जिस दिन बजट पेश हुआ पिछले सप्ताह, दिल्ली में ठंड थी काफी और बारिश भी। इसलिए जब वह बच्ची अपनी पतली बाहों में बच्चा लिए मेरी गाड़ी की खिड़की से दिखी, तो बहुत बुरा लगा। उसको टोका मैंने यह कहकर कि इतने छोटे बच्चे को लेकर इस तरह ठंड और बारिश में नहीं घूमना चाहिए। उसने भिखारियों की ओर इशारा करते हुए अपना हाथ अपने मुंह की तरफ उठाया और कहा, ‘खाने के लिए’। इत्तिफाक है कि यह हुआ उस समय जब वित्तमंत्री लोकसभा में आश्वासन दे रही थीं कि नए बजट का लक्ष्य है कि कोई भी नागरिक पीछे नहीं छोड़ा जाएगा।

अच्छा भाषण था वित्तमंत्री का और विशेषज्ञों का कहना है कि उनका यह अंतरिम बजट काफी ठीक लगा उनको। गर्व से हम भी कहते फिरते हैं इन दिनों कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से दौड़ रही है। हम देखते हैं कि कितनी तेजी से देश में सड़कें, हवाई अड्डे और बंदरगाह बने हैं मोदी के राज में।

जिस छोटे समुद्रतटीय कोंकण गांव में मैं काफी समय से रहती हूं, वहां इतना परिवर्तन आया है पिछले दशक में कि मैं हैरान रह गई हूं। बजट पेश होने के कुछ दिन पहले मैं शाम को गांव में घूमने निकली और देखा कि पर्यटक इतने थे कि रोशनी से चमकते रेस्तरां सब भरे हुए थे। मैंने जब पूछा एक गांव वाले से कि पर्यटन की वजह से क्या लोगों की आमदनी दोगुनी हुई है, तो उसने हंस कर कहा, ‘तीन गुनी से ज्यादा हुई है जी’।

इसलिए, ऐसा नहीं है कि मोदी के राज में भारत के लोगों ने तरक्की नहीं देखी है, लेकिन जब याद आता है मुझे कि मोदी की ‘गारंटी’ है कि 2047 तक भारत विकसित देश बन जाएगा, तो मुझे इस बात पर यकीन करना मुश्किल लगता है। बताती हूं क्यों। मेरे गांव में पर्यटन आने के बावजूद आज भी सड़ते कूड़े के ढेर दिखते हैं हर कोने में। भारत के तकरीबन हर गांव का यही हाल है। मेरे गांव में परिवर्तन यह जरूर आया है कि हर घर में शौचालय बन गए हैं। महिलाओं को खुले में शौच करने का दृश्य अब नहीं दिखता है। मगर स्वच्छ भारत शौचालयों के आगे क्यों नहीं बढ़ा है? विकसित देशों को छोड़िए, गंदगी और खुले में शौच करते लोग अर्ध-विकसित देशों में नहीं दिखते हैं।

स्वच्छता पर इन देशों में इसलिए खास ध्यान दिया जाता है कि वहां शासक जानते हैं कि बिना स्वच्छता के स्वास्थ्य असंभव है। गंदे पानी के कारण भारत के बच्चों में जानलेवा बीमारियां फैलती हैं और बड़े होने के बाद जब रोजगार खोजने निकलते हैं, तो मालूम पड़ता है कि अर्ध-शिक्षित होने के कारण रोजगार मिलना मुश्किल है। ऐसा नहीं है कि निजी उद्योग क्षेत्र में रोजगार के अवसर नहीं हैं, लेकिन जरूरत है शिक्षित, काबिल लोगों की, जिनका सख्त अभाव है अपने देश में। कारण एक ही है कि देश के ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने पर मजबूर हैं या घटिया, ग्रामीण निजी स्कूलों में, जहां शिक्षा नहीं साक्षरता मिलती है। मोदी के राज में इस शर्मनाक स्थिति में कोई फर्क नहीं दिखा है।

वित्तमंत्री ने अपने भाषण में यह भी कहा कि उनकी सरकार सामाजिक न्याय पर ध्यान दे रही है, सो समाज कल्याण योजनाओं पर खास असर हुआ है। यह सच है कि लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधा पैसा भेजने से भ्रष्टाचार के कुछ रास्ते बंद हो गए हैं। मगर यह भी सच है कि केंद्र सरकार आज भी अस्सी करोड़ भारतीयों को मुफ्त में राशन दे रही है। गरीबी अगर कम हुई होती, तो इसकी कोई जरूरत नहीं होती और जो निवेश इन योजनाओं में हो रहा है, उसको बचा कर हम अपने बेहाल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर कर सकते थे।

इतना पैसा बच जाता कि ग्रामीण भारत के हर स्कूल में आधुनिक शिक्षा कंप्यूटरों द्वारा हो सकती थी। आज की दुनिया में सच यह है कि जिनको कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है, उनको शिक्षित नहीं माना जाता है।आर्थिक चीजों की मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, तो बजट को विस्तार से समझने की मैं कभी कोशिश नहीं करती हूं, लेकिन इतना जानती हूं कि अपने देश की सबसे बड़ी आर्थिक समस्या आज भी गरीबी है।

इतना भी जानती हूं कि हमारे करोड़ों नागरिक ऐसे हैं जिनको बारिश और ठंड में भी अपने बच्चों को दिल्ली और मुंबई की सड़कों पर भेजना पड़ता है भीख मांगने। मैंने मुंबई में कभी गरीब, लावारिस बच्चों के लिए ‘नाश्ता’ नाम की निजी योजना शुरू की थी, जिसके जरिए बच्चों को गरम नाश्ता दिया जाता था। इस योजना की वजह से मैंने इन बच्चों के जीवन को बहुत करीब से देखा है और कभी नहीं भूल पाती हूं एक बच्ची की यह बात।

उसकी उम्र कोई पंद्रह वर्ष की हो गई थी, जब यह बात हुई और उसने रोते हुए कहा कि जब वह छोटी थी तो उसके माता-पिता उसको रोज भेजते थे भीख मांगने और अगर खाली हाथ वापस आती थी तो उस रात को उसको खाली पेट सोना पड़ता था। इस तरह की गरीबी मैंने कभी किसी विकसित या अर्ध-विकसित देश में नहीं देखी है, इसलिए मेरे लिए यकीन करना मुश्किल है कि 2047 तक भारत विकसित देशों के श्रेणी में आ जाएगा। इतना बड़ा सपना देखना मेरे लिए मुश्किल है। एक छोटा-सा सपना जरूर देखती हूं, जब भी बजट पेश होता है। यह सपना है कि एक दिन आएगा निकट भविष्य में, जब हर जनप्रतिनिधि तय करेगा कि उसके चुनाव क्षेत्र में कोई भी बच्चा भूखा नहीं सोएगा।

सच है कि लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधा पैसा भेजने से भ्रष्टाचार के कुछ रास्ते बंद हो गए हैं। मगर यह भी सच है कि केंद्र सरकार आज भी अस्सी करोड़ भारतीयों को मुफ्त में राशन दे रही है। गरीबी अगर कम हुई होती तो इसकी कोई जरूरत नहीं होती और जो निवेश इन योजनाओं में हो रहा है, उसको बचा कर हम अपने बेहाल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर कर सकते थे।