एक टूट रहे हैं, दूसरे बना रहे हैं। इधर, विपक्षी गठबंधन को बंगाल में ममता और पंजाब में केजरीवाल झटके दे रहे हैं। उधर, कांग्रेस है कि न्याय यात्रा कर रही है। असम सरकार ने यात्रा के नायक को एक खास जगह जाने की इजाजत नहीं दी। धरना और भाषण। उधर, असम सरकार का जवाब! मीडिया अभी तक अयोध्या मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी के दिए भाषण को अभी तक डिकोड करने में व्यस्त है। मोदी ‘देव से देश’ और ‘राम से राष्ट्र’ को जोड़ रहे हैं। विद्वान उनके आवाहन, रूपकों और व्यंजनाओं को डिकोड कर रहे हैं। जबकि विपक्षी इसे तमाशा कहे जा रहे हैं।
इधर, मंदिर में भक्तों की भीड़ है। चैनलों के कैमरे भक्तों की भीड़ पर न्योछावर हैं। सभी संत जन राम की वापसी पर उल्लसित हैं। उधर, एक दक्षिणी से ‘फाल्स गाड’ की आवाज आ रही है। एक सपा नेता कह रहे हैं कि अगर पत्थर की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है तो मुर्दे को जिंदा क्यों नहीं किया जा सकता? एक कहता है ऐसे लोग ‘भक्ति भाव’ को क्या जानें! एक केरलीय कांग्रेसी नेता मोदी के ग्यारह दिन के कठोर अनुष्ठान उपवास पर ही सवाल उठा रहे हैं। सिर्फ एक कांग्रेसी आचार्य जरूर कहते हैं कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए मोदी को धन्यवाद।
हर चैनल मंदिर के उजड़ने और बनने का इतिहास बताता रहा कि वह कैसे- कैसे बना, किस-किस ने कुरबानियां दी। जो कार सेवक कल तक ‘खलनायक’ थे अब नायक की तरह दिखाए जाने लगे! कई चैनलों पर ज्ञानीजन मोदी के ‘कालचक्र’ की अवधारणा को लेकर अटके रहे : कोई कहता यह ‘हिंदुत्व’ व ‘सनातन’ का ‘कालचक्र’ है, कि ‘सेकूलर’ तो गया। कोई कहता कि मोदी ‘सबका साथ, सबका विकास’ पर अमल करते हैं। यही ‘नया सेकूलर’ है, क्योंकि हिंदू समाज स्वभाव से सेकूलर है।
मोदी के भाषण में राम के रूपकों की भरमार रही। वे जिस ओज और तेज के साथ धाराप्रवाह बोले कि …राम आग नहीं, राम उर्जा हैं। राम विवाद नहीं, समाधान हैं। राम सिर्फ हमारे नहीं, सबके हैं। राम वर्तमान नहीं, अनंतकाल हैं। राम नित्य हैं, राम निरंतर हैं। ये सिर्फ विजय का क्षण नहीं, विनय का भी क्षण है। ये सिर्फ मंदिर नहीं, ये भारत के दर्शन का, दिग्दर्शन का मंदिर है, राष्ट्रचेतना का मंदिर है। राम भारत का विचार हैं, विधान हैं, चेतना हैं, चिंतन हैं। राम प्रवाह हैं, प्रभाव हैं। राम नेति भी हैं, नीति भी हैं। नित्य भी हैं, निंरतरता भी हैं। विश्व हैं, विश्वात्मा भी हैं। जब राम की प्रतिष्ठा होती है तो उसका असर हजारों वर्षों तक होता है।
‘द्वैत’ में कब ‘अद्वैत’ मिला, ‘शुद्धद्वैत’ कब ‘विशिष्टाद्वैत’ में बना, ‘धर्म’ कब ‘आघ्यात्म’ में मिक्स हुआ, ‘नीति’ में कब ‘राजनीति’ बदली…लगे रहो मुन्ना भाइयो! एक संत ने कहा कि ऐसा भाषण न देखा न सुना! कुछ व्याख्या करते रहे कि मंदिर एक सभ्यतामूलक विमर्श है, हिंदुत्व व सनातन की पुनर्स्थापना है, सांस्कृतिक नवजागरण है, राजनीति का नया प्रस्थान बिंदु है, यह देश की राजनीति का एक नया प्रस्थान बिंदु है..।
धर्मनिरपेक्ष फिर भी कहते रहे कि धर्म और राजनीति को मिलाना, सांप्रदायिकता करना है। कल तक के एक धर्मनिरपेक्ष का सुर बदलता दिखा, जिसने कहा कि भारत में हिंदू या सनातन वैसा धर्म नहीं, जैसा कि अब्राह्मनिक धर्म है। यहां धर्म एक जीवन शैली है। इधर, मंदिर के तुरंत बाद मोदी का बुलंदशहर में चुनावी अभियान शुरू हुआ। उधर, विपक्षी गठबंधन से नीतीश के नाराज होने की खबरें और चैनलों का लपक लेना कि गठबंधन तो अब गया भइए!
जरा उलटबांसी देखिए : एक तरफ मीडिया में विपक्षी गठबंधन में टूट-फूट की खबर पर खबर, दूसरी ओर बुलंदशहर में भाजपा द्वारा अपने चुनावी ‘थीम सांग’ को लेकर आना और बजाना। यह ‘थीम सांग’ हिंदी के छंद में पिरोया गया है, जिसके बारे में एक चैनल चरचा कर चुका है। एक ओर, विपक्षी गठबंधन का हाल बेहाल।
दूसरी ओर, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के साथ प्रधानमंत्री मोदी जयपुर में हवामहल तक का लंबा रोड शो करते हैं। अगले रोज यानी गणतंत्र दिवस की परेड में मैक्रों की मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थिति और परेड में अन्य स्थायी झांकियों के साथ ‘मंदिर’ से लेकर ‘वंदेभारतम’ नृत्यगान, नए सेंट्रल विस्टा व नए संसद भवन की झांकियां। आसमान में देशी तेजस व रफाल की आकाशभेदी उड़ानें। फिर सूत्रों के माध्यम से एक चैनल की ब्रेकिंग न्यूज कि हो सकता है कि 28 जनवरी को नीतीश राजग में फिर से आ जाएं और इस्तीफा देकर फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन जाएं और सुशील मोदी फिर से उप मुख्यमंत्री बन जाएं! क्या यह मंदिर का पहला प्रसाद है?