सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा के पूर्व मुख्य अभियंता यादव सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआइ को सौंपने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को ऐसा करने की बजाय खुश होना चाहिए।
उत्तर प्रदेश सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की इस चक्कर में खूब किरकिरी हुई। उन्होंने सीबीआइ को भरोसेमंद नहीं बताया। इस पर जजों ने उन्हें याद दिलाया कि जब वो व्यापमं घोटाले में दिग्विजय सिंह की याचिका की पैरवी कर रहे थे तब उन्होंने सीबीआइ को ही सबसे भरोसेमंद बताया था।
प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने उप्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की दलीलें अस्वीकार करते हुए कहा, ‘हम ईमानदारी से महसूस करते हैं कि इस मामले में सीबीआइ जांच की आवश्यकता है। इस मामले की सीबीआइ को जांच करने दीजिए।’ सिब्बल का कहना था कि इस प्रकरण को सीबीआइ के अलावा किसी अन्य एजंसी को जांच के लिए सौंपा जाए। सिब्बल ने अदालत से कहा कि अदालत सीबीआइ पर बहुत अधिक भरोसा कर रही है। उसका इस्तेमाल पूरे राज्य सरकार को अस्थिर करने और पंगु बनाने के लिए हो रहा है। इसमें यादव सिंह की मिलीभगत थी।
सिब्बल की दलीलों से पीठ सहमत नहीं हुआ। उसने कहा कि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की ओर से व्यापमं मामले में पेश होते समय सिब्बल ने सीबीआइ पर पूरा भरोसा जताया था। हाईकोर्ट के आदेश को न्यायोचित बताते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि उप्र को तो खुश होना चाहिए कि यह मामला अब सीबीआइ के पास है। सिब्बल जोर देकर यही कहते रहे कि राज्य सरकार इस मामले की सीबीआइ जांच के पक्ष में नहीं थी क्योंकि एक न्यायिक आयोग इसकी जांच कर रहा है।
उन्होंने इस मामले में जनहित याचिका के लिए भी केंद्र को निशाना बनाने का प्रयास करते हुए शीर्ष अदालत की ओर से काले धन के मामले में नियुक्त विशेष जांच दल के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया। जिसने यादव सिंह की संपत्तियों के मामले में गहन जांच की सिफारिश की थी। इस जनहित याचिका पर ही यादव सिंह प्रकरण में सीबीआइ जांच का आदेश दिया गया है। सिब्बल ने सवाल किया कि क्या यह विशेष जांच दल का अधिकार क्षेत्र है। क्या संयुक्त सचिव इस तरह का पत्र लिख सकते हैं। काले धन के मामले में बने इस विशेष जांच दल का उत्तर प्रदेश के मामले से क्या लेना-देना है।
उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर विचार करने के प्रति अनिच्छा दर्शाते हुए अदालत ने कहा कि इस मामले में प्रभावित पक्ष तो यादव सिंह हैं। उन्हें सीबीआइ जांच के आदेश को चुनौती देने पर विचार करना चाहिए। जजों ने कहा कि इस भद्र पुरुष (यादव सिंह) को यहां आने दीजिए। राज्य सरकार का इससे क्या लेना-देना है। यदि कोई व्यक्ति महसूस करता है कि हाईकोर्ट को यह जांच सीबीआइ को नहीं सौंपनी चाहिए थी तो उसे खुद यहां आना चाहिए।
इस पर सिब्बल ने कहा कि यादव सिंह की उन लोगों से मिलीभगत है जो सीबीआइ जांच चाहते हैं। उन्होंने जजों से अनुरोध किया कि इस मामले के घटनाक्रम पर गौर करें जो जनहित याचिका दायर करने के बाद बदला है। सीबीआइ के माध्यम से समूची राज्य सरकार को अस्थिर करने का प्रयास है। यह राज्य सरकार को पंगु बनाने के लिए है। जजों ने उनकी दलीलों पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘आमतौर पर हम सीबीआइ को मामला सौंपने में सुस्त हैं। परंतु हाईकोर्ट के आदेश के अवलोकन के बाद हम महसूस करते हैं कि सीबीआइ जांच का आदेश देकर हाईकोर्ट ने सही किया है।’
इस पर सिब्बल ने कहा कि यह आदेश दिया जाए कि इस जांच की निगरानी हाईकोर्ट करेगा। इस पर अदालत ने कहा, ‘हम उत्तर प्रदेश सरकार को इस जांच की निगरानी करने का अनुरोध करने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दायर करने की अनुमति देते हैं।’
हाई कोर्ट ने 16 जुलाई को सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर की जनहित याचिका पर सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित मामले की सीबीआइ जांच का आदेश दिया था। याचिका में उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपनी आमदनी के ज्ञात स्रोत से कहीं अधिक संपत्ति अर्जित की है।