Supreme Court Guidelines On Ragging: सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल पहले कॉलेज-स्कूल से रैगिंग (Ragging) को समाप्त करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। लेकिन यह दिशा-निर्देश कॉलेज परिसरों में प्रतीकात्मकता से आगे नहीं बढ़ पाए और सरकारी नियम कागजों पर भी सिमट कर रह गए। एक नियामक प्रणाली जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि वह उन शिकायतों के कारण कमजोर हो गई है जो या तो “तुच्छ” हैं या जिनका पता लगाना कठिन है। जिसमें रैगिंग की व्यापक रूप से स्वीकृत कानूनी परिभाषा तय करने की चुनौती।

इंडियन एक्सप्रेस की जांच में पाया गया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा 2009 में स्थापित एक हेल्पलाइन पर अब तक दर्ज रैगिंग की शिकायतों में तीव्र वृद्धि के पीछे यही मुख्य कारण हैं।

सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त रिकॉर्ड से पता चलता है कि जनवरी 2012 से अक्टूबर 2023 तक “रैगिंग के कारण कथित आत्महत्या/मृत्यु मामलों की सूची” में 78 छात्रों के नाम हैं। उच्च शिक्षा में 4.14 करोड़ छात्रों को देखते हुए यह संख्या बहुत कम है, लेकिन यह कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है।

रैगिंग के आंकड़े एक ऐसी प्रणाली का उदाहरण हैं, जो इसके पीड़ितों के लिए अपारदर्शी, तदर्थ और काफी हद तक गैर-जवाबदेह हैं।

इसको लेकर इंडियन एक्सप्रेस ने कई सरकारी अधिकारियों, कॉलेज प्रशासन और प्रमुख गैर सरकारी संगठनों से बात की, जो रैगिंग से निपटने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ऐसे में सबसे सबसे पहले एक नजर डालते हैं आंकड़ों पर-

यूजीसी हेल्पलाइन पर रैगिंग की 8,000 से ज्यादा शिकायतें दर्ज की गईं

एक दशक से अधिक समय में यूजीसी हेल्पलाइन पर रैगिंग की 8,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें 2012 से 2022 तक 208 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। 2012 में 358, कोविड से पहले 2019 में 1,115, 2022 में 1103 और अक्टूबर 2023 तक 756 दर्ज की गईं।

रैगिंग के कारण देश में 78 मौतें हुईं, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा

इस अवधि में रैगिंग के कारण हुई 78 मौतों में से सबसे अधिक महाराष्ट्र (10) में हुईं। इसके बाद उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में सात-सात, तेलंगाना (6), आंध्र (5) और मध्य प्रदेश (4) का स्थान रहा ।

इस अवधि में सबसे ज़्यादा रैगिंग की शिकायतें यूपी (1,202) से आईं, उसके बाद एमपी (795), पश्चिम बंगाल (728), ओडिशा (517), बिहार (476) और महाराष्ट्र (393) का स्थान रहा। इस सूची में शीर्ष पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) 72, भोपाल में मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (53) और ओडिशा के बरहामपुर में एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज (49) थे।

इन आंकड़ों की प्रक्रिया में खामियों के साथ जोड़कर देखें। उदाहरण के लिए, यूजीसी के अपने एंटी-रैगिंग नियमों के खंड 9.4 में कहा गया है कि यह उन कॉलेजों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है जो रैगिंग को पर्याप्त रूप से नहीं रोकते हैं।

हालांकि, रैगिंग रोकने के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन सोसाइटी अगेंस्ट वायलेंस इन एजुकेशन (SAVE) की आरटीआई के जवाब में यूजीसी ने कहा कि 2009 में हेल्पलाइन स्थापित होने के बाद से उसने किसी भी कॉलेज के खिलाफ इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं किया है, बल्कि उसने मुख्य रूप से एक अन्य खंड पर भरोसा किया है, जो ‘अपनी शक्तियों के भीतर अन्य कार्रवाई जो वह उचित समझे’ का उल्लेख करता है।

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अमन मूवमेंट के संस्थापक राजेंद्र कचरू ने कहा कि हमें कई तरह की कॉल मिलीं, जिनमें कॉल करने वालों ने अलग-अलग सोर्स से बदमाशी घटनाओं की रिपोर्ट की। इन स्रोतों में कॉलेज के सीनियर्स और जूनियर्स के बीच प्रतिद्वंद्विता, रोमांटिक हितों से उत्पन्न संघर्ष और कामुकता शामिल थे। हालांकि, ज़्यादातर मामलों में बदमाशी के पीछे की प्रेरणा दुखवादी आनंद से प्रेरित थी। यह एनजीओ 2019 तक यूजीसी की एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन को संभालता था।

सुप्रीम कोर्ट साल 2009 में जारी किए थे दिशा-निर्देश

कथित तौर पर रैगिंग के कारण अपने बेटे अमन (19) की आत्महत्या के बाद कचरू की याचिका के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में इस समस्या को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। इस बीच, इस याचिका के कारण 2010 में इस मामले में चार आरोपियों को चार साल की कैद का फैसला सुनाया गया।

कचरू ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि सुप्रीम कोर्ट को दिशा-निर्देश जारी हुए 15 साल बीत चुके हैं और सरकार द्वारा उन्हें पूरी लगन से लागू करने में असमर्थता के कारण हजारों लोगों को पीड़ा हुई है। हेल्पलाइन (1800-180-5522) को वर्तमान में एक अन्य एनजीओ, C4Y द्वारा संभाला जा रहा है।

क्या कहता है यूजीसी की नियम?

यूजीसी के अपने नियमों में कहा गया है कि छात्रों को हर शैक्षणिक वर्ष में शपथ-पत्र प्रस्तुत करना होगा, जिसमें यह वचनबद्धता दर्ज करनी होगी कि वे रैगिंग के किसी भी कृत्य में शामिल नहीं होंगे। तीन साल की स्नातक अवधि के दौरान एक छात्र द्वारा कुल तीन शपथ-पत्र प्रस्तुत किए जा सकते हैं। लेकिन पिछले दशक के आरटीआई डेटा से पता चलता है कि केवल 4.49 प्रतिशत छात्रों ने ही अपने शैक्षणिक पाठ्यक्रम के दौरान ये शपथ-पत्र प्रस्तुत किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों में यह भी कहा गया है कि संस्थान के प्रमुख या अधिकृत एंटी-रैगिंग समिति के सदस्य को मामलों का तुरंत आकलन करना चाहिए और 24 घंटे के भीतर पुलिस और स्थानीय अधिकारियों के पास एफआईआर दर्ज करानी चाहिए। हालांकि, 2022 में SAVE की एक आरटीआई क्वेरी का जवाब देते हुए यूजीसी ने कहा कि वह ऐसी एफआईआर का रिकॉर्ड नहीं रखता है।

नियमों में अचानक छापेमारी और निरीक्षण करने के लिए एंटी रैगिंग दस्तों के गठन का भी प्रावधान है। इंडियन एक्सप्रेस की आरटीआई के जवाब में यूजीसी ने कहा कि उनके पास ऐसे दस्तों द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में कोई डेटा नहीं है।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए यूजीसी के चेयरमैन एम. जगदीश कुमार ने कहा कि यूजीसी रेगुलेशन के अनुसार, हेल्पलाइन रैगिंग के मामलों के बारे में संस्थानों के साथ-साथ पुलिस को भी हर शिकायत की जानकारी देती है और पुलिस तुरंत मामले पर कार्रवाई करती है। ज़्यादातर मामलों का समाधान संस्थानों के स्तर पर ही किया गया। जो मामले हल नहीं हुए, वे न्यायालय में विचाराधीन हैं।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

एक्सपर्ट के अनुसार, परिसरों में कई तत्काल उपाय किए जाने की आवश्यकता है, जिसमें सुरक्षित शिकायत बॉक्स, विस्तारित सीसीटीवी कवरेज और पीड़ितों के लिए आईडी-आधारित डैशबोर्ड शामिल हैं। यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव थोराट ने कहा कि वर्तमान में 40,000 से अधिक कॉलेज, लगभग 2,000 विश्वविद्यालय और कई स्वतंत्र निजी संस्थान हैं। यह विशाल परिदृश्य पूरी तरह से यूजीसी के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं है। इसलिए, समाधान नियमों को पूरी तरह से लागू करने में निहित है। थोराट ने बताया कि एंटी-रैगिंग नियम कानूनी रूप से बाध्यकारी नियम हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य किया है और शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी ने अधिनियमित किया है।

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हालांकि, सबसे अधिक शिकायतें दर्ज करने वाले तीन कॉलेजों के अधिकारियों का कहना है कि इनमें से बहुत से मामले छात्रों के बीच अन्य शिकायतों या हाथापाई के हैं, जो हेल्पलाइन को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि यह गुमनामी सुनिश्चित करता है।

प्रोफेसर रॉयना सिंह, जो बीएचयू में एंटी-रैगिंग कमेटी की प्रमुख हैं। वहां हेल्पलाइन पर शिकायतों की सूची में सबसे ऊपर हैं। उन्होंने कहा कि यहां रिपोर्ट किए गए मामलों में से केवल एक प्रतिशत रैगिंग के हैं। सिंह ने कहा कि एक शिकायत छात्रावास में कमरे के आवंटन को लेकर झगड़े की निकली। दूसरे मामले में, क्लास के व्हाट्सएप ग्रुप पर बंदर इमोजी के साथ एक सुझाव पर प्रतिक्रिया को रैगिंग के रूप में रिपोर्ट किया गया।

बरहमपुर के एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज में जहां शिकायतों की संख्या तीसरी सबसे अधिक थी। पूर्व डीन प्रोफेसर संतोष मिश्रा ने कहा कि एक को छोड़कर सभी शिकायतों में कोई सबूत नहीं था। उस मामले में एक छात्र को तीन महीने के लिए कॉलेज से बाहर कर दिया गया था और पुलिस ने जांच के बाद मामला दर्ज किया था और मामला अदालत में है।

वर्तमान डीन प्रोफेसर सुचित्रा दाश ने इस स्थिति को दोहराते हुए कहा कि प्रशासन परिसर में रैगिंग को रोकने के लिए सभी प्रयास कर रहा है, जिसमें सख्त कार्रवाई भी शामिल है। वह पिछले महीने जूनियर छात्रों के अभिभावकों द्वारा राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (एनएमसी) के एंटी-रैगिंग सेल में दर्ज कराई गई शिकायत की जांच के बाद पांच वरिष्ठ छात्रों को निष्कासित किए जाने का जिक्र कर रही थीं।

मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, जो शिकायतों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या वाला संस्थान है। उसके अनुसार ये मामले छात्रों के बीच आपसी झगड़े का नतीजा हैं। संस्थान ने कहा कि केवल 10 प्रतिशत शिकायतें प्रथम वर्ष के छात्रों की थीं।

हालांकि, अमन फाउंडेशन के कचरू ने जोर देकर कहा कि कॉलेज प्रशासन में रैगिंग की पहचान करने में संवेदनशीलता की कमी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बदमाशी, गाली-गलौज, प्रभुत्व स्थापित करने या डर पैदा करने के लिए डराना-धमकाना और अपमानजनक व्यवहार जैसी हरकतें, यहां तक ​​कि सोशल मीडिया समूहों के भीतर भी, अन्य मानदंडों के साथ रैगिंग की श्रेणी में आती हैं। लेकिन कई कॉलेज इन घटनाओं को आंतरिक विवाद बताकर खारिज कर देते हैं।

(इंडियन एक्सप्रेस के लिए रूपसा चक्रवर्ती और पल्लवी स्मार्ट की रिपोर्ट)

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