वेतब तक सुनने लायक रहे, जब तक उन्होंने ‘भारत जोड़ो’ के दौरान अपने ‘अंहकार’ के विगलन की बात की। वे तब तक भी कुछ कुछ ‘चिंतक’ किस्म के लगे जब तक बोले कि ‘भारत एक आवाज है’, लेकिन जैसे ही उनकी आवाज में गुस्सा आने लगा, वैसे ही ‘भारत की आवाज’ गुस्से में आकर बेकार-सी होती गई। ज्यों ज्यों वे गुस्से से बोलते गए, त्यों त्यों उनकी आवाज बेदम होती गई। और जिस अहंकार को विजित करने की बात वे कह चुके थे, वे फिर उसी में गिरते नजर आए। उनका क्रोध उनका दुश्मन निकला।
चैनलों में भैया जी का गुस्सा बरक्स सत्तापक्ष का जवाबी गुस्सा दर्शकों का पूरे समय मनोरंजन कराता रहा। इसे देख कई एंकर ऊपर से गंभीर दिखते, लेकिन अंदर से पुलकित दिखते, क्योंकि ‘इस हाथ ले उस हाथ दे’ वाली ‘दनादन’ करने वाली ‘बाइटें’ ही तो खबर चैनलों की जान होती हैं! विपक्ष जब ‘अविश्वास का प्रस्ताव’ लाया, तो कई चैनल दो बातों को बार-बार रेखांकित करते रहे। एक तो यह कि मणिपुर पर अब तक ‘चुप लगाए’ पीएम को अब तो संसद में आकर बोलना ही होगा। मगर चैनल विपक्ष को भी सावधान करते रहे कि ‘अविश्वास प्रस्ताव’ लाकर विपक्ष ने कहीं ‘सेल्फ गोल’ की तैयारी तो नहीं कर ली!
कुछ चैनल 2018 में विपक्ष के लाए ऐसे ही ‘अविश्वास प्रस्ताव’ का जवाब देते हुए पीएम के उस जवाबी टुकड़े को बार-बार बजाते रहे, जिसमें उन्होंने हंसते हुए कहा था कि आप तेईस में भी ऐसा ही अविश्वास प्रस्ताव लाइएगा…कई एंकरों और चर्चकों ने भी स्पष्ट किया कि जिस तरह 2018 के अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में जनता ने भाजपा और एनडीए को और तगड़े बहुमत से जिता कर सदन में भेजा।
उसी तरह 2019 का ‘अविश्वास प्रस्ताव’ सुनकर देश की जनता 2024 में कहीं एक बार फिर से एनडीए को ही गद्दी न सौंप दे! तिस पर पीएम का जवाब में पिछले ‘अविश्वास प्रस्ताव’ को याद करना और फिर कहना कि हे विपक्ष जी, आप 2028 में भी ऐसा ही अविश्वास प्रस्ताव लाना, ताकि 2029 में फिर से हम आ जाएं…
विपक्ष जिसे ‘गुगली’ कह कर इतरा रहा था, पीएम ने उसी पर ऐसा छक्का लगाया कि गुगली देने वाले बाहर ही भागते नजर आए। बहस में एक बेहद ठहरा हुआ तथ्यात्मक जवाब गृहमंत्री का रहा, जिन्होंने मणिपुर समस्या की जड़ और जटिल वर्तमान स्थिति और उसके जल्द ठीक होने के लिए किए जाते उपायों के बारे में विस्तार से सदन को बताया और सारे भाषण में एक बार भी गुस्सा न खाया! वे विपक्ष के ‘अविश्वास’ के बरक्स ‘सरकार के प्रति जनता के विश्वास’ की बात बार-बार दोहराते रहे और उनके सांसद ‘जनता के विश्वास’ को ही नारा बनाते रहे। इसके बाद विपक्ष के हमलों की तीक्ष्णता ‘भोथरी’ होती दिखी! बची कसर पीएम के दो घंटे चौदह मिनट लंबे ठोस जवाबों ने पूरी कर दी!
अपने लंबे भाषण में पहले तो पीएम ने नौ बरस में अपनी सरकार के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों और उपलब्धियों को एक एक करके गिनाया, फिर कांग्रेस पर चुटकी लेते हुए कहा कि वह एक ही उत्पाद को बार-बार पेश करती रहती है, मगर ‘लांचिग’ हर बार फेल हो जाती है। इनकी मुहब्बत की दुकान ‘लूट की और झूठ की दुकान’ है।
जब वे भारतमाता के बारे में बोलते हैं, तो भूल जाते हैं कि पचास बरस तक तो उन्होंने ही शासन किया। इस तरह वे अपनी विफलताओं को गाते हैं। इनकी नई दुकान में कुछ दिनों में ताला लग जाएगा… ये ‘घमंडिया’ गठबंधन भारत के ‘दिवालिया’ होने की गारंटी है… जबकि मोदी देश को गांरटी देता है कि मेरे तीसरे ‘टर्म’ में देश दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा…
बस इसी कथन के आसपास विपक्ष चुपके से सदन से बहिर्गमन करता दिखा। पीएम ने इस पर भी कटाक्ष किया कि जिनका लोकतंत्र में भरोसा नहीं होता, वे सुनाने को तो तैयार रहते हैं, सुनने का धैर्य नहीं होता। उन्होंने कांग्रेस को जमकर निशाने पर लिया और कहा कि पूर्वोत्तर के प्रति इन्होंने हमेशा भेदभाव किया, जबकि पूर्वोत्तर हमारे जिगर का टुकड़ा है…
कहने की जरूरत नहीं कि इसी बिंदु पर विपक्ष का दावा करना कि पीएम विपक्ष से डरते हैं, कि हार से डरते हैं, कि हारने वाले हैं- ये सब बातें ‘फोकी’ साबित हुर्इं। पीएम तो ताल ठोक कर ‘फाइट’ देने वाले नजर आए, जबकि पीएम को ‘डरपोक’ कहने वाले बहिर्गमन करने वाले के रूप में ‘डरपोक’ नजर आए!
फिर भी, प्रेस वार्ता में ‘आलोचना’ का वही ‘हठ राग’ जारी रहा कि मणिपुर जल रहा है और वो हंस रहे हैं, नूंह जल रहा है और वो हंस रहे हैं, टमाटर जल रहा है और वो हंस रहे हैं… यानी वही बाल हठ कि: ‘मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों!’
इस पर भी ‘गुनाह बेलज्जत’ यह कि जाते-जाते विपक्ष के एक बड़े दल के एक बड़े नेता सदन में कुछ ‘ऐसा वैसा’ बोल गए कि सरकारी पक्ष ने तुरंत तीखी आपत्ति की, उनको सदन से तुरंत निलंबन झेलना पड़ा। साथ ही उनके आचरण के मामले को विशेषाधिकार समिति को सौंप दिया गया!
और सत्र के अंतिम दिन जब विपक्ष प्रेस वार्ता कर अपनी चोटें सहला रहा था, तब गृहमंत्री संसद में अंग्रेजों के जमाने के बहुत से कानूनों, जैसे ‘देशद्रोह के कानून’ में संशोधन करने और उपनिवेशवादी ‘इंडियन पीनल कोड’ को खत्म कर ‘भारतीय न्याय संहिता’ का ‘वि-उपनिवेशीकरण’ करने की बात कर रहे थे!