Backward Classes Quota Telangana: लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार एससी-एसटी, ओबीसी वर्ग को उसकी आबादी के हिसाब से आरक्षण देने की वकालत करते रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान उन्होंने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। अब कांग्रेस शासित राज्य तेलंगाना की सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 42% आरक्षण देने के अपने वादे पर आगे बढ़ रही है लेकिन पार्टी के लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा।
कांग्रेस सरकार का कहना है कि ओबीसी आरक्षण बिल का मकसद स्थानीय निकायों, राज्य सरकार द्वारा चलाए जाने वाले शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देना है।
कांग्रेस सरकार ने कहा है कि वह मार्च में होने वाले विधानसभा के सत्र में ओबीसी आरक्षण से संबंधित बिल को रखेगी। कांग्रेस के इस कदम को फरवरी में तेलंगाना में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन इसमें अड़चन यह है कि 42% आरक्षण देने से सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित की गई आरक्षण की 50% की सीमा का उल्लंघन होगा।
इस मामले के जानकारों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि तेलंगाना सरकार ऐसा तब तक नहीं कर सकती, जब तक केंद्र सरकार उसे इस मामले में सहयोग न करे।
याद दिलाना होगा कि नवंबर, 2023 में तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव से पहले तेलंगाना कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष और मौजूदा मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने ‘कामारेड्डी घोषणापत्र’ पर दस्तखत किए थे। तब उन्होंने कहा था कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो 6 महीने के भीतर ही जातिगत सर्वे के आधार पर स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए जो मौजूदा 23 प्रतिशत आरक्षण है, उसे बढ़ाकर 42% कर दिया जाएगा। यह भी वादा किया गया था कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के आरक्षण का सब कैटेगराइजेशन भी होगा।

तब इसे कांग्रेस की ओर से एक पॉलिटिकल मास्टर स्ट्रोक कहा गया था और जब राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो यह कहा गया कि इस वादे का असर हुआ है। अब कांग्रेस की सरकार के सामने अपने इस वादे को पूरा करने की चुनौती है। पिछले हफ्ते रेड्डी सरकार ने सदन में जातिगत सर्वे की अंतिम रिपोर्ट पेश की और पार्टी ने कहा कि वह स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी को 42% सीटें देने का अपना वादा निभाएगी।
इस बीच, बीजेपी ने कांग्रेस सरकार की आलोचना की है और कहा है कि उसने ओबीसी समुदाय की गिनती ढंग से नहीं की है। बीजेपी के राज्यसभा सांसद आर. कृष्णैया का दावा है कि तेलंगाना में ओबीसी समुदाय की आबादी 61% है।
117 सीटों वाली तेलंगाना की विधानसभा में कांग्रेस के पास 64 विधायक हैं इसलिए विधानसभा में तो ओबीसी आरक्षण वाला बिल पास हो जाएगा लेकिन इसके लागू होने के बाद तेलंगाना में आरक्षण की सीमा 62% पहुंच जाएगी और इससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन होगा। इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि आरक्षण को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन और केंद्र सरकार की मंजूरी की जरूरत होगी। ऐसे में यह विधेयक लागू हो पाएगा या नहीं इसे लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

बिहार ने भी पास किया था बिल
पिछले साल बिहार की विधानसभा ने एक बिल पास किया था जिसके तहत अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण बढ़ा दिया गया था जिससे कुल कोटा 50% से बढ़कर 65% हो गया था। पिछले साल जुलाई में पटना हाई कोर्ट ने इस कदम को खारिज कर दिया था जबकि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिहार सरकार का यह कदम संविधान के द्वारा दिए गए समानता के अधिकार में दखल देगा।
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इस मामले में मुश्किल बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार के सामने भी है। अगर एनडीए की सरकार तेलंगाना की कांग्रेस सरकार के द्वारा आरक्षण लागू करने के कदम का विरोध करेगी तो कांग्रेस इसे लेकर मोदी सरकार और बीजेपी पर हमला बोलेगी।
कांग्रेस यह आरोप लगा सकती है कि बीजेपी ओबीसी के लिए आरक्षण और जाति जनगणना के खिलाफ है। क्या कांग्रेस ओबीसी से किए गए अपने वादे को पूरा कर पाएगी?
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