उत्तर बंगाल में स्थित कई चाय बागानों में तालाबंदी के चलते वहां रहने वाले 16 से 18 साल तक की कई युवतियां परिवार का पेट पालने के लिए मजबूरन देह व्यापार के धंधे में उतर रही हैं। बंद बागानों में मजदूरी नहीं मिलने की वजह से वहां रहने वाली कई युवतियों ने यौनकर्मी बन कर पैसे कमाने के लिए स्कूल जाना छोड़ दिया है। डंकन समूह की बीरपाड़ा चाय बागान इस मामले में सबसे बदतर है।
ज्यादातर बंद बागानों में ग्राहकों को सरेआम इन युवतियों के साथ मोल-तोल करते देखा जा सकता है। लोगों को लुभाने के लिए युवतियां भी उत्तेजक कपड़े पहने नजर आती हैं। राज्य सरकार ने हालांकि बंद बागानों में दो रुपए किलो की दर से चावल की सप्लाई शुरू की है। लेकिन यह मदद नाकाफी ही साबित हो रही है। देह व्यापार के धंधे में उतरने वाली एक युवती सवाल करती है कि आखिर हम सरकार की दया पर कब तक जीवित रह सकते हैं? हमें जीवित रहने के लिए चावल के अलावा दूसरी कई चीजों की भी जरूरत पड़ती है।
वह कहती है कि अब देह व्यापार की कमाई से उसके पूरे परिवार को रोजाना भरपेट भोजन व कपड़ा तो मिलने ही लगा है, भविष्य के लिए कुछ पैसे भी बचने लगे हैं। इन युवतियों को इलाके से गुजरने वाले नेशनल हाइवे-31 के किनारे बने ढाबों के आस-पास ग्राहकों की तलाश में मंडराते देखा जा सकता है। युवतियों का कहना है कि उनके ग्राहकों में ज्यादातर ट्रक चालक शामिल हैं। एक अन्य युवती बताती है कि किसी-किसी रात को वह पांच सौ रुपए तक कमा लेती है। दलाल को इसमें से कुछ रकम मिलती है। लेकिन बाकी रकम हमारे पास रहती है। उसका सवाल है कि आखिर उसे इतना पैसा बिना वजह के कोई क्यों देगा?
आरएसपी की चाय मजदूर यूनियन के नेता गोपाल प्रधान भी तेजी से बढ़ती इस समस्या की बात कबूल करते हैं। वे कहते हैं कि यह हमारे लिए शर्मनाक स्थिति है। लेकिन हम मजबूर हैं। बीते पांच-सात सालों से इन बागानों की युवतियों को दिल्ली समेत दूसरे महानगरों में काम दिलाने के बहाने ले जाया जाता है।
इस काम में सक्रिय दलाल इसके एवज में संबंधित युवती के माता-पिता को एकमुश्त कुछ हजार रुपए दे देते हैं। लेकिन महानगरों में पहुंचने के बाद आखिर में ज्यादातर युवतियां देह व्यापार के धंधे में ही धकेल दी जाती हैं।
इलाके के बंद चाय बागानों के खुलने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं होने की वजह से इन युवतियों का भविष्य अंधकारमय ही लगता है।