एक वचन : पांच सौ साल बाद ‘मनुवाद’ वापस हो रहा है। जवाब में एक नई गायिका का प्रधानमंत्री द्वारा ‘एक्स’ पर जारी किया भजन : ‘मेरी झोंपड़ी के भाग आज जाग जाएंगे राम आएंगे…।’ फिर दूसरा भजन सीधे मंदिर के परिसर से। कुछ साधु गा रहे हैं : ‘बजाओ ढोल स्वागत में मेरे घर राम आए हैं…।’ रिपोर्टर भक्ति भाव से भरकर साधुओं को गाता देख रही है। इन दिनों अधिकांश चैनलों पर हर दिन अयोघ्या है। हर पल मंदिर है। हर भक्त आनंदित है। कैमरे खुश हैं और जवाब देने वाले मस्त हैं।
मंदिर के चौंसठ दरवाजे, सभी पर सोने की परत, एक किलो सोना और सात किलो चांदी से बनी पादुकाएं, इतनी नदियों का जल, नेपाल से इतने दीपक आदि। और राम का ‘विग्रह’ सांवले पत्थर का और अमुक शिल्पी का बनाया हुआ। एक विघ्नसंतोषी कह उठते हैं कि जब पुरानी मूर्ति थी तो नई क्यों? दूसरे कहते हैं मंदिर के इतने पैसे से तो इतने स्कूल और इतने अस्पताल बन जाते। तीसरे कहते हैं कि नौजवानों मस्जिदों को आबाद रखो, नहीं तो एक दिन ये भी छिन जाएंगी। इसका तुरंत जवाब आता है कि जिन्ना तो गया लेकिन जिन्ना का जिन्न इनमें ‘पैस’ गया है। कान खोलकर सुन लो- अयोघ्या तो झांकी है अभी तो बहुत से बाकी हैं।
कैसा आमना सामना है! एक ओर मंदिर के ‘बायकाटिए’ बायकाट करने की ठाने हैं तो दूसरी ओर सत्तादल भारत भर से पूरे दो महीने तक हर रोज पचास हजार दर्शनार्थियों को अयोध्या लाकर दर्शन कराने जा रहा है। इसे देख एक विघ्नसंतोषी कहते हैं कि दो महीने के लिए क्यों, पूरे बरस दर्शन क्यों नहीं। सत्तादल धर्म की राजनीति कर रहा है। उधर से जवाब आता है- धर्म की राजनीति तो विपक्ष कर रहा है। राम तो हमारे आराध्य हैं। साढ़े पांच सौ साल के संघर्ष के बाद रामलला की वापसी हो रही है। अयोघ्या सज रही है। एअरपोर्ट बन रहा है। स्टेशन नया हो चुका है। रास्ते चौड़े किए गए हैं। दुनिया दर्शन को आ रही है और विघ्नसंतोषी जले जा रहे हैं।
विपक्ष की विकलता तिहरी है : एक ओर अयोघ्या, दूसरी ओर सीटों का बंटवारा न कर पाना और इस पर भी एक नेताजी के गठबंधन के संयोजक बनने के ‘सपने सुहाने’ और इस पर कोई फैसला नहीं! एक तरफ अयोध्या जाएं कि न जाएं की दुविधा, दूसरी तरफ सनातन विरोधी ‘बायकाट बहादुर’, तीसरी तरफ ‘अवसर बहादुर’ कि बुलाएंगे तो जाएंगे और चौथी तरफ रामभक्त हैं, जो कहे जा रहे हैं कि प्राण प्रतिष्ठा के दिन देश भर के मंदिरों में पूजा की जाए, दीवाली मनाई जाए।
फिर एक दिन चैनलों में ‘बिग ब्रदर’ का ‘सीट-हठ’ कि ‘मैया मैं तो तीन सौ सीटन पर लरिहों’ और यह अकड़ कि उनको हमारी जरूरत है हमें उनकी नहीं। इस अकड़ को देख एक गठबंधिए नेता ने सुनाई दुनिया की सबसे छोटी कहानी कि ‘एक थी कांग्रेस…’। तो जवाब में आई दूसरी छोटी कहानी कि ‘एक था जोकर…’! बहुत दिन बाद ऐसी ‘क्वालिटी व्यंजनाएं’ सुनाई पड़ीं।
इस व्यंग्य-वक्रोक्ति को सुन- देख कई एंकर हैरान, एक्सपर्ट परेशान! कुछ कहिन कि गठबंधन में सबका ईगो टकरा रहा है। ऐसे में हो लिया ‘वन टू वन’। अरे भई दिल बड़ा रखो। अंदर की भुन-भुन कि हमीं क्यों रखें दिल बड़ा। उसके दिल को क्या हुआ? एक नेता तो बोल ही उठे कि हम भिखमंगे नहीं हम खुद लड़ लेंगे। दिल को समझाते दूसर बोले : यह गठबंधन की ‘डेमोक्रेसी’ है, जो फैसला होगा सबकी सहमति से होगा।
इसी बीच दो मुख्यमंत्रियों को ईडी के समन बड़ी खबर बनाते रहे। ईडी पूछताछ के लिए बुलाती रही, लेकिन दोनों धता बताते रहे। दोनों कहते रहे कि ये बदले की कार्रवाई है। एक कहें कि वे कट्टर ईमानदार हैं। ईडी सत्ता के इशारे पर उनके पीछे पड़ी है, ताकि आने वाले चुनाव में प्रचार न कर सकें। जबकि दूसरे मुख्यमंत्री अपनी जगह अपनी पत्नी को वैकल्पिक मुख्यमंत्री बनाने की जुगत में लगे बताए जाते रहे!
एक दिन दो दृश्य दिखे। एक में प्रधानमंत्री दस करोड़वीं उज्ज्वला लाभार्थी महिला के घर बैठ उसकी चाय की तारीफ करते दिखते रहे तो दूसरे सीन में राहुल अपनी माता जी के साथ ‘मार्मलेड’ बनाते दिखते रहे! इसी बीच, भाजपा वर्ष 2024 के लिए नया नारा दे देती है और चैनल बजाने लगते हैं : ‘तीसरी बार मोदी सरकार, अबकी बार चार सौ पार!’ उधर, बहसों में विपक्षी नेता ‘बेरोजगारी’, ‘महंगाई’, ‘जनता की नाराजगी’ का पुराना राग अलापते रहते हैं!
एक दिन एक विपक्षी कह दिए कि राम क्षत्रिय और क्षत्रिय तो मांसाहारी। जब कुटे तो ‘खेद खेद’ कहने लगे। एक विपक्षी विघ्नसंतोषी कह देते हैं कि ‘गोधरा जैसा हो सकता है’, तो तुरंत जवाबी हमला आता है कि क्या विपक्ष लोगों को उकसा रहा है कि कुछ अनहोनी हो जाए। एक चैनल में बहस दिखी, जिसमें कई रामभक्तों और अभक्तों ने तुलसी की ‘रामचरितमानस’ की चौपाइयों का पाठ कर अपने तर्क रखे। एक ने राम के ‘प्राकट्य’ पर बल दिया कि ‘भए प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी!’ तो कुछ ने उत्तरकांड से पाठ किया –
‘दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज काहू नहिं व्यापा।। बयरु न करि काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।’
राम प्रताप से इतना तो हुआ है कि अब वे लोग भी भगवान राम को अपना मानने लगे हैं, उनको मर्यादा पुरुषोत्तम मानने लगे हैं, उनको कण- कण में व्याप्त मानने लगे हैं, जो कभी राम के आस्तित्व पर ही सवाल उठाया करते थे!