पिछले सप्ताह सुशांत सिंह राजपूत की तीसरी पुण्यतिथि थी। उनके कुछ दोस्तों ने उनको याद किया सोशल मीडिया पर और कहीं से खबर मिली कि सीबीआइ ने अभी तक जांच बंद नहीं की है, जो हिंदी सिनेमा के इस सितारे की दर्दनाक मौत के बाद शुरू की गई थी। एक कामयाब, जवान अभिनेता की मौत से दुख सबको होता है, लेकिन सुशांत की तथाकथित आत्महत्या को हत्या साबित करने में इतने लोग लग गए थे कि उनकी प्रेमिका रिया चक्रवर्ती को जेल जाना पड़ा।

पहले सीबीआइ ने उस पर हत्या का आरोप लगाया, लेकिन जब साबित नहीं कर पाए तो सुशांत के लिए चरस खरीदने के आरोप में उसको महीने से ज्यादा जेल में रहना पड़ा था। साथ में उसके छोटे भाई को भी इस मामले में फंसा कर बंद कर दिया था। लेकिन अभी तक सीबीआइ न इनके दोष साबित कर पाई है और न ही मामले को बंद किया गया है।

आर्यन खान पर झूठे आरोप लगाकर वसूली करने वाले फिलहाल जेल में हैं

पिछले सप्ताह खबर यह भी मिली थी कि जिन लोगों ने शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान पर झूठा आरोप लगा कर शाहरुख से करोड़ों रुपए वसूलने की साजिश रची थी, उनमें से एक को अग्रिम जमानत नहीं मिली है। दूसरा जमानत पर है। समीर वानखेड़े पर अब सीबीआइ की जांच चल रही है उनकी इस मामले में भूमिका को लेकर। जब छात्रों को कई कई साल जेलों में रखा जाता है बिना कोई अपराध साबित किए, तो उन लोगों को बंद करना इतना मुश्किल क्यों है, जिन्होंने शाहरुख खान से करोड़ों रुपए वसूलने की कोशिश की थी उनके बेगुनाह बेटे को जेल में डाल कर।

मैं ध्यान दिलाना चाहती हूं एक और विषय पर, और वह है मीडिया मुकदमों की गलत प्रथा। प्रसिद्ध और ताकतवर टीवी एंकरों को इन मुकदमों के लिए मसाला मिलता है सरकार की जांच संस्थाओं से, इस उम्मीद में कि इसके बाद अदालतों में उनका काम आसान हो जाएगा। मैं कभी नहीं भूल पाती हूं उस मीडिया मुकदमे को, जो चलाया गया था सुशांत की मृत्यु के बाद। याद कीजिए, किस तरह अति-प्रसिद्ध टीवी एंकर लगे रहते थे रोज शाम इस बात को साबित करने में कि सुशांत की हत्या उसकी प्रेमिका रिया ने की थी, उसके बैंक से पंद्रह लाख रुपए चुराने के वास्ते। फिर जब ये सब बातें झूठी साबित हुईं, तो हमारे टीवी के न्यायाधीश अचानक चुप हो गए और अगला मुकदमा तब चला, जब आर्यन खान को ड्रग्स के झूठे मुकदमे में नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आला अधिकारी, समीर वानखेड़े ने गिरफ्तार किया।

वानखेड़े साहब पुराने खिलाड़ी हैं, सो जानते हैं अच्छी तरह कि मीडिया सनसनीखेज खबरों की इतनी भूखी है कि उनको रोज थोड़ा मसाला देने से मुकदमा मजबूत हो जाता है। दुनिया की नजरों में शाहरुख खान के बेटे को तकरीबन दोषी करार दिया गया था। मसाला किसी असली जांच से नहीं मिला था, वानखेड़े साहब ने मसाला आर्यन खान के वाट्सऐप से ही लिया था। खूब मजा लिया दर्शकों ने इतने बड़े सितारे के बेटे की तकलीफ देख कर। खूब मजा लिया टीवी पत्रकारों ने उस पर यह झूठा मुकदमा चला कर और जब बाद में सारे आरोप झूठे निकले, तो सारी कहानी भुला दी गई।

शायद इसलिए कि मैंने पत्रकारिता की दुनिया में उस समय पहला कदम रखा जब टीवी के नाम पर सिर्फ दूरदर्शन था। मुझे जरा भी संकोच नहीं है यह कहने में कि भारतीय पत्रकारिता का वह जमाना कहीं ज्यादा बेहतर था। उस जमाने में हम आतंकवादियों को भी आतंकवादी नहीं कहा करते थे, जब तक उनके अपराध किसी न्यायालय में साबित नहीं होते थे। उस जमाने में पत्रकारिता के उसूलों में सबसे महत्त्वपूर्ण उसूल यही था कि किसी को बेगुनाह या दोषी साबित करना हमारा काम नहीं, अदालतों का काम है।

सवाल ही नहीं था कि किसी सरकारी अधिकारी के इशारों पर हम मीडिया मुकदमा चलाने पर उतर आएं। रिया चक्रवर्ती और आर्यन खान किसी विकसित पश्चिमी देश के नागरिक होते तो मानहानि का मुकदमा जरूर ठोकते उन अधिकारियों पर जिन्होंने उन पर गलत मुकदमे चलाए हैं और उन पत्रकारों पर भी, जो इन अधिकारियों के औजार बने मुकदमों को चलाने में। लेकिन भारत में ऐसा करना तकरीबन नामुमकिन है, इसलिए कि न्याय की गाड़ी इतनी आहिस्ता चलती है कि उमर गुजर सकती है अपने आप को निर्दोष साबित करने में। इसी का फायदा उठा रहे हैं वे बड़े-बड़े टीवी एंकर, जो ऐसे मुकदमे चलाते हैं।

आर्यन खान का मामला कमजोर था, सो ज्यादा असरदार मुकदमा नहीं चला पाए हमारे मीडिया जज, लेकिन उनके निजी वाट्सऐप बातों को रोज सारी दुनिया को दिखाने में उनको कोई संकोच नहीं हुआ। रिया पर सुशांत की हत्या थोपने में उन्होंने पूरी कोशिश की थी। यहां तक कि एक शो में मैंने एक मेहमान से ये शब्द सुने, ‘अब तो तय हो गया है कि इस लड़की ने सुशांत के साथ प्रेम का नाटक सिर्फ इसलिए किया कि वह उसके पैसे चुरा सके, सो जाहिर है कि उसकी हत्या भी इसी ने की थी।’ एंकर साहब ने उस मेहमान को इस बात पर टोका, लेकिन उसको रोका नहीं, बावजूद इसके कि किसी पर झूठा आरोप लगाना अपराध है अपने देश में।

क्या कभी वे दिन देखेंगे हम जब इन प्रसिद्ध मीडिया हस्तियों पर मानहानि के मुकदमे चलेंगे और उनको भी कुछ दिन जेल में रखा जाएगा सबक सिखाने के लिए? मैं जानती हूं कि ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि मीडिया मुकदमे चलता है सरकार की मदद करने के लिए, लेकिन फिर भी आशा करती हूं कि एक-दो महान पत्रकार अंदर भेज दिए जाएं थोड़े दिनों के लिए ताकि ये अति-हानिकारक किस्म की पत्रकारिता समाप्त हो जाए।