Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट को 43 बार जमानत याचिका स्थगित करने पर फटकार लगाई। 25 अगस्त को पारित आदेश में सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि आरोपी पहले ही साढ़े तीन साल से ज्यादा समय हिरासत में बिता चुका है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में इस तरह के बार-बार स्थगन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने कहा कि संवैधानिक न्यायालयों को जमानत के मामलों को तत्परता से निपटाना चाहिए। पीठ ने कहा कि हमने बार-बार यह टिप्पणी की है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों पर न्यायालयों द्वारा अत्यंत शीघ्रता से विचार किया जाना चाहिए… व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में उच्च न्यायालयों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे मामले को इतने लंबे समय तक लंबित रखें और समय-समय पर स्थगन के अलावा कुछ न करें। इसलिए, न्यायालय ने आरोपी-याचिकाकर्ता को जमानत देने का निर्णय लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि इस वर्ष मई में उसने इसी मामले में एक सह-अभियुक्त को जमानत दे दी थी, क्योंकि हाई कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका पर 27 बार सुनवाई स्थगित कर दी थी।

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उस आदेश में कोर्ट ने पहले ही इस बात पर ज़ोर दिया था कि हाई कोर्ट बिना किसी प्रगति के ज़मानत याचिकाओं को लंबित नहीं रख सकते। उसने तब कहा था कि ऐसे मामलों को अधर में लटकाए रखना व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी को कमज़ोर करता है। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामला और भी अधिक गंभीर है।

चूंकि दोनों आरोपी अब जमानत पर हैं, इसलिए कोर्ट ने दोहराया कि स्वतंत्रता के मामलों में देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती तथा निचली अदालत को कानून के अनुसार कार्यवाही जारी रखने का निर्देश दिया।

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