सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग प्रदर्शनों पर 7 अक्टूबर 2020 को सुनाए गए अपने फैसले के खिलाफ दायर सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने साफ किया कि प्रदर्शनों के संवैधानिक अधिकार की कुछ जिम्मेदारियां होती हैं। प्रदर्शनों और मतभेद के दौरान किसी भी सार्वजनिक स्थल को हमेशा के लिए घिरने नहीं दिया जा सकता।

गौरतलब है कि दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन शुरू हुए थे। दिल्ली के शाहीन बाग में सैकड़ों की संख्या में लोगों ने सड़क का घेराव कर लिया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर को अपने फैसले में कहा था कि विरोध प्रदर्शन के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है और इस प्रकार के स्थानों पर ‘अनिश्चितकाल’ के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता।

इसके खिलाफ कुछ समय पहले ही 12 सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डाली थी। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा, “प्रदर्शनों का अधिकार हर जगह और कभी भी नहीं हो सकता। कहीं, कुछ स्वतः प्रदर्शन हो सकते हैं, लेकिन किसी भी तरह के लंबे खिंचे प्रदर्शनों के लिए सार्वजनिक स्थलों का लंबा घेराव नहीं हो सकता। खासकर ऐसी जगहों पर जहां दूसरों के अधिकारों पर प्रभाव पड़ रहे हों।”

जज जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरानी की बेंच ने कहा कि प्रदर्शनों के लिए कोई भी सार्वजनिक स्थल का लंबे समय के लिए घेराव नहीं किया जा सकता और प्रदर्शनों तय जगहों पर ही होने चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई न्यायाधीश के चैंबर में की और मामले की खुली अदालत में सुनवाई करने का आग्रह भी ठुकरा दिया। बता दें कि 7 अक्टूबर के अपने फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मतभेद और लोकतंत्र साथ-साथ चलते हैं और इस तरह के प्रदर्शन स्वीकार नहीं किए जा सकते।

बता दें कि शाहीन बाग में धरना करीब 101 दिन चला था। तब दिल्ली और नोएडा के बीच एक तरफ की सड़क पूरी तरह जाम हो गई थी। इसके खिलाफ कई बार स्थानीय लोगों ने भी प्रदर्शन किया। तब इसे देश का अब तक सबसे लंबा धरना बताया जा रहा था। हालांकि, कोरोना महामारी के चलते ये धरना 24 मार्च को खत्म हो गया।