ये उन दिनों की बात है जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे लेकिन तैयारी कर रहे थे प्रधानमंत्री बनने की। मुझे अहमदाबाद से बुलावा आया। जिस महिला ने मुझे फोन किया उसने कहा कि वो गुजरात के मुख्यमंत्री के लिए काम करती हैं और मुख्यमंत्री जी मुझे मिलना चाहते हैं। मैं अगले दिन पहुंच गई गांधीनगर, इसलिए कि कोई भी पत्रकार इस तरह के बुलावे को मना नहीं कर सकता है और वो भी ऐसे समय जब बड़े बड़े राजनीतिक पंडितों को लगने लगा था कि देश के अगले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे।
गांधीनगर पहुंची तो मुझे मोदीजी के दफ्तर में ले जाया गया जो लंबे शीशों वाली खिड़कियों का शांत, सुंदर कमरा था। इस कमरे के अंदर जाने के बाद मोदीजी के साथ लंबी बातचीत का पहला अवसर मिला जिसके दौरान ना उन्होंने किसी के साथ फोन पर बात की और ना उनके किसी अधिकारी ने अंदर आ कर उनसे बात करने की कोशिश की।
बात शुरू होने के फौरन बाद मोदीजी ने मुझे बताया कि इंडियन एक्सप्रेस में उन्होंने मेरा एक लेख पढ़ा था जो उनको पसंद आया इसलिए मुझे उन्होंने बुलाया था। उस लेख में मैंने लिखा था कि लुटियंस दिल्ली के तमाम बाशिंदे इस बात को लेकर बहुत डरे हुए हैं कि मोदी अगर प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो भूकंप आ जाएगा ऐसा कि उनकी शान और शौकत की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।
जिन दीवारों के पीछे हमारे जनप्रतिनिधि राजा-महाराजों की तरह रहते हैं उन दीवारों के गिराए जाने का उनको डर था। ऐसा हुआ नहीं है। बदलाव सिर्फ ये आया है कि लुटियंस दिल्ली के आलीशान बंगलों में रहनेवालों के चेहरे बदल गए हैं। लेकिन ये इस लेख का विषय नहीं है।
विषय ये है कि उस लंबी मुलाकात के दौरान मोदीजी ने जब पूछा कि मेरी राय में देश की नीतियों में क्या सबसे महत्त्वपूर्ण बदलाव आने चाहिए तो मैंने विनम्रता से सुझाव ये दिया कि कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्रियों की सबसे बड़ी असफलताएं शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में रही हैं। इन क्षेत्रों में परिवर्तन ही नहीं क्रांति की जरूरत है।
मैंने उनसे ऐसा कहा क्योंकि मैं जब भी किसी गांव में जाती हूं तो पहले जाती हूं स्कूल देखने और उसके बाद वहां का स्वास्थ्य केंद्र। आज भी जब सरकारी स्कूल देखती हूं तो दुख होता है कि वहां पढ़ाई इतनी रद्दी होती है कि जो मां-बाप अपने बच्चों का भविष्य रौशन करना चाहते हैं मजबूरन उनको प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं। इनमें इतनी अच्छी पढ़ाई तो होती नहीं है लेकिन इतना तो है कि अध्यापक रोज आते हैं बच्चों को पढ़ाने।
फिर भी पढ़ाई में इतनी कमियां हैं कि अक्सर इस देश के बच्चे स्कूल से निकलते हैं बिना इस काबिल होकर कि उनको किसी अच्छे कालेज में दाखिला मिले। यही कारण है कि अपने देश में कोचिंग सेंटर चलाने का कारोबार आज इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि अनुमान लगाया जाता है कि 2028 तक ये 133995 करोड़ रुपयों का हो जाएगा।
राजस्थान का कोटा शहर बहुत बड़ा केंद्र बन गया है कोचिंग का और यहां आते हैं बच्चे देश भर से अपने माता-पिता की सारी उमंगों का बोझ अपने कंधों पे रख कर। गरीब मां-बाप भी लाखों रुपए देने को तैयार हो जाते हैं इस उम्मीद से कि उनका बच्चा किसी अच्छे मेडिकल कालेज जाकर डाक्टर बन सके, किसी आइआइटी में दाखिला लेकर इंजीनियर बने।
पिछले सप्ताह एक ही दिन में चार घंटों के अंदर दो बच्चों ने आत्महत्या कर ली तो देश का ध्यान कोटा की तरफ गया और मालूम हुआ कि इस साल हर महीने तीन बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं। पिछले सप्ताह जब एक दिन में दो बच्चों ने अपनी जान ले ली तो कोचिंग सेंटर के किसी व्यक्ति ने कहा कि बच्चे अगर कोचिंग लेने के बाद भी ‘सेलेक्ट’ नहीं होते हैं तो भी उनको फायदा होता है इस बात से कि उनको 12 से 15 घंटे रोज काम करने की आदत पड़ जाती है। ऐसा कह दिया सोचे बगैर कि इतने घंटे अगर बच्चा पढ़ेगा तो उसका दिमाग ही खराब हो जाएगा।
फिर आई बारी राजस्थान के मुख्यमंत्री की शर्मनाक संवेदनहीनता दिखाने की। अशोक गहलोत ने टीवी पे आकर कहा कि वो योजना बना रहे हैं कोचिंग सेंटर के छात्रों के कमरों में ऐसे पंखे लगवाने के जिनसे वो लटक कर अपनी जान ना दे सकें। क्यों हमारे नेताओं के मन में इस समस्या की असली जड़ें नजर नहीं आती हैं? क्यों नहीं इनको दिखता है कि कोचिंग कारोबार बनता ही नहीं अगर हमारे स्कूल अच्छे होते? मोदी के दौर में एक नई शिक्षा बनी है लेकिन अच्छे स्कूल अभी भी नहीं बने हैं उन राज्यों में भी नहीं जहां भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री हैं।
प्रधानमंत्री निजी तौर पर कई बार कह चुके हैं कि देश का असली धन हमारे बच्चे हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने ध्यान नहीं दिया है कि बिना अच्छी शिक्षा के यह धन हमारी आंखों के सामने धूल में मिट जाएगा। दुनिया के बड़े-बड़े अर्थशास्त्री कहते हैं आजकल कि भारत का असली विकास तब शुरू होगा जब हम अपने बच्चों को इस काबिल बना दें कि दुनिया भर में वो जा कर ऊंचाइयां छूने के काबिल हो जाएं।
ये तब ही संभव होगा जब हम स्कूली शिक्षा में परिवर्तन लाएं क्रांतिकारी तरीके से। सो प्रधानमंत्री जी विनम्रता से मैं अर्ज करना चाहती हूं कि जिस तरह आपने स्वच्छ भारत पे निजी तौर पे ध्यान देकर सफलता हासिल की है उस ही तरह आप स्कूलों में क्रांतिकारी बदलाव ला कर दिखाएं। जितना पैसा खर्च हो रहा है कोचिंग पर उस पैसे को अगर स्कूलों में सुधार लाने पे खर्चेंगे तो देश की शक्ल बदल जाएगी। समय की मांग है ये।