Taslima Nasreen Novel Lajja: तसलीमा नसरीन बांग्लादेश की मशहूर लेखिका हैं। हालांकि, पहले वह एक डॉक्टर भी थीं, लेकिन निर्वासन के चलते डॉक्टरी पेशे को छोड़ना पड़ा। ‘लज्जा’ उपन्यास के चलते उन्हें निर्वासित जीवन जीना पड़ा। 1994 से वह निर्वासन में रह रही हैं।

अब बात ‘लज्जा’ की। तलसीमा नसरीन का ‘लज्जा’ एक बंगला उपन्यास है। 1993 में यह पहली बार प्रकाशित हुआ था। उपन्यास के प्रकाशित होते ही ये कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गईं। इस उपन्यास में उन्होंने साम्प्रदायिक उन्माद के नृशंस रूप को रेखांकित किया है। उपन्यास में धार्मिक कट्टरपन को उसकी पूरी बर्बरता से सामने लाने का प्रयास किया गया है। बढ़ते विरोध के चलते ‘लज्जा’ पर प्रकाशन के छह महीने के भीतर ही प्रतिबंध लगा दिया गया।

कट्टरपंथियों ने उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया। जिसके बाद वह बांग्लादेश छोड़कर अमेरिका चली गईं। तसलीमा ने 10 साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में बिताए। 2004 में वह कोलकाता आ गईं। 2007 में हैदराबाद में कट्टरपंथियों ने उन पर हमला कर दिया। हमले के बाद वे नजरबंद जीवन जीने लगीं। कुछ समय कोलकाता में रहीं। इसके बाद दिल्ली आ गईं। तभी से वे दिल्ली में रह रही हैं।

लज्जा में तसलीमा नसरीन ने क्या लिखा?

‘बांग्लादेश जिहादिस्तान बनता जा रहा है। सरकारों ने अपने राजनीति लाभ के लिए धर्म का इस्तेमाल किया। इस्लाम को राजधर्म बनाया। हिन्दुओं और बौद्धों की हालत दयनीय हो गई। हिन्दू विरोधी घटनाएं बढ़ती जा रही है। मैं तो इसे बांग्लादेश कहती ही नहीं…’, ये शब्द हैं मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन के हैं, जिन्हें 1993 में उनके चर्चित उपन्यास ‘लज्जा’ के प्रकाशित होने के बाद बांग्लादेश से निष्कासित कर दिया गया। अब प्रधानमंत्री शेख हसीना भी उसी दौर से गुजर रही हैं। देश में विरोध इतना बढ़ा कि शेख हसीना को अपना मुल्क छोड़ना पड़ा। बांग्लादेश को छोड़कर वो भारत में हैं।

लज्जा उपन्यास के चलते तसलीमा को छोड़ना पड़ा बांग्लादेश

25 अगस्त, 1962 को पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में जन्मीं तसलीमा नसरीन ने मयमनसिंह शहर के मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और डॉक्टर बनीं। उन्होंने सरकारी डॉक्टर के तौर पर काम करना शुरू किया, लेकिन स्कूल के दिनों से कविताएं लिखने वाली तसलीमा नसरीन की पहचान लेखिका के तौर पर बनी। वह सबसे ज्यादा चर्चा में तब आईं जब उन्होंने उपन्यास लज्जा प्रकाशित हुआ।

1993 में प्रकाशित हुआ लज्जा उपन्यास

लज्जा एक बांग्ला उपन्यास है। 1993 में यह पहली बार पब्लिश हुआ। इसके प्रकाशित होते ही तसलीमा कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गईं। विरोध-प्रदर्शन हुआ। कंट्टरपंथियों ने फतवे जारी किए। हालात इतने बिगड़े की उन्हें अपना देश छोड़कर अमेरिका जाना पड़ा। 10 साल अमेरिका, स्वीडन, जर्मनी और फ्रांस में बिताने के बाद 2004 में कोलकाता आईं। 2007 में कट्टरपंथियों के हमले का शिकार हुईं और हमले के बाद नजरबंद रहने लगीं। कुछ समय बाद वह दिल्ली आ गईं और साहित्य में वापस रच-बस गईं।

तसलीमा के उपन्यास में क्या?

तसलीमा ने अपने उपन्यास लज्जा में साम्प्रदायिक उन्माद के नृशंस रूप का जिक्र किया है। धार्मिक कट्टरपन को सामने लाने का प्रयास किया। इससे विरोध पैदा हुआ और उपन्यास प्रकाशित होने के 6 माह के अंदर ही उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उपन्यास में कहानी एक हिन्दू परिवार की थी, जो कट्टरपंथी हिंसा के बाद देश को छोड़ने के लिए मजबूर हो गया था।

इस उपन्यास में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने के बाद बांग्लादेश के मुसलमानों की आक्रामक प्रतिक्रिया को बताया गया। तसलीमा का यह उपन्यास बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी सांप्रदायिकता पर प्रहार करता है।

‘राजनीति और धर्म को अलग रखना जरूरी’

तसलीमा ने बांग्लादेश में हिन्दुओं पर होते हमलों पर अपने एक इंटरव्यू में कहा था, क्या आप इस देश को दूसरा तालिबान बनाना चाहते हो? अगर आपके दिमाग में जहर भरा जा रहा है तो सारी तरक्की बेकार है। इंसानियत से बड़ा काई दूसरा धर्म नहीं होता, लेकिन बांग्लादेश में इसकी शिक्षा ही नहीं दी जा रही। मैंने महिलाओं और मानवाधिकारों पर लिखा, इसलिए मैं वहां ताउम्र कट्टरपंथियों के निशाने पर रही। मुझे उस देश ने निकाल दिया और दोबारा अपने देश आने नहीं दिया। लज्जा उपन्यास वहां आज तक प्रतिबंधित है। मुझे बहुत दुख है।

वह कहती हैं, मदरसों की गतिविधियों पर सरकार को कड़ी नजर रखनी चाहिए। धर्म और राजनीति को अलग रखना चाहिए। बच्चों को धर्मनिरपेक्ष स्कूलों में शिक्षा के लिए भेजा जाना चाहिए जहां उनके दिमाग में इस्लाम और कुरान को लेकर कट्टरवाद की शिक्षा न दी जाए। वो दूसरे धर्म का सम्मान करना भी सीखें।