औरंगाबाद ट्रेन हादसे में प्रवासी मजदूरों की मौत के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि ‘कोई इसे कैसे रोक सकता है, जब लोग रेल पटरियों पर सोएंगे? आप प्रवासी मजदूरों के पलायन को कैसे रोकेंगे, जब वह जाना ही चाहते हैं?’ एडवोकेट अलख श्रीवास्तव ने औरंगाबाद की घटना का हवाला देकर कहा कि यह मामला महत्वपूर्ण है। ऐसे में केंद्र सरकार से पूछा जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद क्यों ठोक कदम नहीं उठाए गए, जिस कारण ये दर्दनाक हादसा हुआ।

इस पर जस्टिस एलएन राव ने कहा कि लोग सड़क पर चल रहे हैं तो उन्हें कैसे रोका जा सकता है। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि याचिकाकर्ता की याचिका न्यूजपेपर पर आधारित है। इस मामले में सरकारों को काम करने दिया जाए और एक्शन लेने दिया जाए। लोग सड़क पर जा रहे हैं, पैदल चल रहे हैं, नहीं रुक रहे तो हम क्या सहयोग कर सकते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि उनकी याचिका पूरी तरह अखबारों की कटिंग पर आधारित थी। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “हर वकील कागज पर घटनाओं को पढ़ता है और हर विषय के बारे में जानकार हो जाता है। आपका ज्ञान पूरी तरह से अखबार की कटिंग पर आधारित है और फिर आप चाहते हैं कि यह कोर्ट तय करे। राज्य को इसपर फैसला करने दें। कोर्ट इसपर क्यों फैसला करे?

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि देश में प्रवासी कामगारों की आवाजाही की निगरानी करना या इसे रोकना अदालतों के लिये असंभव है और इस संबंध में सरकार को ही आवश्यक कार्रवाई करनी होगी। केन्द्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि देश भर में इन प्रवासी कामगारों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिये सरकार परिवहन सुविधा मुहैया करा रही है लेकिन उन्हें कोविड-19 महामारी के दौरान पैदल ही चल देने की बजाये अपनी बारी का इंतजार करना होगा।

इस मामले की वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि क्या इन कामगारों को सड़कों पर पैदल ही चलने से रोकने का कोई रास्ता है। मेहता ने कहा कि राज्य इन कामगारों को अंतरराज्यीय बस सेवा उपलब्ध करा रहे हैं लेकिन अगर लोग परिवहन सुविधा के लिये अपनी बारी का इंतजार करने की बजाये पैदल ही चलना शुरू कर दें तो कुछ नहीं किया जा सकता है।

(भाषा इनपुट के साथ)