Jignasa Sinha की रिपोर्ट

Migrant Crisis: देशभर में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों का सबसे बुरा असर प्रवासी मजदूरों पर ही हुआ है। लॉकडाउन के कड़े नियमों की वजह से अपना काम गंवा चुके प्रवासी मजदूर जहां-तहां फंस गए और आपात स्थितियों के बावजूद भी समय पर घर नहीं जा पाए। ऐसी ही कहानी है बिहार के नवादा के रहने वाले राम पुकार पंडित की। दिल्ली में काम करने वाले रामपुकार को इसी हफ्ते उनकी पत्नी ने उन्हें फोन पर अपने 1 साल के बच्चे की मौत की जानकारी दी। इस खबर से पहले ही काफी ज्यादा हताश राम पुकार ने कोई वाहन सेवा न मिलने के बाद बच्चे को आखिरी बार देखने के लिए पैदल ही बिहार तक का सफर शुरू कर दिया। हालांकि, उनका यह सफर गाजियाबाद के आगे ही नहीं बढ़ पाया, क्योंकि पुलिस ने लाख मिन्नतों के बाद भी उन्हें घर नहीं जाने दिया।

राम पुकार की एक फोटो सोशल मीडिया के जरिए इस वक्त देशभर में वायरल हो रही है। इसमें उन्हें फोन से बात करते वक्त रोते हुए देखा जा सकता है। राम पुकार का आरोप है कि दिल्ली से निकल कर यूपी गेट के करीब ही उसे यूपी पुलिस ने रोक लिया और आगे नहीं जाने दिया। ऐसे में अगले तीन दिन उसे गाजीपुर फ्लाईओवर के नीचे सोकर गुजारने पड़े। इस दौरान राम पुकार ने पुलिसकर्मियों और अधिकारियों से बिहार जाने देने की मांग की। हालांकि, किसी ने इन मिन्नतों पर ध्यान नहीं दिया।

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राम पुकार का कहना है कि जब पुलिस ने उनकी बात नहीं सुनी, तब भी कुछ एनजीओ के वर्कर्स और कुछ पुलिसकर्मियों ने उसे खाना दिया। तीन दिन फ्लाईओवर के नीचे गुजारने के बाद आखिरकार अधिकारियों ने उसे दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचाया, जहां से उसने बिहार जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन पकड़ी। राम पुकार अब बिहार के बेगुसराय पहुंच चुका है। हालांकि, उसे स्कूल में कोरोनावायरस की जांच के लिए रखा गया है।

राम पुकार के मुताबिक, उसे उम्मीद है कि वह जल्द ही अपने परिवार से मिलेगा। हालांकि, उसे यूपी बॉर्डर के पास अपना संघर्ष आज भी खलता है, क्योंकि उसके बिना ही परिवार को उसके बच्चे का अंतिम संस्कार करना पड़ा और अब वह कभी अपने बेटे को नहीं देख पाएगा। राम पुकार का कहना है कि वह पिछले कई दिनों से रो रहा है और उसकी पत्नी और तीन बेटियां लगातार चिंतित हैं।

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दिल्ली में करीब एक दशक से मजदूरी कर रहे पंडित हर महीने सिर्फ 7 से 8 हजार रुपए ही कमा पाते हैं। वे हर दो-तीन महीने में एक बार ही अपने परिवार से मिलने जा पाते हैं। इस दौरान उनका छोटा भाई ही परिवार की देखरेख करता है।

गाजियाबाद पुलिस का कहना है कि उन्हें इस मामले में कोई शिकायत या व्यक्ति की कोई जानकारी नहीं है। गाजियाबाद के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने भी ऐसे किसी भी मामले की जानकारी से इनकार किया। वहीं, पंडित को घर पहुंचाने में मदद करने वाले ईस्ट दिल्ली के डीएम अरुण कुमार मिश्र ने कहा है हमारी टीम जरूरतमंदों को देखती रहती है। जब हमारी टीम ने पंडित को देखा तो उसे रेलवे स्टेशन में छोड़ दिया था।