सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक फैसले में कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिए प्रदर्शन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट का यह फैसला सीएए कानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में सड़क यातायात को बाधित करने को लेकर आया है। कोर्ट के इस फैसले पर रिपब्लिक भारत टीवी चैनल पर एक डिबेट कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें पत्रकार अरनब गोस्वामी ने कहा कि ‘शाहीन बाग में जिन्ना वाली आजादी की बात क्यों हुई?’ इस पर पैनलिस्ट ने कहा कि ‘तुम्हें बड़ी तकलीफ है!’

दरअसल डिबेट के दौरान अरनब गोस्वामी ने सवाल उठाते हुए डिबेट में बतौर पैनलिस्ट मौजूद एडवोकेट असगर से सवाल किया कि आपने कहा था कि ‘जिन्ना वाली आजादी, ले के रहेंगे आजादी’। अरनब ने कहा कि यह सेक्यूलर नहीं है। इसके जवाब में एडवोकेट असगर ने कहा कि ‘हर आदमी को अपनी तरफ भी देखना चाहिए, बड़ी तकलीफ है तुम्हें!’ डिबेट में मौलाना आजाद नेशनल ऊर्दू यूनिवर्सिटी के चांसलर फिरोज अहमद बख्त भी बतौर पैनलिस्ट मौजूद रहे।

इस दौरान एडवोकेट असगर पर निशाना साधते हुए फिरोज अहमद बख्त ने कहा कि शाहीन बाग में जिन्ना वाली आजादी की बात इसलिए हुई क्योंकि ये लोग टुकड़े-टुकड़े गैंग से ताल्लुक रखते हैं। ये लोग भारत को धर्म के आधार पर बांटना चाहते हैं। फिरोज बख्त ने ये भी कहा कि यह सेक्यूलर मूवमेंट नहीं था बल्कि ये देश विरोधी आंदोलन था।

बता दें कि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विरोध प्रदर्शनों के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा स्वीकार्य नहीं है। शाहीन बाग से लोगों को हटाने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी। अधिवक्ता अमित साहनी ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें दिल्ली पुलिस और प्रशासन पर शाहीन बाग में सार्वजनिक सड़क पर हो रहे प्रदर्शन को हटाने में निष्क्रियता का आरोप लगाया था।

बता दें कि दिल्ली के शाहीन बाग में 14 दिसंबर से सीएए कानून के विरोध में प्रदर्शन शुरु हुआ था, जो कि करीब तीन महीने तक चला। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस धरने का समाधान निकालने के लिए वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन को प्रदर्शनकारियों से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन कई दौर की बातचीत के बाद भी समाधान नहीं हो पाया था। हालांकि बाद में कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन से 24 मार्च को शाहीन बाग का धरना खत्म हो गया था।