत है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 2015 का सुप्रीम फैसला कानून की सही व्याख्या नहीं करता। लिहाजा उसे ओवररूल किए जाने की जरूरत है और हम करते हैं।