सिफारिश के बाद भी जजों की नियुक्ति न होने पर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने तीखा स्टैंड लिया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और बाकी के दो जजों ने वकील जॉन सत्यन को मद्रास हाईकोर्ट का जज नियुक्त न करने पर नाखुशी जताते हुए कहा कि केंद्र केवल इस वजह से उनको जज नहीं बना रहा क्योंकि उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ आर्टिकल लिखा था।
कॉलेजियम ने प्रस्ताव पास कर केंद्र के खिलाफ तीखी टिप्पणी भी कीं। इसमें कहा गया है कि जब हमने सत्यम की इस गलती को ओवर रूल कर दिया था तो फिर केंद्र उनको जज बनाने का फैसला क्यों नहीं कर रहा।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्र का रवैया गहरी चिंता का विषय है। कॉलेजियम ने जॉन सत्यम के नाम की सिफारिश 17 जनवरी को की थी। लेकिन केंद्र ने अभी तक उनको जज बनाने की मंजूरी नहीं दी।
कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव में केंद्र को आदेश दिया कि पहली बार में जिन लोगों को जज बनाने की सिफारिश की गई थी, सत्यम को उन पर तरजीह दी जाए। उनका कहना था कि कॉलेजियम की सिफारिशों को केंद्र नजरंदाज कर रहा है। ये गहन चिंता का विषय है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 21 मार्च को हुई कॉलेजियम की मीटिंग में उस सिफारिश पर चर्चा की गई जिसमें मद्रास हाईकोर्ट में चार जज नियुक्त करने को कहा गया था।
मद्रास हाईकोर्ट में चार जजों की नियुक्ति के लिए सिफारिश
डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट के जजों के तौर पर नियुक्ति के लिए चार जिला न्यायाधीशों के नाम की सिफारिश की है। कॉलेजियम ने आर शक्तिवेल, पी धनबल, चिन्नासामी कुमारप्पन और के. राजशेखर के नाम की सिफारिश की। कॉलेजियम ने एक अन्य प्रस्ताव में वरिष्ठ अधिवक्ता हरप्रीत सिंह बरार को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का जज नियुक्त करने की 25 जुलाई, 2022 की अपनी पिछली सिफारिश को भी दोहराया।
सरकार मानती है, जजों की नियुक्ति उसका काम
सुप्रीम कोर्ट के साथ हाईकोर्ट्स में जजों की नियुक्ति के मसले पर कॉलेजियम और केंद्र सरकार के बीच रस्साकसी लंबे अरसे से चल रही है। मोदी सरकार के कानून मंत्री के साथ उप राष्ट्रपति कई मौकों पर कह चुके हैं कि संविधान के तहत जजों की नियुक्ति का काम सरकार का है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसे नहीं मानता। उनका कहना है कि संविधान की बेहतर तरीके से पालना का दायित्व संसद पर है न कि दूसरी किसी संस्था पर। अदालतों को अपना काम करना चाहिए। जजों की नियुक्ति का काम वो सरकार पर छोड़ें तो बेहतर है।
उधर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ भी सरकार को आईना दिखा चुके हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम से बेहतर कोई दूसरी व्यवस्था नहीं है। उनका कहना था कि हो सकता है कि इसमें कुछ खामियां हों। लेकिन मौजूदा दौर में ये बेस्ट प्रेक्टिस है। जजों की नियुक्तियों को लेकर कॉलेजियम की व्यवस्था उस फैसले के तहत की गई थी, जिसमें खुद सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत 1998 में बना था कॉलेजियम
कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नही है। यह सिस्टम 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के जरिए प्रभाव में आया था। कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक पैनल जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है। कॉलेजियम की सिफारिश (दूसरी बार भेजने पर) मानना सरकार के लिए जरूरी होता है।