भारत में करीब एक करोड़ बीस लाख बच्चे बंधुआ मजदूर के रूप में काम करते हैं। इन बच्चों में अच्छी खासी संख्या ऐसी बच्चियों की है जिन्हें सेक्स स्लेव (यौन गुलाम) बनाकर रखा जाता है। जून में बाल तस्करी पर रोकथाम के लिए काम करने वाले एनजीओ ‘हक़’ ने ऐसे बच्चियों की आपबीती सामने लाने के लिए जनसुनवाई की जिसमें बच्चियों ने उनके संग हुए खौफनाक और अमानवी कारगुजारियों को बयान किया। रेडिफ डॉटकॉम की रिपोर्ट के अनुसार इस बच्चों की कहानी का सबसे निराशाजनक पहलू देह व्यापार में धकेली गई बच्चियों के प्रति पुलिस, अदालत और दूसरी सरकारी संस्थाओं की अनदेखी रही। अगर पुलिस ने समय रहते कार्रवाई की होती तो अपनी व्यथा सुनाने वाले बहुत से बच्चों को उन हालात से नहीं गुजरना पड़ता।
दिल्ली के निजामुद्दीन बस्ती की रहने वाली एक 13 वर्षीय बच्ची ने जूरी को बताया कि जब वो अपनी दो दोस्तों के साथ घर से पास के बाजार जा रही थी तो दो लोगों ने उसे अगवा कर लिया। उन लोगों ने उसे कोई नशीला पदार्थ खिला दिया और एक कमरे में बंद कर दिया। वहां एक हफ्ते तक उसका बलात्कार किया जाता रहा। अपहरणकर्ता उसे रोज स्टेरॉयड देते थे ताकि वो अपनी उम्र से बड़ी दिखने लगे। उसके बाद उसे एक वेश्या को दो लाख रुपये में बेच दिया गया। जहां से उसे दोबारा आठ लाख रुपये में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी स्थित एक वेश्यालय में बेच दिया गया। वहां उसे देह व्यापार के साथ ही नशे की तस्करी भी करनी पड़ती थी।
बच्ची के माता-पिता ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी लेकिन पुलिस बच्ची का पता लगाने में विफल रही। सात महीने बाद उसके परिवार वालों का नशामुक्ति के लिए काम करने वाले एनजीओ शरण से संपर्क हुआ। शरण ने उन्हें ‘हक़’ एनजीओ के पास भेजा। हक़ ने पुलिस से कार्रवाई कराने के लिए अदालत में हेबअस कार्पस याचिका दायर की। इन सबमें तीन महीने बीत गए। स्थानीय पुलिस उस मोबाइल नंबर का लोकेशन तक पता करने में विफल रही जिससे बच्ची ने अपनी माँ से संपर्क करने की कोशिश की थी।
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हक़ ने मानव-तस्करी के खिलाफ काम करने वाले समूह शक्ति वाहिनी के साथ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ मुलाकात की जिसके बाद मामले को एंटी-ह्यूमन ट्रैफिंकिंग यूनिट को सौंप दिया गया। आखिरकार ये यूनिट सिलिगुड़ी के लालबत्ती इलाके में बच्ची को बरामद करने में सफल रही। लेकिन पुलिस फिर भी नहीं जागी। बच्ची की बरामदगी के बाद भी उसके अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार करने में पुलिस ने काफी वक्त लगा दिया।
बच्ची को करीब तीन साल तक इस अजाब से गुजरना पड़ा लेकिन उसके बाद भी उसकी मुश्किल खत्म नहीं हुई। उसे अदालत में गवाही देनी थी यानी जिस दर्दनाक हालात से वो गुजरी थी उसे अदालत में सबके सामने दोहराना था। अब तक आठ बार अदालत में हाजिर हो होने के बाद भी उसे आगे भी अपने जीवन के उन अनुभवों को दोहराना पड़ता है जिन्हें वो भुला देना चाहती है। और वो भी सबके सामने।
कई मामलों में ऐसा भी हुआ कि पुलिस की तत्परता के बावजूद बच्चियों को ऐसे ही दर्दनाक हालात से गुजरना पड़ा। पश्चिम बंगाल के नार्थ 24 परगना जिले की एक 14 वर्षीय बच्ची के परिवार की गरीबी का फायदा उठाते हुए उसके पडो़सी ने दिल्ली में नौकरी दिलाने का लालच दिया। पड़ोसी बच्ची को लेकर दिल्ली के लिए निकला लेकिन उसे बीच रास्ते झारखंड के धनबाद में एक महिला को बेच दिया। करीब एक पखवाड़े पांच-छह लोग उसे कहीं ले जा रहे थे तभी वहां से पुलिस गुजरी। वो लोग पुलिस के डर से बच्ची को छोड़कर भाग गए। पुलिस ने बच्ची को निर्मल छाया नामक आश्रयगृह में भेज दिया। वहां वो दो महीने रही, इस बीच उसके परिवारवालों के बारे में पता कर लिया गया।
इसके बाद पड़ोसी को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन वो एक हफ्ते में ही जमानत पर रिहा हो गया। घटना को हुए 10 साल बीत गए लेकिन मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है। बच्ची की मां दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करती है। उसके पडो़सियों ने बच्ची की परिवार में वापस लेने पर एतराज जताया। इसलिए उसे जाबाला नामक एनजीओ के आश्रयगृह में भेजना पड़ा। जहां वो पढ़ाई करती है और वो एक पुलिस कैंटिन में काम करती है।
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वेश्यावृत्ति में धकेल दी गई कुछ बच्चियों की कहानी ऊपर बताई कहानियों से अलग है। नार्थ 24 परगना की रहने वाली एक 16 वर्षीय बच्ची की एक आदमी से फोन पर बात होती थी। उसने बच्ची से शादी का वादा किया। बच्ची पुणे स्थित अपने “टेलीफोन फ्रेंड” से मिलने के लिए घर से भाग गई। जब वो पुणे पहुंची तो उस व्यक्ति ने उससे शादी से इनकार कर दिया और उसे एक अजनबी को बेच दिया। उस आदमी ने उसे देह व्यापार में धकेल दिया। उसे पुणे के फराशखाना से दो एनजीओ ने मिलकर मुक्त कराया। उसे बेचने वालों को एनजीओ ने गिरफ्तार भी कराया। लेकिन बच्ची की मुश्किलें यहीं नहीं खत्म हुई। उसके परिवार ने उसे वापस लेने से इनकार कर दिया। इस बच्ची को भी जबाला एनजीओ ने व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया और उसे काम दिलवाया।
जिन बच्चियों ने अपनी आपबीती सुनाई में उनमें कानपुर की एक 14 वर्षीय बच्ची को उसके माता-पिता ने एक 40 वर्षीय “अमीर” आदमी के संग ब्याह दिया। उस आदमी ने शादी का पूरा खर्च उठाने का साथ ही बच्ची के माता-पिता को 10 हजार रुपये दिए थे। बच्ची जब कानपुर पहुंची तो उसे गहरा धक्का लगा। उससे घरेलू कामगार के तौर पर काम लिया जाने लगा और उसे घर से बाहर नहीं जाने दिया जाता था। कुछ हफ्ते बाद ही उसके पति ने उसे देह व्यापार में धकेल दिया।
उसके पति ने उसे अपने कई रिश्तेदारों के संग सोने के लिए मजबूर किया। मना करने पर उसका खाना-पीना बंद कर दिया जाता था। इस बीच वो दो बार मां बनी। आखिरकार जब वो इस कैद से भागने में कामयाब हुई तो उसके पेट में तीसरा बच्चा था। लेकिन उसके मां-बाप उसके घर वापसी के फैसले से खुश नहीं हुए। वो उससे बार-बार पति के घर जाने के लिए कहते रहे। इस मामले में पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं कि क्योंकि उसके परिवार ने एफआईआर दर्ज कराने से मना कर दिया। और इस तरह औपचारिक शिकायत नहीं होने के बहाने के साथ ही पुलिस ने अपने कर्तव्य से इतिश्री कर ली। जनसुनवाई की जूरी में पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा, रंगकर्मी लुशिन दुबे और पत्रकार ओम थानवी शामिल थे।
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