अब तक विपक्ष इस सवाल का जबाव नहीं दे पाता था कि हमारे पास तो मोदी जैसा हीरो है आपके पास क्या है? लेकिन जैसे ही ‘आइएनडीआइए’ की मुंबई बैठक का दिन आया वैसे ही विपक्षी प्रवक्ताओं के चेहरे खिले खिले दिखे और वे अपने अपने नेता को पीएम के रूप में पेश करते नजर आए! एक बोलिन कि आप हमसे पूछेंगे तो हम यही कहेंगे कि हमारी पार्टी के नेता भी पीएम हो सकते हैं। सीएम का अनुभव है। सरकार चलाना जानते है। विकास करना जानते है। हम किसी से कम नहींं।

दूसरे बोलिन अरे अपनी पार्टी के नेता तो दो-दो बार सीएम रह चुके हैं प्रदेश का विकास कर चुके हैं। वे पीएम हो सकते हैं।तीसरे कहिन हमारी नेत्री जी क्या किसी से कम हैं? तीन बार की सीएम हैं। खेल खेल में उनको हराया है। हमारी नेता भी पीएम हो सकती हैं।चौथा सुर लगा कि हमारे नेता क्या किसी से कम हैं। वे जब भी बने सीएम बने हैं। सबसे ज्यादा अनुभवी हैं सीनियर हैं जीवन भर गरीबों के हित में सुशासन किया है वो पीएम के सर्वथा योग्य हैं।

पांचवा सुर लगा कि हमारे नेता इतनी बार के सांसद रहे हैं। ‘नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान’ खोल चुके हैं। आए दिन सत्ता से टकराए हैं। हमारी नजर से उन्हें ही पीएम होना चाहिए।इसी तरह छठा सुर लगा कि हमारे नेता इतने कम समय में दो-दो राज्य फतह कर चुके और बाकी कुछ औरों की खटिया खड़ी करने वाले हैं। सबसे बेहतरीन प्रशासन दिया है वो भी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार हो सकते हैं…

लेकिन जैसे ही रिपोर्टर, एंकर पूछते कि ‘प्रधानमंत्री का चेहरा तय हो गया है?’ तो जबाव आता कि ‘वो तो सबकी राय से तय होगा’ और जब होगा तय होगा…हम सब सभी देश बचाना चाहते हैं, संविधान बचाना चाहते हैं। लोकतंत्र बचाना चाहते हैं। महंगाई, बेरोजगारी, ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ से जनता को बचाना चाहते हैं।

पहली बार विपक्षी प्रवक्ता देर तक कुछ मुसकाते और कुछ शर्माते से दिखे। जैसे ही वे अपने-अपने नेता को पीएम का मेटीरियल बताते उनके चेहरे प्रदीप्त हो उठते। कुछ इठलाते दिखते जैसे एनडीए वालों को एक ही चोट में निरुत्तर कर दिया हो कि अब पूछो कौन चेहरा है, अपने यहां तो एक से एक योग्य चेहरे हैं। यहां टैलेंट की कमी नहीं है फिर भी जो होगा सबकी राय से तय होगा। हमारा मुख्य उद्देश्य है देश बचाना, संविधन बचाना, लोकतंत्र बचाना है…

गुरुवार के दिन ‘आइएनडीआइए’ के बैठक स्थल के आसपास सभी संभावित पीएम के बड़े बड़े पोस्टर चैनलों का घ्यान खींचते रहे लेकिन उन सबके बीच ‘आइएनडीआइए’ ब्रांड का एक क्वालिटी पोस्टर अलग दिखता रहा जिसकी ‘कैच लाइन’ थी ‘जीतेगा इंडिया’! पोस्टर मनमोहन देसाई वाली किसी ‘मल्टी स्टारर’ फिल्म के पोस्टर की याद दिलाता था जिसके शीर्ष पर ‘मुहब्बत की दुकान’ खोलने वाला सबसे बड़ा चेहरा छपा था। आजू बाजू दल के दो नेताओं के चित्र थे, फिर क्रमश: छोटे छोटे बाकी नेताओं के चित्र थे।

इसके बरक्स कई चैनल ‘श्वार्जनेगर’ की तरह ‘टर्मिनेटर’ बने अपने देसी ‘टर्मिनेटर श्री’ के चित्र वाले पोस्टर को भी दिखाते थे जिसके नीचे ‘कैच लाइन’ छपी थी कि ‘आय विल बी बैक’ यानी कि ‘मैं फिर आ रहा हूं!’आइएनडीआइए वाले पोस्टर को देख एक चैनल ने चुटकी ली : भैया जी को सिंहासन पर बिठाने की तैयारी है…

इसी क्रम में एक बड़े नेता ने शगूफा छोड़ा कि जरूरी नहीं कि समय पर हों चुनाव…और सारे चैनल लग लिए कि यह तो ये पहले भी कह चुके हैं व दीदी भी बोल चुकी हैं…इसके बाद यही सुनाई देता रहा कि जब से ‘आइएनडीआइए’ बना है मोदी जी डर गए हैं। रातों की नींद उड गई है भाजपा बौखला गई है।

केंद्र ने गैस सिलेंडर के दाम कर दिए तो इस पर भी विपक्ष कहने लगा कि यह हमारी आलोचना के कारण दाम कम करने पड़े हैं। सरकार डरी हुई है।अब तो ये गई समझो…उधर से ‘प्रत्याक्रमण’ आया कि ये सब खुद अपने अपने अस्तित्व के लिए डरे हुए हैं तभी इकठ्ठे हुए हैं। फिर भी ये एक नहीं हो सकते। यहां तो आकांक्षाओं का दंगल छिड़ा है क्योंकि हर दल अपना अपना पीएम लिए बैठा है!

लेकिन इसी बीच चैनलों ने विश्व स्तर की रेटिंग कपंनी ‘पियू’ के ‘सर्वे’ को बड़ी खबर बना डाला कि पीएम मोदी को 80 फीसद लोग पसंद करते हैं…इसके बाद तो बहसों की हवा ही निकलती दिखी। इसे देख हमें फिर ‘टर्मिनेटर’ याद आया! शायद इसकी काट के लिए ‘जीतेगा इंडिया’ के बैनर तले प्रेस वार्ता में फिर ‘राग अडाणी’ छेड़ा गया कि अडाणी के पैसे की जांच होनी चाहिए…इनका अडाणी से रिश्ता क्या है? इस बार अडाणी की ओर से इसका तुरत खंडन आया : ये आरोप झूठे हैं!

इससे पहले कि यह मुद्दा गरमाता संसदीय मंत्री के ‘पांच दिवसीय विशेष संसद सत्र’ बुलाने के ट्वीट ने चैनलोें की बहसों का मुद्दा ही बदल दिया। फिर खबर जोर मारने लगी कि इसी संसद सत्र में सरकार ‘एक देश एक चुनाव’ वाला बिल लेकर आने वाली है।इसके बाद सारी बहसें ‘एक देश एक चुनाव’ के आइडिया की ओर मुड़ गईं। बहसों में साफ हुआ कि इससे पहले भी सभी बड़े दल इस ‘एक देश एक चुनाव’ का समर्थन कर चुके हैं।

जैसे ही सरकार ने बिल लाने की बात कही कि सारे विपक्षी ‘नानुच’ करने लगे। उनका कहना रहा कि विचार से तो सहमत हैं लेकिन इसे आनन- फानन में पास नहीं किया जाना चाहिए…लेकिन दो दिवसीय बैठक के अंत में भी ‘आइएनडीआइए’ सर्वसम्मति से ‘लोगो’ तक पास न कर सका। शायद इसे ही भांप बीएसपी ने कटाक्ष किया कि ये आपस में लड़कर ही खत्म हो जाने हैं।