भारत के लोगों को सबसे ज्यादा विश्वास देश की सेना पर है। इसके बाद वे अदालत पर यकीन करते हैं। राजनीतिक पार्टियां, पुलिस और सरकारी अधिकारियों पर जनता सबसे कम यकीन करती है। मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय और दिल्ली स्थित शोध संस्थान विकासशील समुदायों के अध्ययन के लिए लोकनीति केंद्र की यह रिपोर्ट ‘चुनाव (2019) के बीच राजनीति और समाज’ चुनावों के बीच राजनीति, समाज और शासन को लेकर लोगों के विचार के सर्वेक्षण पर आधारित है। यह सर्वे असम, जम्मू-कश्मीर, केरल, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, तमिलाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली एनसीआर में किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, सेना के प्रति देश के लोगों में सबसे ज्यादा विश्वास है। यह विश्वास दर 88 प्रतिशत है। वहीं, न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, जिला कोर्ट) के प्रति लोगों में विश्वास दर 60 प्रतिशत है। वहीं, सर्वे में यह पाया गया कि राजनीतिक पार्टियों के प्रति लोगों का विश्ववास नकारात्मक (- 55%) है। इसकी गणना सर्वे में शामिल लोगों द्वारा दिए गए जवाब के आधार पर की गई है। बता दें कि यह सर्वे 12 राज्यों में किया गया। प्रत्येक राज्य के 2000 लोगों की राय जानी गई।

सर्वे के दौरान लोगों से उनकी समस्या के बारे में जानने की कोशिश की गई। उनसे यह पूछा गया कि देश के सामने सबसे बड़ी समस्या क्या है? इसके जवाब में 20 प्रतिशत लोगों ने बेरोजगारी की बात कही। हालांकि, 18 से 35 वर्ष उम्र के लोगों के जवाब का विश्लेषण किया गया तो यह बढ़कर 49 प्रतिशत हो गया। विकास और गरीबी की बात 15 प्रतिशत तथा कानून, शासन और भ्रष्टाचार की बात 13 प्रतिशत लोगों को सबसे बड़ी समस्या लगी।

सर्वेक्षण के दौरान 30 प्रतिशत लोग इस बात से सहमत दिखे कि सरकार को उन लोगों को दंडित करना चाहिए, जो सार्वजनिक स्थानों पर राष्ट्रगान के दौरान खड़े नहीं होते हैं। हालांकि 20 प्रतिशत लोगों ने इस पर असहमति जताई। रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है, “उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों के लोगों का झुकाव राष्ट्रवाद को लेकर ज्यादा है। सर्वे में शामिल करीब आधे लोग इस बात से पूरी तरह से सहमत दिखे कि सरकार को राष्ट्रगान के लिए खड़े नहीं होने वालों को दंडित करना चाहिए। हालांकि, उत्तराखंड के 40 प्रतिशत लोग ही इस बात से सहमत दिखे। वहीं, अन्य राज्यों में लोगों ने इस सवाल पर बीच का रास्ता चुना। हालांकि, उनका झुकाव भी इस बयान के प्रति देखने को मिला।”

सर्वे के दौरान पूछा गया कि क्या सरकार को उन लोगों को दंडित करना चाहिए जो बीफ खाते हैं, धर्मांतरण में शामिल रहते हैं, राष्ट्रवाद को लेकर खड़े नहीं होते हैं या भारत माता की जय कहने से इंकार कर देते हैं? इसका जवाब अलग-अलग राज्यों में अलग देखने को मिला। यूपी, दिल्ली, उत्तराखंड के लोग इन मामलों में सरकार द्वारा दंडित करने के पक्ष में दिखे। बीफ खाने वालों को दंडित करने को लेकर लोगों का सबसे ज्यादा समर्थन दिखा। वहीं, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर में उन लोगों की ज्यादा संख्खा दिखी, जिन्होंने समर्थन की जगह दंड का विरोध किया।