कब सीखेगा विपक्ष कि मोदी को गालियां देने से नहीं जीते जाते हैं चुनाव? पिछले सप्ताह जब लालू यादव ने ताना कसते हुए कहा कि मोदी परिवारवाद का विरोध करते हैं, क्योंकि उनका अपना कोई परिवार नहीं है, तो प्रधानमंत्री ने फौरन जवाब दिया कि उनका परिवार पूरा देश है। सोशल मीडिया पर इसके बाद दिखने लगे ऐसे कई ‘हैंडल’ जो अपने आप को मोदी के परिवार का सदस्य बताने लगे।

क्या कुछ नहीं सीखे हैं विपक्ष के नेता पिछले दस वर्ष में? ऐसा लगता है। वरना याद किए होते कि 2014 में गांधी परिवार के महान भक्त, मणिशंकर अय्यर ने मोदी को ‘चायवाला’ कहकर जब कहा कि प्रधानमंत्री बनने के लायक हैं नहीं, लेकिन इस लायक हैं कि कांग्रेस के मुख्यालय में आकर चाय बेच सकें, तो मोदी ने इसका बेहिसाब लाभ उठाया। ‘चाय पे चर्चा’ शुरू की और गर्व से अपने आप को चायवाला कहने लगे।

फिर जब 2019 के चुनाव में राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया तो सोशल मीडिया पर मोदी के भक्तों ने कहना शुरू कर दिया ‘मैं भी चौकीदार’। लाभ फिर से मोदी ने उठाया और प्रधानमंत्री बने दूसरी बार लोकसभा में अपनी बहुमत बढ़ा कर। मुझे याद है, गुजरात में 2007 वाला विधानसभा चुनाव, जिसमें सोनिया गांधी ने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा फिल्मी संवाद के अंदाज में और इसका भी लाभ मोदी को ही हुआ। लगता है, गांधी परिवार ने अपना संवाद लेखक बदला नहीं है।

राहुल गांधी फिल्मी अंदाज में गर्व से कहते हैं आज कि ‘नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान’ खोली है। यही संवाद पटना की आमसभा में झाड़ा, जहां लालू यादव ने मोदी का परिवार न होने का मजाक उड़ाया था। यही संवाद राहुल जी कहते आए हैं अपनी न्याय यात्रा में। लेकिन असर अभी तक दिख नहीं रहा, इसलिए कि जिन मतदाताओं ने तय कर लिया है कि वोट मोदी को ही देंगे, उनके फैसले के कारण और हैं। पिछले सप्ताह महाराष्ट्र में मैंने किसी से पूछा कि उसके गांव में 2019 के बाद परिवर्तन आए हैं क्या, तो जवाब ये मिला- ‘जी, गांव के हर घर में अब पानी नल से आने लग गया है। सबके पास गैस सिलेंडर हैं और शौचालय… मोदी ही जीतेगा, क्योंकि काम किया है उन्होंने’।

राहुल गांधी के सलाहकार अगर राजनीति समझते तो उनको सलाह जरूर देते कि जितनी बार मोदी का नाम लेकर उनको गाली देंगे, उतनी बार प्रचार मोदी का ही होगा। मोदी को गालियां देने के अलावा गांधी परिवार के वारिस जब राजनीतिक या आर्थिक मुद्दों की बात करते हैं तो ऐसा लगता है सुनने वालों को, जैसे कि वे देश को पीछे ले जाना चाहते हैं, आगे नहीं।

राजनीतिक मुद्दों में उनका सबसे बड़ा मुद्दा है जाति आधारित जनगणना। इस छवि को देश ने बहुत पहले देख लिया है, लेकिन राहुल शायद उस समय बच्चे थे। आर्थिक सोच अब राहुल की मार्क्सवादी लग रही है और बचकानी भी। पिछले सप्ताह उनको चुनाव आयोग से भी फटकार लगी। उनको सावधान किया गया कि प्रधानमंत्री को ‘जेबकतरा’ और ‘पनौती’ कहना गलत है।

पटना की पिछले सप्ताह वाली आमसभा में मंच पर दिखे वे तमाम ‘युवा’ नेता जिनको राजनीतिक दल मिले हैं विरासत में। राहुल गांधी दिखे, तेजस्वी यादव दिखे और अखिलेश यादव भी। इंडिया गठबंधन के बाकी दल भी तकरीबन सारे ऐसे हैं, जो निजी कंपनियां बन गई हैं किसी न किसी परिवार की। तो जब मोदी परिवारवाद का मुद्दा उठाते हैं, उनकी बातों में वजन दिखता है। लेकिन इस मुद्दे पर अटक कर नहीं रह गए हैं मोदी। मतदाताओं को दिखा रहे हैं विकसित भारत का सपना और आश्वासन दे रहे हैं कि अपने तीसरे दौर में उनकी गारंटी है कि विकसित भारत बना कर रहेंगे। सच तो यह है कि मोदी के असली मुद्दे सबके सब विकास से जुड़े हैं।

देश जब विकसित होगा तो रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। देश विकसित जब होगा तो आम लोगों के जीवन में वे सारी चीजें आ जाएंगी, जिनका सपना अब गरीब से गरीब मतदाता देखने लग गया है। मेरा नाता मुंबई में एक लंबे अरसे से रहा है बेघर, फुटपाथ पर जीने वाले लोगों से और उनसे जब भी मैं पूछती हूं कि उनका सबसे बड़ा सपना क्या है, तो जवाब मिलता है कि इस सपने में वे देखते हैं अपने आपको एक पक्के घर में, जिसमें बिजली पानी के अलावा रंगीन टीवी होगा और वे सारी सुविधाएं जो मध्यम वर्ग घरों में होती हैं। इन चीजों के बारे में वे जानते हैं। न सिर्फ फिल्मों को देखने से, बल्कि उन बड़े-बड़े इश्तिहारों से जो इस महानगर के हर नुक्कड़ पर दिखते हैं।

कहने का मतलब यह है कि जब विपक्ष के सबसे बड़े राजनेता और गांधी परिवार के वारिस कहते हैं कि असमानता को मिटाने के लिए उनका समाधान है जाति जनगणना, तो उनकी बात अनसुनी इसलिए है, क्योंकि आम लोग भी जान गए हैं कि इससे सिर्फ यह होगा कि गरीबी बांटी जाएगी। आम मतदाता जानते हैं कि अमीर लोगों का धन छीन कर गरीबों में बांटने की बात झूठी है। ऐसा न कभी हुआ है पहले, न भविष्य में होने वाला है।

जिन देशों में ऐसा करने के लिए इंकलाब किया था, वहां भी गरीब अभी गरीब हैं और धनवानों की जगह ले ली है कम्युनिस्ट पार्टी के आला नेताओं ने। रूस और चीन जैसे देशों में ऐसा ही हुआ है। रही बात अपने भारत महान की, तो यह कहना जरूरी है कि राजनीति में इतने वारिस आए हैं सिर्फ इसलिए कि राजनीति में आसान है जनता की सेवा के नाम पर अपने परिवार की सेवा करना ऐसे वारिसों के लिए, जिन्होंने कभी असली नौकरियां नहीं की हैं।